• 19 March 2024

संतान योग

इस‌ लेख में जन्म कुंडली में संतान योग कैसे बनता है, यह अनेक उदाहरणों के साथ समझाया गया है:-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant)

जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का मुख्य स्थान होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए। दूसरी संतान का विचार करना हो, तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के विषय में जानना हो, तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए

1. पंचम भाव का स्वामी स्वग्रही हो।

2. पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, अथवा स्वयं चतुर्थ सप्तम भाव को देखता हो।

3. पंचम भाव का स्वामी कोई नीच ग्रह ना हो यदि भाव पंचम में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है।

4. पंचम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों, और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति भाव पंचम में नही होनी चाहिये।

5. पंचम भाव का स्वामी को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये, पंचम भाव के स्वामी के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं पंचम भाव का स्वामी नीच का नही होना चाहिये।

6. पंचम भाव का स्वामी उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो।

7. पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करना चाहिए।

8. सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में: बलवान, शुभ स्थान, सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त।

9. एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो।

संसार में कोई भी ऐसा दंपति नहीं होगा, जो संतान सुख नहीं चाहता हो। चाहे वह गरीब हो या अमीर। सभी के लिए संतान सुख होना सुखदायी ही रहता है। संतान चाहे खूबसूरत हो या बदसूरत, लेकिन माता-पिता को बस संतान चाहिए। फिर चाहे वह संतान माता-पिता के लिए सहारा बने या न बने। अकबर बादशाह ने भी काफी मन्नतें मानकर सलीम को माँगा था।

किसी-किसी की संतान होती है, और फिर गुजर जाती है। ऐसा क्यों होता है? ये सब ग्रहों की अशुभ स्थिति से होता है। यहाँ पर हम इन्हीं सब बातों की जानकारी देंगे, जिससे आप भी जान सकें कि संतान होगी या नहीं।

पंचम स्थान संतान का होता है। वही विद्या का भी माना जाता है। पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है। पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है।

सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो, तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो, या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है।

पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो, तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है। यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है। मंगल की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या पंचम भाव पर पड़ रही हो, तो पुत्र अवश्य होता है।

पुत्र संततिकारक चँद्र, बुध, शुक्र यदि पंचम भाव पर दृष्टि डालें तो पुत्री संतति होती है। यदि पंचम स्थान पर बुध का संबंध हो, और उस पर चँद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो, तो वह संतान होशियार होती है। पंचम स्थान का स्वामी शुक्र यदि पुरुष की कुंडली में लग्न में या अष्टम में या तृतीय भाव पर हो, एवं सभी ग्रहों में बलवान हो, तो निश्चित तौर पर लड़की ही होती है। पंचम स्थान पर मकर का शनि कन्या संतति अधिक होता है। कुंभ का शनि भी लड़की देता है। पुत्र की चाह में पुत्रियाँ होती हैं। कुछ संतान नष्ट भी होती है।

पंचम स्थान का स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी। जितने पुरुष ग्रह होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ होंगे, उतनी संतान पुत्री होगी। सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी संतान होगी। एक नियम यह भी है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो, एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध हो, उतनी संतान होगी।

संतान सुख कैसे होगा :-

संतान प्राप्ति के लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण करना होगा। पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा। पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो, तो संतान संबंधित शुभ फल देता है। यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो, तो संतान सुख नहीं होता। यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं या तो संतान नष्ट होती है, या अलग हो जाती है। यदि पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो, तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है। द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो, तो संतान सुख उत्तम होकर लक्ष्मीपति बनता है।

पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो, तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है। पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है। पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो, तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। गुरु का संबंध पंचम स्थान पर संतान योग में बाधा देता है। सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती। इस प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो, तो संतान नहीं होती।

पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो, और उस पर शनि की दृष्टि हो, तो पुत्र संतान सुख नहीं होता। पंचम स्थान पर पड़ा राहु गर्भपात कराता है। यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो, तो चांडाल योग बनता है, और संतान में बाधा डालता है, यदि यह योग स्त्री की कुंडली में हो तो। यदि यह योग पुरुष कुंडली में हो तो संतान नहीं होती। नीच का राहु भी संतान नहीं देता। राहु, मंगल, पंचम हो तो एक संतान होती है। पंचम स्थान में पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान बाधक होता है। यदि योग लग्न में न हों तो चँद्र कुंडली देखना चाहिए। यदि चँद्र कुंडली में यह योग बने तो उपरोक्त फल जानें।

पंचम स्थान पर राहु या केतु हो, तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती। यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो, तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है। पंचम स्थान पर नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है। पंचम स्थान पर नीच का सूर्य ऑपरेशन द्वारा संतान देता है। पंचम स्थान पर सूर्य मंगल की युति हो, और शनि की दृष्टि पड़ रही हो, तो संतान की शस्त्र से मृत्यु होती है।

पंचम भाव और गुरु :-

गुरु जब मीन राशी में पंचम में हो, तो अल्प संतति देते है। धनु में हो, तो बहुत प्रयास के बाद देते है। कर्क और कुम्भ राशी में होने पर गुरु संतति नहीं देते ऐसे ही फल पंचम भाव में कर्क, मीन, कुम्भ या धनु राशी में होने पर संतति सुख नहीं देते। लेकिन बाकी पंचमेश और युति और दृष्टि सम्बन्ध भी देख लेना चाहिए, खाली एक गुरु के उपर कुछ भी नहीं बोलना चाहिए।

एक बात हमेशा ध्यान रखें, की गुरु सिंह राशी में निर्बल हो जाते हैं, जबकि गुरु और सूर्य परम मित्र हैं, इसके पीछे एक तर्क तो ये है की गुरु मंत्री है और सूर्य रजा, अब राजा के घर में गुरु कैसे स्थान हानि करेंगे, और एक तर्क ये है, की गुरु अपनी उच्च राशी कर्क से निकल कर नीच राशी गत होता है, इसी कारण गुरु पंचम में सिंह राशी में स्थान हानि नहीं करते। वही कुम्भ राशी राजा के गृह से सबसे अधिक दूर होने से वह वे अपने स्थान भ्रष्ट करने के स्वभाव का पूर्ण प्रभाव दिखाते है।

सिर्फ गुरु के इन परिस्थतियो के आधार पर ही फलित नहीं करना चाहिए, कहा जाता है की पंचम का गुरु यदि मंगल और सूर्य से दृष्ट है, तो भी स्थान हानि नहीं कर पाता, अगर कर्क का गुरु चंद्रमा से दृष्ट या फिर कुम्भ का गुरु शनि से दृष्ट है तो भी गुरु के योग विफल हो जायेंगे। पंचम भाव पर पंचमेश की दृष्टि भी उस भाव को बल देगी, अतः इन परिस्थितियों में योग विफल हो जाएगा, ये तो हम सब जानते ही हैं की पूर्ण कुडंली विश्लेषण के बाद ही पूर्ण फलादेश किया जा सकता है, यहाँ तो हम सिर्फ गुरु के पंचम में होने की स्थितियों पर चर्चा कर रहे हैं।

संतान प्राप्ति का समय :-
संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचमेश, पंचम भाव में स्थित ग्रह और पंचम भाव, पंचमेश पर दृष्टियों पर ध्यान देना चाहिए। जातक का विवाह हो चुका हो, और संतान अभी तक नहीं हुई हो, संतान का समय निकाला जा सकता है। पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति होती है।

गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है, तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है। यदि गुरु गोचरवश पंचम, एकादश, नवम या लग्न में भ्रमण करे तो भी संतान लाभ की संभावना होती है। जब गोचरवश लग्नेश, पंचमेश तथा सप्तमेश एक ही राशि में भ्रमण करे, तो संतान लाभ होता है।

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