संतान प्राप्ति के उपाय
संतान प्राप्ति के लिये शास्त्रीय उपाय ‘संतानगोपाल मंत्र’
संतान प्राप्ति के लिये शास्त्रीय उपायों में ‘संतानगोपाल मंत्र’ की साधना अत्यंत प्रभावशाली है। अतः संतान की कामना करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस मंत्र का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये। इस मंत्र का जप दो प्रकार से किया जाता है। एक बीज सहित और दूसरे बिना बीज मंत्र के। बीज सहित मंत्र शीघ्र फलदायी होता है। किन्तु इसे गुरू से दीक्षा लिये हुये व्यक्ति को ही करना चाहिये, बिना बीजाक्षरों के कोई भी कर सकता है। आगे बीज सहित संतानगोपाल मंत्र के अनुष्ठान की विधि दी जा रही है। यदि पाठक स्वयं न कर सके तो किसी विद्वान ब्राह्मण से यह अनुष्ठान करवा सकते हैं। इस मंत्र की सम्पूर्ण जप संख्या 100000 (एक लाख मंत्र) है। उसका दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन करना चाहिये। यदि बिना बीज मंत्र के साधक स्वयं जप करता है तब चैगुना संख्या में जप करने का शास्त्र निर्देश है। सर्वप्रथम निम्नांकित वाक्य पढ़कर विनियोग करे- अस्य श्रीसंतान गोपाल मंत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप् छंद्ः, श्रीकृष्णो देवता, ग्लौं बीजम्, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जपे विनियोगः।
अंगन्यास- ‘देवकीसुत गोविंद’ हृदयाय नमः (इस वाक्य की बोलकर दाहिने हाथ की मध्यमा, अनामिका और तर्जनी अंगुलियों से हृदय का स्पर्श करें)। ‘वासुदेव जगत्पते’ शिरसे स्वाहा’ (इस वाक्य को बोलकर सिर का स्पर्श करें)। ‘देहि में तनयं कृष्ण’ शिखयै वषट् (इस वाक्य को बोलकर दाहिने हाथ के अंगुठे से सिर का स्पर्श करें)। ‘त्वामहं शरणं गतः’ ( इस वाक्य को बोलकर दाहिनी हाथ के पाँचों उंगलियों से बायीं भुजा का एवं बायीं हाथ की पाँचों उंगलियों से दाहिनी भुजा का स्पर्श करें)। ‘ऊँ नमः’ अस्त्राय फट् (इस वाक्य को बोलकर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे कि ओर ले आय और तर्जनी तथा मध्यमा उंगुलियों से बाँय हाथ की हथेली पर बजायें।
इसके पश्चात् निम्नांकित रूप से ध्यान करें-
वैकुण्ठाद्गतं कृष्णं रथस्थं करूणानिधिम्।
किरीटिसारथि पुत्रमानयंत्र परात्परम्।। 1 ।।
आदाय तं जलस्थं च गुरूवे वैदिकाय च।
अर्पयंतं महाभागं ध्यायेत् पुत्रार्थमच्यृतम्।। 2 ।।
‘पार्थसारथि अच्युत भगवान् श्रीकृष्ण करूणा के सागर हैं। वे जल में डूबे हुए गुरू पुत्र को लेकर आ रहें है। वे वैकुण्ठ से अभी-अभी पधारे हैं और रथ पर विराजमान हैं। अपने वैदिक गुरू सांदीपनि को उनका पुत्र अर्पित कर रहें है- साधक पुत्र की प्राप्ति के लिए इस रूप में महाभाग भगवान् श्रीकृष्ण का चिंतन करें’।
मूल मंत्र (बीज सहित) –
‘ऊँ श्रीं ह्नीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।।’
इस मंत्र का भावार्थ इस प्रकार है- सच्चिदानंद स्वरूप, ऐश्वर्यशाली, कामनापूरक, सौभाग्य स्वरूप, देवकीनंदन! गोविंद! वासुदेव ! जगत्पते ! श्रीकृष्ण ! मैं आपकी शरण में आया हुँ, आप मुझे पुत्र प्रदान करें।
आगे संतान गोपाल मंत्र बिना बीज मंत्र के भी दिया जा रहा है जिसे कोई भी साधक संकल्प लेकर स्वयं ही कर सकता है।
संतानगोपाल मंत्र- 2
विनियोग–
अस्त श्रीसंतानगोपालमंत्रमंत्रस्य ब्रह्म ऋषिर्गायत्रीच्छंदः, श्रीकृष्ण देवता, क्लीं बीजम्, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जपे विनियोगः।
अंगन्यास-
ग्लौं हृदयाय नमः। क्लीं श्शिरसे स्वाहा। ह्नीं शिखायै वषट्। श्रीं कवचाय हुम्। ऊँ अस्त्राय फट्।
ध्यान-
यांखचक्रगदापह्मं दधानं सूतिकागृहे।
अंके शयानं देवक्याः कृष्णं वंदे विमुक्तये।।
जो सूतिकार गृह में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये माता देवकी की गोद में सो रहें हैं, उन भगवान् श्री कृष्ण की मैं (संतान रूप में ) मोक्ष की प्राप्ति के लिए वन्दना करता हूँ।
बिना बीज का मूल मंत्र इस प्रकार है-
‘ऊँ नमो भगवते जगदात्मसूतये नमः’(सम्पूर्ण जगत् जिनकी अपनी संतान है, उन भगवान् श्री कृष्ण को नमस्कार है) इसका चार लाख जप करना चाहिए।