गंडमूल नक्षत्र
गंडमूल नक्षत्र और गण्डमूल नक्षत्र का जातक पर प्रभाव :-
Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant)
इस लेख में बताया गया है कि, जातक का जन्म यदि गण्डमूल नक्षत्र में हो तो, उस गंडमूल का जातक या जातक के परिजनों के जीवन पर क्या प्रभाव रहता है? और इसके उपाय क्या हैं :-
गंडमूलक नक्षत्रों के अंतर्गत- 1. अश्विनी, 2. अश्लेषा, 3. मघा, 4. ज्येष्ठा, 5. मूल और 6. रेवती नक्षत्र को रखा गया है।
गंडमूल नक्षत्र :- (Gandmool Nakshtra) ज्योतिषीय गणना के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं, उनमे से छह- 1. अश्विनी, 2. अश्लेषा, 3. मघा, 4. ज्येष्ठा, 5. मूल और 6. रेवती नक्षत्र की गणना गंडमूलक नक्षत्रों में जाती है। राशि और नक्षत्र की समाप्ति जब एक ही स्थान पर होती है, तब यह स्थिति गण्ड या गंडमूल नक्षत्र कहलाती है। राशि और नक्षत्र की समाप्ति से ही नई राशि और नक्षत्र के प्रारम्भ होने को गंडमूल कहते हैं।
गंडमूल नक्षत्र के समय जन्म लेने वाले जातक स्वयं तथा अपने माता-पिता, मामा आदि के लिए कष्ट सूचक होते हैं। यही कारण है कि घर के लोगों को जैसे ही यह पता चलता है कि बालक मूल में हुआ है, वैसे ही वे चिंतिंत हो जाते हैं और नकारात्मक विचारों से ग्रसित भी हो जाते हैं, परिणाम यह कि इसका प्रभाव बच्चे के ऊपर पड़ना आरम्भ हो जाता है, चुंकि बच्चा अपने जन्म के बारह वर्ष तक अपने माता-पिता के कर्मो से प्रभावित होता है। ऐसी स्थिति में माता-पिता के नकारात्मक विचारों का परिणाम यह होता है कि, परिवार कष्टमय जीवन व्यतीत करने लगता है। इसलिए यदि परिवार में कोई बच्चा मूल में जन्म ले लिया है तो, घबराने की आवश्यकता नहीं, और न ही नकारात्मक विचार लायें। शास्त्र में निर्धारित उपाय करायें परिवार के लिए और बच्चे के लिए यह ही शुभ होगा।
गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक शुभ प्रभाव में है तो वह अवश्य सामान्य बालक से कुछ अलग विशेष विचारों वाला होता है, यदि उसे सामाजिक तथा पारिवारिक बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो, ऐसा बालक जिस भी क्षेत्र में जायेगा, अपनी एक अलग पहचान बनायेगा। ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी, और कला अन्वेषी होते हैं। यह इसके अच्छे प्रभाव भी हैं। अगर वह अशुभ प्रभाव में है तो, इन्हीं नक्षत्रों में जन्मा बालक क्रोधी, रोगी, र्इष्यावान, लम्पट होगा। इस अशुभता को दूर करने के लिए गण्डमूल दोष की विधिवत शांति करा लेना चाहिए।
गण्डमूल नक्षत्र :-
जैसे कि राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर उदय और मिलन के आधार पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण बताया गया है। इसके निर्माण में कुल छह 6 स्थितियां बनती हैं। इसमें से तीन नक्षत्र गण्ड के होते हैं, और तीन मूल के होते हैं।
कर्क राशि तथा आश्लेषा नक्षत्र की समाप्ति साथ-साथ होती है, वही सिंह राशि का समापन और मघा राशि का उदय एक साथ होता है। इसी लिए अश्लेषा को गण्ड संज्ञक और मघा को मूल संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है।
इसी प्रकार वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ होती है, तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ यहीं से होता है। इसलिए इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और ‘मूल’ मूल नक्षत्र कहा जाता है।
मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं। तथा मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरुआत एक साथ होती है। इसलिए इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनी मूल नक्षत्र कहा जाता है।
ऊपर कहे गए तीन गण्ड नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी ग्रह बुध और तीन नक्षत्र मघा, मूल तथा अश्विनि का स्वामी केतु ग्रह है। जन्म दिन से सत्ताइसवें दिन जन्म नक्षत्र की पुनः आवृति होती है, उस समय मूल और गण्ड नक्षत्रों के अशुभ फल की निवृति और शुभ फल की प्राप्ति के लिए गण्डमूल का उपाय कराया जाता है।
मूल शांति के लिए गण्डवास का महत्त्व :-
मूल शांति के समय सर्वप्रथम गण्डवास देखना आवश्यक है कि गण्ड का वास जन्म काल में कहाँ है?
मुहूर्तचिंतामणि के अनुसार —
स्वर्गेशुचि प्रौष्ठपदेशमाघे भूमौ नभः कार्तिकचैत्रपौषे।
मूलं हि अधस्तास्तु तपस्यमार्गवैशाख शुक्रेष्वशुभं च तत्र।।
अर्थात्:- आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन व माघ में गण्ड का वास स्वर्ग लोक में, श्रावण, कार्तिक, चैत्र व पौष मास में गण्डवास मृत्युलोक अथवा पृथ्वी पर, तथा ज्येष्ठ, वैशाख, मार्गशीर्ष व फाल्गुन मास में पाताल अर्थात नरक लोक में गण्ड का वास होता है। जन्म काल में मूल का जिस लोक में वास होता है, उसी लोक का अनिष्ट करता है अतः मृत्यलोक अर्थात धरातल पर वास होने की स्थिति में ही अनिष्ट है।
गण्डमूल नक्षत्र का चरण के अनुसार प्रभाव :-
मुलामघाश्विचरणे प्रथमे पितुश्च पौष्णेन्द्रयोश्च फणिनस्तु चतुर्थपादे।
मातुः पितुः सववपुषो स्ववपुष: अपि करोति नाशं जातो यथा निशि दिनेप्यथ सन्धयोश्च।।
मूल, मघा और अश्विनी के प्रथम चरण का जातक पिता के लिए, रेवती के चौथे चरण और रात्रि में जन्मा जातक माता के लिए, ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का जन्म जातक पिता तथा अश्लेषा के चौथे चरण संधिकाल (दिन से रात, व रात से दिन की संधि) में जन्म हो तो, स्वयं के लिए जातक अरिष्ट कारक होता है।
अश्विनी नक्षत्र का प्रभाव :-
मेष राशि में अश्विनी नक्षत्र शून्य अंश से प्रारम्भ होकर 13:20 अंश तक तक रहता है, जन्म के समय यदि चंद्रमा मेष राशि में शून्य से 2 : 30 अंशों के मध्य अर्थात प्रथम चरण में ही स्थित हो तो, अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक को अपने जीवन काल में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर बच्चा पिता के लिए कष्टकारी होता है, परन्तु हमेशा एेसा नहीं होता।
अश्विनी नक्षत्र :-
प्रथम चरण – पिता को शारीरिक कष्ट एवं हानि।
दूसरा चरण — परिवार में सुख शांति ।
तीसरा चरण — सरकार से लाभ तथा मंत्री पद का लाभ ।
चतुर्थ चरण — परिवार एवं जातक को राज सम्मान तथा ख्याति।
आश्लेषा नक्षत्र का प्रभाव :-
जब चंद्रमा जन्म के समय कर्क राशि में 16 अंश और 40 कला से 30 अंश के मध्य स्थित होता है, तब आश्लेषा नक्षत्र कहलाता है। परन्तु जब चन्द्रमा कर्क के 26 अंश 40 कला से 30 अंश के मध्य हो, अर्थात आश्लेषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हो तो, जातक गण्डमूल में उत्पन्न कहलाता है।
आश्लेषा नक्षत्र :-
प्रथम चरण — शांति और सुख मिलेगा।
दूसरा चरण – धन नाश, बहन-भाईयों को कष्ट।
तृतीय चरण — माता को कष्ट।
चतुर्थ चरण — पिता को कष्ट, आर्थिक हानि।
मघा नक्षत्र का प्रभाव :-
सिंह राशि के आरम्भ के साथ ही मघा नक्षत्र शुरु होता है। परन्तु सिंह राशि में जब चंद्रमा शून्य से लेकर दो अंश और बीस कला अर्थात प्रथम चरण में रहता है, तब ही गंडमूल नक्षत्र माना गया है।
मघा नक्षत्र :-
प्रथम चरण — माता को कष्ट होता है।
दूसरा चरण – पिता को कोई कष्ट या हानि होता है।
तीसरा चरण – जातक सुखी जीवन व्यतीत करता है।
चौथा चरण – जातक को धन विद्या का लाभ, कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र का प्रभाव :-
जब चंद्रमा जन्म के समय वृश्चिक राशि में 16 अंश और 40 कला से 30 अंश के मध्य स्थित होता है, तब ज्येष्ठा नक्षत्र कहलाता है। परन्तु जब चन्द्रमा वृश्चिक में 26 अंश और 40 कला अर्थात ज्येष्ठा के चतुर्थ चरण में प्रवेश कर चुका हो, तो जातक गण्डमूल में उत्पन्न कहलाता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र :-
प्रथम चरण – बड़े भाई-बहनों को कष्ट।
दूसरा चरण – छोटे भाई – बहनों के लिए अशुभ।
तीसरा चरण – माता को कष्ट।
चतुर्थ चरण – स्वयं का नाश।
मूल नक्षत्र का प्रभाव :-
जब चंद्रमा धनु राशि में शून्य से तेरह अंश और बीस मिनट के मध्य स्थित होता है तब यह मूल नक्षत्र में आता है परन्तु जव चन्द्रमा शून्य अंश से तीस मिनट अर्थात प्रथम चरण में हो तो गण्ड मूल में उत्पन्न जातक कहलाता है।
मूल नक्षत्र :-
प्रथम चरण – पिता के जीवन के लिए घातक।
दूसरा चरण – माता के लिए अशुभ, को कष्ट।
तीसरा चरण – धन नाश।
चतुर्थ चरण – जातक सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करता है।
रेवती नक्षत्र का प्रभाव :-
मीन राशि में 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक रेवती नक्षत्र होता है। जिस समय चंद्रमा मीन राशि में 26 अंश और 40 कला से 30 अंश के मध्य रहता है, तो गंडमूल नक्षत्र वाला जातक कहलाता है।
रेवती नक्षत्र :-
प्रथम चरण – जीवन सुख और आराम में व्यतीत होगा।
दूसरा चरण – मेहनत एवं बुद्धि से नौकरी में उच्च पद प्राप्त।
तीसरा चरण – धन-संपत्ति का सुख के साथ धन हानि भी।
चतुर्थ चरण — स्वयं के लिए कष्टकारी होता है।
गण्डमूल नक्षत्र शान्ति के उपाय :-
यदि जातक का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो, उसके पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का चेहरा न देखे और तुरंत पिता कि जेब में फिटकड़ी का टुकड़ा रखवा देना चाहिए। तत्पश्चात् 27 दिन तक प्रतिदिन 27 मूली पत्तों वाली बच्चे के सिर कि तरफ रख देना चाहिए, और पुनः उसे दुसरे दिन चलते पानी में बहा देना चाहिए। यह क्रिया 27 दिनों तक नियमित करना चाहिए। इसके बाद 27 वें दिन विधिवत पूजा करके बच्चे को देखना चाहिए। जिस नक्षत्र में जन्म हुआ है, उससे सम्बन्धित देवता तथा ग्रह की पूजा करनी चाहिए। इससे नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है। अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है। आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना चाहिए। तथा बुधवार के दिन हरी वस्तुओं जैसे हरा धनिया, हरी सब्जी, हरा घास इत्यादि का दान करना चाहिए। मूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंडमूल शांति पूजा करवाई जानी चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवाना चाहिए। इसके लिए सम्बंधित नक्षत्र का मन्त्र जाप, 27 कुओं का जल, 27 तीर्थ स्थलों के कंकण, समुद्र का फेन, 27 छिद्र का घड़ा, 27 पेड़ के पत्ते, 07 निर्धारित अनाज 07 खेडो की मृतिका, आदि दिव्य जड़ी-बूटी औषधियों के द्वारा शांति प्रक्रिया सम्पन्न कराना चाहिए। यह क्रिया 27वें दिन तक जब तक वह नक्षत्र हो 27 माला का जप, हवन तर्पण मार्जन कर 27 लोगो को भोजन कराना चाहिए। पुनः दक्षिणा देकर अपने बालक का चेहरा देखना चाहिए।
ज्योतिष के ग्रंथों में अनेक स्थानों पर गंडांत अर्थात गण्डमूल नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है, रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ और अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही जाती हैं, ज्योतिष शास्त्र में गण्डमूल नक्षत्र के विषय में विस्तार पूर्वक बताया गया है, जातक पारिजात, बृहत्पराशर होरा शास्त्र ,जातकभरणं इत्यादि सभी प्राचीन ग्रंथों में गण्डमूल नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है, गण्डमूल नक्षत्रों के सभी चरणों का फल जातक पर क्या विशेष पड़ता है देखें :-
अश्विनी :-
केतु के पहले गण्डमूल नक्षत्र को अश्विनी नक्षत्र कहा जाता है, अश्विनी नक्षत्र मेष राशि में शून्य अंश से प्रारम्भ होकर तेरह अंश बीस कला तक रहता है। जन्म के समय यदि चंद्रमा इन अंशों के मध्य स्थित हो तो, गण्डमूल नक्षत्र में जन्म का समय माना जाता है, अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक को जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, पूर्व जन्म के कर्मों का फल इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने के रूप में तुरंत सामने आता है, इस नक्षत्र में जन्म होने पर वह बच्चा पिता के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है, लेकिन इस कष्ट को किसी भी नकारात्मकता के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, इसके लिए जन्मकुंडली के बहुत से योगों को देखना आवश्यक है।
अश्विनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म लेने वाले बच्चे को जीवन में सुख व आराम प्राप्त होते हैं, अश्विनी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त होने के अवसर प्राप्त होते हैं, जातक मित्रों से लाभ प्राप्त करता है, घूमने-फिरने में उसकी रूचि अधिक होती है, किसी एक स्थान पर टिके रहना उसे अच्छा नहीं लगता।
अश्विनी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर जातक को राज सम्मान की प्राप्ति अथवा सरकार की ओर उपहार आदि की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही कभी कभी जातक को स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का सामना करना पडता है।
आश्लेषा :-
कर्क राशि में 16 अंश और 40 कला से 30 अंश तक आश्लेषा नक्षत्र रहता है, जब चंद्रमा जन्म के समय कर्क राशि के इन अंशों के मध्य स्थित होता है, तो यह गंडमूल नक्षत्र कहलाता है।
आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर किसी तरह का कोई विशेष अशुभ नहीं होता, परंतु धन की हानि उठानी पड़ती है, यदि इसकी शांति पूजा हो तो, यह शुभ फल प्रदान करता है।
आश्लेषा नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने पर बच्चा अपने बहन-भाईयों के लिए कष्टकारी होता है, या जातक अपनी संपत्ति को नष्ट कर लेता है।
आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म हुआ है तो, माता तथा पिता दोनों को ही कष्ट सहना पड़ता है।
आश्लेषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म हुआ है तो, पिता को आर्थिक हानि तथा शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है।
मघा :-
सिंह राशि के शून्य अंश के साथ मघा नक्षत्र का आरम्भ होता है, सिंह राशि में जब चंद्रमा शून्य से लेकर 13 अंश और 20 कला तक रहता है, तब वह गंडमूल नक्षत्र में कहलाता है।
मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में यदि किसी बच्चे का जन्म होता है तो, माता को कष्ट होने की संभावना बनी रहती है। इस नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने से पिता को कोई कष्ट या हानि का सामना करना पड़ सकता है।
मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म लेने पर बच्चे को जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है। यदि बच्चे का जन्म मघा नक्षत्र के चौथे चरण में होता है, तब उसे कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है, इस नक्षत्र में जन्म होने के कारण बच्चा उच्च शिक्षा भी ग्रहण करने से पीछे नहीं रहता।
ज्येष्ठा :-
वृश्चिक राशि में 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक ज्येष्ठा नक्षत्र होता है। इस समय जब चंद्रमा वृश्चिक राशि में उपरोक्त अंशों के मध्य स्थित हो तो, गंडमूल नक्षत्र होता है।
भारतीय ज्योतिष अनुसार ज्येष्ठा नक्षत्र को अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है, ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने से बच्चे के बड़े भाई-बहनों को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।
ज्येष्ठा के द्वितीय चरण में जन्म होने पर छोटे भाई-बहनों के लिए अशुभ देखा गया है। उन्हें शारीरिक अथवा अन्य कई प्रकार के कष्ट होते हैं।
ज्येष्ठा के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक की माता को स्वास्थ्य की दृष्टि से कष्ट बना रहता है।
इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने से जातक स्वयं के भाग्य के लिए अच्छा नहीं रहता, उसे जीवन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को जीवन में कठिन परिस्थितियों व जटिलताओं का सामना करना पडता है। मैंने देखा है इस चरण में जन्म होने के कारण जातक को जीवनभर दु:ख और पीड़ा का सामना ही करना पड़ता है।
मूल :-
जब चंद्रमा धनु राशि में शून्य से 13 अंश और 20 कला के मध्य स्थित होता है, तब यह गंडमूल नक्षत्र में आता है। बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में होने से पिता के जीवन में कई प्रकार के अच्छे-बुरे परिवर्तन होने लगते हैं।
मूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में बच्चे का जन्म ज्योतिष में माता के लिए अशुभ माना गया है, इस चरण में बच्चे का जन्म होने से माता का जीवन कष्टपूर्ण रहने की संभावना बनती है।
मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ हो, तब उसकी संपत्ति के नष्ट होने की संभावना बनती है, इस चरण में जन्म लेने वाले जातक का संपत्ति से वंचित रहना देखा जा सकता है।
मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर जातक सुखी तथा समृद्ध रहता है, परंतु यदि शांति कराई जाये तब ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस चरण में जन्म लेने पर बच्चे को अपने जीवन में एक बार भारी हानि उठानी पड़ती है।
रेवती :-
मीन राशि में 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक रेवती नक्षत्र होता है। जिस समय चंद्रमा मीन राशि में इन अंशों से गुजर रहा हो तब यह समय गंडमूल नक्षत्र का होता है।
यदि जन्म रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ है तो, जीवन सुख और आराम से व्यतीत होता है। जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न और सुखी रहता है।
रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने वाले जातक अपनी मेहनत, बुद्धि एवं लगन से नौकरी में उच्च पद प्राप्त करते हैं, या व्यवसायिक रूप से कामयाब हो जाते हैं, परंतु फिर भी जातक को बड़े होकर कुछ भूमि की हानि होती है।
रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को धन-संपत्ति का सुख तो प्राप्त होता है, परंतु साथ- साथ धन हानि की भी संभावना बनी रहती है।
रेवती नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाला जातक स्वयं के लिए कष्टकारी साबित होता है। परंतु मतातन्तर से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने माता-पिता दोनों के लिए ही कष्टकारी सिद्ध होते हैं। उनका जीवन काफी संघर्ष से गुजरता है।
गंडमूल नक्षत्रों का जीवन पर प्रभाव :-
गंडमूल दोष :- अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार गंडमूल दोष लगभग हर चौथी-पांचवी कुंडली में उपस्थित पाया जाता है, तथा ज्योतिषियों की धारणा के अनुसार यह दोष कुंडली वाले जातक के जीवन में अड़चनें पैदा करने में सक्षम होता है।
गंडमूल दोष होता क्या है, किसी कुंडली में यह दोष बनता कैसे है, तथा इसके दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं? गंडमूल नक्षत्रों का विचार जन्म के समय की ग्रह स्थिति को देखकर किया जाता है। जैसा की पहले लिखा गया है- अश्वनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती गंडमूल नक्षत्र कहलाते हैं। इन नक्षत्रों में जन्मे बालक का 27 दिन तक उसके पिता द्वारा मुंह देखना वर्जित होता है। जन्म के ठीक 27वें दिन उसी नक्षत्र में इसकी मूल शांति करवाना अति आवश्यक होता है। ऐसा ग्रंथों में वर्णित है। सभी नक्षत्रों के चार-चार चरण होते हैं इन्हीं प्रत्येक चरणों के अनुसार माता, पिता, भाई, बहन या अपने कुल में किसी पर भी नक्षत्र अपना प्रभाव दिखाते हैं। प्रायः इन नक्षत्रों में जन्मे बालक-बालिका स्वयं के लिए भी कष्टप्रद हो सकते हैं।
अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली का चन्द्रमा, रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा तथा मूल नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र में स्थित हो तो, कुंडली धारक का जन्म गंडमूल में हुआ माना जाता है, अर्थात उसकी कुंडली में गंडमूल दोष की उपस्थिति मानी जाती है। 27 नक्षत्रों में से उपर बताए गए 6 नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से यह दोष माना जाता है, जिसका अर्थ यह निकलता है कि यह दोष लगभग हर चौथी-पांचवी कुंडली में बन जाता है, किन्तु यह धारणा ठीक नहीं है। यह दोष हर चौथी-पांचवी कुंडली में नहीं बल्कि हर 18 वीं कुंडली में ही बनता है। आइए अब इस दोष की प्रचलित परिभाषा तथा इसके विशलेषण से निकली परिभाषा की आपस में तुलना करें। प्रचलित परिभाषा के अनुसार यह दोष चन्द्रमा के उपर बताए गए 6 नक्षत्रों में से किसी भी एक चरण में स्थित होने से बन जाता है। जबकि वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार यह दोष चन्द्रमा के इन 6 नक्षत्रों के किसी एक नक्षत्र के किसी एक विशेष चरण में होने से ही बनता है। न कि उस नक्षत्र के चारों चरणो में से किसी भी चरण में स्थित होने से।
जैसे- चन्द्रमा रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में स्थित हों या अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में स्थित हो।
जैसे- चन्द्रमा अश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में स्थित हो या मघा नक्षत्र के पहले चरण में स्थित हो।
जैसे- चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में स्थित हों या मूल नक्षत्र के पहले चरण में स्थित हो।
इस दोष से जुड़े बुरे प्रभावों के बारे में भी जान लीजिए- गंड मूल दोष भिन्न-भिन्न कुंडलियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के बुरे प्रभाव देता है, जिन्हें ठीक से जानने के लिए यह जानना आवश्यक होगा कि कुंडली में चन्द्रमा इन 6 में से किस नक्षत्र में स्थित हैं, और कुंडली के किस भाव में स्थित है? कुंडली के दूसरे सकारात्मक या नकारात्मक ग्रहों का चन्द्रमा पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है, चन्द्रमा जातक की कुंडली में किस भाव का स्वामी है, तथा ऐसे ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य। इस प्रकार से अगर यह दोष कुछ कुंडलियों में बनता भी है तो, भी इसके बुरे प्रभाव अलग-अलग कुंडलियों में अलग-अलग तरह के होते हैं। तथा अन्य दोषों की तरह इस दोष के बुरे प्रभावों को भी किसी विशेष परिभाषा के बंधन में नहीं बांधना चाहिए। बल्कि इस दोष के कारण होने वाले बुरे प्रभावों को उस कुंडली के गहन अध्ययन के बाद ही निश्चित करना चाहिए।
मूल नक्षत्रों की शांति व उपाय :-
मूल नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए इन नक्षत्रों की शांति करवानी आवश्यक मानी गई है, मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं, अन्यथा इनके अनेक प्रभाव लक्षित होते है, जो इस प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं :- इस दोष के निवारण का सबसे उत्तम उपाय इस दोष के निवारण के लिए पूजा करवाना ही है। यह पूजा सामान्य पूजा की तरह न होकर एक तकनीकी पूजा होती है।
जन्म नक्षत्र के अनुसार देवता का पूजन करने से अशुभ फलों में कमी आती है, तथा शुभ फलों की प्राप्ति में सहायता प्राप्त होती है, यदि जातक अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्मा है तो, आपको गणेश जी का पूजन करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्मे जातक को माह के किसी भी एक गुरुवार या बुधवार को हरे रंग के वस्त्र, लहसुनियां आदि में से किसी भी एक वस्तु का दान करना फलदायी रहता है, मंदिर में झंडा फहराने से भी लाभ मिलता है, यदि जातक अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्मा है तो, उसके लिये बुध ग्रह का पूजन करना फलदायी रहता है। इस नक्षत्र में जन्में जातक को माह के किसी भी एक बुधवार को हरी सब्जी, हरा धनिया, पन्ना, कांसे के बर्तन, आंवला आदि वस्तुओं में से किसी भी एक वस्तु का दान करना शुभकारी होता है।
मूल शांति पूजा :-
उपरोक्त उपायों के अतिरिक्त जो उपाय सबसे अधिक प्रचलन में है, उसके अनुसार यदि बच्चा गण्डमूल नक्षत्र में जन्मा है, तो उसके जन्म से ठीक 27वें दिन उसी जन्म नक्षत्र में चंद्रमा के आने पर गंडमूल शांति पूजा करानी चाहिए। ज्येष्ठा मूल या अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिए उक्त नक्षत्रों से संबंधित मंत्रों का जाप करवाना चाहिये, तथा मूल नक्षत्र शान्ति पूजन करना चाहिए, ब्राह्मणों को दान दक्षिणा एवं भोजन कराना चाहिए, यदि किसी कारणवश 27वें दिन यह पूजा नहीं कराई जा सकती, तब माह में जिस दिन चंद्रमा जन्म नक्षत्र में होता है, तब इसकी शांति कराई जा सकती है।
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