• 24 November 2024

जीवनोपयोगी सूत्र

स्कन्द पुराण में कहा गया है कि चित्त के भीतर यदि दोष है तो वह तीर्थ-स्नान से भी शुद्ध नहीं होता है :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant)

सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः कीर्तिस्त्यागानुसारिणी।
अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥

भावार्थ- लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती हैं, कीर्ति त्याग का अनुसरण करती हैं, विद्या अभ्यास का अनुसरण करती है, और बुद्धि कर्म का अनुसरण करती है।

चित्तमन्तर्गतं दुष्टं तीर्थस्नानान्न शुद्धयति ।
शतशोऽपि जलै: र्धौतं सुराभाण्डमिवा शुचि: ।।

स्कन्द पुराण में कहा गया है कि – चित्त के भीतर यदि दोष भरा है तो वह तीर्थ-स्नान से भी शुद्ध नहीं होता है। जैसे मदिरा से भरे हुए घड़े को ऊपर से जल द्वारा सैकड़ों बार धोया जाय तो भी वह पवित्र नहीं होता है। उसी प्रकार दूषित अन्त:करण वाला मनुष्य भी तीर्थ-स्नान से शुद्ध नहीं होता है । इसलिए शास्त्र कहते हैं, कि चित्त की शुद्धि ही सबसे बड़ा तीर्थ-स्नान है।

श्लोक:-
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्।जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।

अर्थ :-
ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किंतु स्वयं परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही कराए।

सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः सुतः, सुशासिता स्री नृपति: सुसेवितः।
सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं,सुदीर्घकालेsपि न याति विक्रियाम्।।

अच्छी रीति से पका हुआ भोजन, विद्यावान पुत्र, सुशिक्षित अर्थात आज्ञाकारिणी स्री, अच्छे प्रकार से प्रजा की सेवा करने वाला राजा, सोच कर कहा हुआ वचन, और विचार कर किया हुआ कार्य ये बहुत काल तक भी नहीं भूलते हैं।

दुर्जनम् प्रथमं वन्दे, सज्जनं तदनन्तरम्।
मुख प्रक्षालनत् पूर्वे गुदा प्रक्षालनम् यथा ॥

पहले कुटिल व्यक्तियों को प्रणाम करना चाहिये, सज्जनों को उसके बाद; जैसे मुँह धोने से पहले, गुदा धोयी जाती है।

निषेवते प्रशस्तानीनिन्दितानी न सेवते।अनास्तिकःश्रद्धानएतत् पण्डितलक्षणम्।।

अर्थ :-
जो अच्छे कर्म करता है, और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है, और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित (विद्वान) होने के लक्षण हैं।

सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः सुतः, सुशासिता स्री नृपति: सुसेवितः।
सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं,सुदीर्घकालेsपि न याति विक्रियाम्।।

अच्छी रीति से पका हुआ भोजन, विद्यावान संतान, सुशिक्षित अर्थात आज्ञाकारिणी स्री, अच्छे प्रकार से प्रजा की सेवा करने वाला राजा, सोच कर कहा हुआ वचन, और विचार कर किया हुआ कार्य ये बहुत काल तक भी नहीं भूलते हैं।

संसार में कुछ लोग सात्विक हैं । वे स्वयं सुखी रहते हैं, और दूसरों को भी सुख देते हैं। जैसे सत्यवादी परोपकारी वेदों के आचरणशील विद्वान सज्जन महात्मा लोग।

कुछ लोग राजसिक हैं, वे दूसरों को थोड़ा थोड़ा दुख देते हैं । जैसे स्वार्थी कामी लोभी क्रोधी मनुष्य आदि ।

और तीसरे प्रकार के लोग तामसिक हैं जो बहुत अधिक दु:ख देते हैं। जैसे चोर डाकू लुटेरे हत्यारे आतंकवादी आदि ।

सात्विक लोगों के साथ संबंध बनाकर रखें । बाकी राजसिक और तामसिक लोगों से तो बहुत ही सावधान रहें । न तो वे स्वयं सुख से जिएंगे, और न ही आपको जीने देंगे।

ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता शौर्यस्य वाक् संयमो
ज्ञानस्योपशमः कुलस्य विनयो वित्तस्य पात्रे व्ययः ।
अक्रोधस्तपसः क्षमा बलवतां धर्मस्य निर्व्याजता
सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परं भूषणम् ॥

ऐश्वर्य का विभूषण सुजनता, शौर्य का वाणी व संयम, ज्ञान का उपाशम, कुल का विनय, वित्त का सत्पात्र पे व्यय, तप का अक्रोध, बलवान का क्षमा, और धर्म का भूषण निखालसता है। पर इन सब गुणों का मूल कारण शील, परं भूषण है ।

व्यक्ति के जीवन में महत्त्व :-
ये प्रतिस्पर्धा का दौर है, यहां हर कोई आगे निकलना चाहता है। ऐसे में अक्सर संस्थानों में ये होता है, कि कुछ चतुर लोग अपना काम तो पूरा कर लेते हैं, लेकिन अपने साथी को उसी काम को टालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, या काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भर देते हैं। श्रेष्ठ व्यक्ति वही होता है, जो अपने काम से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है। संस्थान में उसी का भविष्य सबसे ज्यादा उज्जवल भी होता है। भौतिक सम्पदाओं में आनन्द नहीं है, आनन्द तो चित्त की दशा पर निर्भर करता है। जिसका चित्त शान्त है, वही भौतिक सम्पदाओं का आनन्द ले सकता है, और जिसका चित्त अशान्त है, उसके पास सारे ब्रह्माण्ड की सम्पदा भी हो तो भी वह उसका आनन्द नहीं ले सकता। जो ध्यानी है, जो होशपूर्ण है, उसका चित्त ही शान्त हो सकता, उसके पास कुछ भी हो वह उसी से आनन्दित होगा, महल हो या झोपडी, वह जहाँ भी होगा वहीं स्वर्ग होगा। असल चीज ध्यान है, असली सम्पदा ध्यान है, होश है, भौतिक सम्पदा का मूल्य भी तभी होता है, जब व्यक्ति होश पूर्ण हो ।

For Telephonic Consultation & Best Remedy : www.shukracharya.com
Mob : 09810143516, 09155669922
—————————————-
मेरे और लेख देखें :- shukracharya.com, aapkabhavishya.com, rbdhawan.wordpress.com पर।