• 16 April 2024

प्रचण्ड शक्ति बगलामुखी

जिस प्रकार मनुष्य की प्रकृति सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भेद से तीन प्रकार की होती है, उसी प्रकार तंत्र शास्त्र भी सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भेद से तीन प्रकार का होता है :-

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प्रचण्ड शक्ति है बगलामुखी साधकों के लिये समस्त साधनाओं की कुंजी है ‘तंत्र’! सब सम्प्रदायों की सब प्रकार की साधना का गूढ़ रहस्य तंत्रशास्त्र में निहित है। तंत्र केवल शक्ति उपासना का ही प्रधान अवलम्बन नहीं है, वह सभी साधनाओं का एकमात्र आश्रय है इसमें स्थूलतम साधन प्रणाली से लेकर अति गुह्य मंत्रशास्त्र और अति गुह्यतर योग साधनादि के समस्त क्रिया कौशलों का सविस्तार वर्णन है।

तंत्रान्तर्गत दार्शनिक तत्त्व भी कम सूक्ष्म नहीं हैं। हाँ, ये प्रचलित दर्शन शास्त्रों के समान जटिल भाष्य, टीका और विविध मतवाद द्वारा भायाक्रान्त या दुर्बोध्य नहीं है। जिस प्रकार मनुष्य की प्रकृति सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भेद से तीन प्रकार की होती है, उसी प्रकार तंत्र शास्त्र भी सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भेद से तीन प्रकार का होता है, तथा इसकी साधना प्रणाली भी उसी प्रकार गुणभेद से तीन प्रकार की व्याख्यात होती है। जिसकी जैसी प्रकृति व रुचि हो, तदनुसार ही साधन पथ को ग्रहण कर साधन करने से वह जीवन को कृतकृत्य कर सकता है। शक्ति जिस प्रकार देव स्वभाव वा दैवीगुण युक्त जीवों की जननी रूपा हैं, उसी प्रकार वह असुर गुण युक्त अथवा असुरों की भी जननी है। इसी कारण असुर और देवता दोनों ही उनकी उपासना में प्रवृत्त होते हैं तथा दोनों ही अपने-अपने स्वभावानुसार उपासना की प्रणाली का अवलम्बन करते हैं, एवं उनका साधन फल भी साधना की प्रकृति के अनुसार ही होता है। इसी कारण शास्त्र दोनों प्रकार की साधन प्रणाली बतलाते हैं। यहां पाठकों को एक ऐसी प्रचण्ड शक्ति बगलामुखी की सरल और शास्त्रोक्त साधना पद्धति का उल्लेख किया जा रहा है जिस देवी का स्थान शक्ति के दस महाविद्या स्वरूपों में प्रमुख है, साधक शत्रु बाधा से मुक्ति चाहता हो अथवा कलह नाश तिरस्कार से छुटकारा या भय-मुक्ति चाहता हो तो इसके लिये बगलामुखी देवी की साधना से तीव्र कोई साधना नहीं है।

आज हम यह विशेष तांत्रोक्त सरल साधना पद्धति साधकों के लिये स्पष्ट कर रहे हैं, जो अत्यंत प्रचण्ड तथा गुह्यतम साधना पद्धति है। गुरू भक्ति में पूर्ण समर्पित साधक तथा गुरू पूजन करने वाले साधकों के लिए है, इस तीव्र साधना का आधार गुरू भक्ति ही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को ऐश्वर्यशाली बनकर आनन्द से जीना चाहता है, और यह आनन्द, ऐश्वर्य प्राप्त करनें के लिये निरन्तर इच्छा करता है, तथा प्रयत्न भी करता रहता है, परंतु क्या सब के साथ ऐसा ही होता है? इसका यही उत्तर मिलेगा, कि ऐसा संभव नहीं हो पाता, वास्तविक जीवन में तो कष्ट आते हैं, बार-बार बाधायें उपस्थित होती हैं। जीवन में चार बड़े भयंकर विष हैं, जिनके रहते जीवन में आनन्द आ ही नहीं सकता, ये चार विष हैं-

  1. शत्रु बाधा
  2. कलह
  3. तिरस्कार
  4. भय

वास्तव में शत्रु तो चौबीस घंटे आप पर सवार ही रहता है, मित्र से तो आप कभी-कभी मिलते हैं। यदि आप का भी कोई शत्रु बन गया है तो आप का चिन्तन हर समय उसकी ओर ही रहेगा। आपका विचार प्रवाह पहले की तरह न रहकर बदल जायेगा। आप हर समय आशंकित रहेंगे और सोचने लगेंगे कि ऐसा जीवन क्या जीवन है? आपको कोई पुरस्कृत न करे, तो कोई अन्तर नहीं पड़ता, लेकिन यदि कोई आपका तिरस्कार करे, कोई आपको तुच्छ समझे, तो यह मरण समान ही है।

कलह मानव जीवन की सभी उपलब्धियों, सभी कलाओं का नाश कर देती है। कलह शारीरिक क्षति तो पहुंचाती ही है, मानसिक दृष्टि से भी मनुष्य को दुर्बल कर देती है। वह कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहता है, लेकिन यदि नित्य प्रति कलह का सामना करना पड़े, चाहे वह कलह पारिवारिक हो, अथवा बाहर के किसी शत्रु के द्वारा उत्पन्न की गयी हो। जीवन का आनन्द तत्व तो समाप्त हो ही जाता है।

चौथी महत्वपूर्ण विपरीत स्थिति भय है, यह भय शत्रु से भी हो सकता है, अपने अधिकारी से भी हो सकता है और अपने व्यापारिक प्रतिस्पर्धी से भी हो सकता है। भय के तो सैकड़ों प्रकार हैं, इसमें से एक भी प्रकार का भय यदि मनुष्य को है तो वह सामान्य रूप से जीवनयापन नहीं कर सकता। यही चारों स्थितियां ही विष हैं, और विष को अपने जीवन से दूर करने का, नष्ट करने का एक उपाय है, वह है- गुरू की भक्ति से गुरू कृपा, प्राप्त कर साधना में सिद्धि प्राप्त कर लेना।

बगलामुखी साधना प्रयोगः-

देवी बगलामुखी की सिद्धि मंगलवार की चतुर्दशी से आरम्भ कर 40 दिन में सवा लाख मंत्र जप द्वारा की जाती है। विस्तृत साधना के तीन खण्ड प्रातः काल, मध्याह्न काल, तथा सायंकाल की साधना का विशेष क्रम है, और इस तांत्रोक्त साधना को इसी रूप में सम्पन्न करने से पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। परंतु बगलामुखी साधना पर्वकाल (होली, दीपावली, महाशिवरात्रि) में केवल एक रात्रि में ही सिद्ध की जा सकती है। इसके अतिरिक्त बगलामुखी जयंती पर्व भी बगलामुखी साधना के लिये उपयुक्त है। इस दिन साधक यह साधना सम्पन्न कर सकते हैं।

साधना के लिये जिस सामग्री की आवश्यकता होती है वह इस प्रकार है- एक लकडी की चैकी तथा उस पर बिछाने के लिये पीला वस्त्र, पीले पुष्प, पीले रंगे हुये चावल, कुंकुम, पीली मौली, 21 साबुत सुपारी, हल्दी का चूर्ण, पीले रंग की नैवेद्य (मिठाई), हल्दी की 108 दाने की प्राण प्रतिष्ठित माला, तथा स्वर्णपत्र पर बने अथवा स्वर्ण आलेपित प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी महायंत्र, शुद्ध मुहूर्त में निर्मित स्वर्ण के कवच में रक्षा कवच, तथा बगलामुखी देवी का रंगीन चित्र।

इस साधना में बगलामुखी देवी का चित्र देखे तो इस देवी का स्वरूप दस महाविद्याओं में सबसे निराला लगता है। यह तीन नेत्र वाली देवी अपने एक हाथ में मुग्दर और दूसरे में शत्रु की जीभ लिये तीव्रतम प्रचण्ड रूप धारण किये तीनों लोकों को स्तम्भित कर देने वाली शक्ति है। देवी के इस स्वरूप में सोलह शक्तियाँ समाहित हैं-

  1. मंगला
  2. स्तम्भिनी
  3. जृम्भिणी
  4. मोहिनी
  5. वश्या
  6. वला
  7. बलका
  8. भूधरा
  9. कल्मषा
  10. धात्री
  11. कलना
  12. कलाकर्षिणी
  13. भ्राम्रिका
  14. मन्दगमा
  15. भोगस्था
  16. भाविका

यह प्रचण्ड साधना तीव्रतम साधना की श्रेणी में आती है, अतः किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही गुरू आज्ञा से की जानी चाहिए, अन्यथा इससे भयंकर दोष पैदा होकर शरीर का क्षय करने लग जाते हैं।

ऊपर लिखे जो चार दोष हैं, उनके निवारण हेतु विशेष संकल्प लेकर यह प्रयोग आरम्भ करना चाहिए। जब तक इन चार में से कोई एक कष्ट न हो तब तक गुरू भी इस साधना की आज्ञा नहीं देते-

  1. भयंकर शत्रु बाधा
  2. दीर्घकालिक कलह
  3. अति तिरस्कार
  4. प्राण हरने वाला भय।

कई सामान्य साधक जिन्हें पूजन विधि का पूर्ण ज्ञान नहीं होता, उनसे साधना में गलतियाँ हो सकती हैं, अतः शास्त्रों में विधान है, कि यदि पहले गुरू आज्ञा और गुरू पूजन कर के प्राणायाम साधन तथा गायत्री पाठ करके यह साधना प्रारम्भ की जाय, तो कोई साधनात्मक दोष नहीं रहता। साधना की आज्ञा गुरू से लेकर शुभ मुहूर्त अथवा पर्वकाल (दीपावली की रात्रि) में स्नानादि कर शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर पीले ऊनी आसन पर बैठकर प्रथम हाथ में थोडे पीले रंगे हुये चावल तथा पवित्र जल लेकर संकल्प लिया जाता है-

संकल्प मंत्र-

ऊँ अस्य श्रीबगलामुखी महामंत्रस्य नारद ऋषिः वृहतीश्छन्दः श्रीबगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः मम् सकलकामनासिद्धयर्थे जपे विनियोगः

अब सामने एक लकडी की चैकी पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर बगलामुखी देवी का रंगीन चित्र स्थापित करें (इस चित्र को पहले ही फ्रेम करवा लें) फिर पीतल का दीपक शुद्ध घी से प्रज्जवलित करें। पीले पुष्प, पीले रंगे हुये चावल, साबुत सुपारी तथा एक पात्र में 250 ग्रा. हल्दी चूर्ण, हल्दी की माला तथा अन्य साधना सामग्री रखकर अर्धमुद्रित नेत्रों से देवी का ध्यान तथा मानसिक आहवाहन् करें-

ध्यान मंत्र-

दुष्ट स्तम्भन मुग्र विध्न शमनं दारिद्रîविच्छेदनं भूमद्धीशमनं चलन्मृगद्दशां चेतः समाकर्षणम्। सौभाग्यैक निकेतन मम दृशोः कारूण्यपूर्णेक्षणो शत्रो र्मारण माविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः।।

करूणापूर्ण नेत्रों वाली माता बगलामुखी मेरे समक्ष आपका वह स्वरूप प्रगट हो जो शत्रुओं की शत्रुता को नष्ट तथा दुष्टों का स्तम्भन, भयंकर विध्नों का निवारण, दरिद्रता का विनाश, राजभय का शमन करने वाला है, मेरे नेत्रों के लिए सौभाग्य का एक मात्र निकेतन है, तुम्हारे चरणों में सादर प्रणाम !!

अब स्वर्णपत्र पर बने अथवा स्वर्ण आलेपित प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी महायंत्र तथा शुद्ध मुहूर्त में निर्मित स्वर्ण के कवच में रक्षा कवच को चैकी पर देवी के चित्र के सामने रखकर देवी के चित्र के साथ पूजन करें- पूजन में पीले पुष्प, पीले कुंकुम, हल्दी तथा मौली समर्पित करते हुये पूजा सम्पन्न करें, देवी के समक्ष पीले रंग की नैवेद्य (मिठाई) अर्पित करें। अब देवी की सोलह शक्तियों का पूजन प्रारम्भ करें, इस हेतु निम्न एक-एक मंत्र पढ़ते हुए सोलह बगलामुखी शक्तियों की स्थापना करें (सोलह स्थानो पर मंत्र पढते हुये एक-एक मुट्ठी हल्दी का चूर्ण रखें)।

ऊँ मंगलायै नमः

ऊँ स्तम्भिन्यै नमः

ऊँ जृम्भिण्यै नमः

ऊँ मोहिन्यै नमः

ऊँ वश्यायै नमः

ऊँ वलायै नमः

ऊँ बलकायै नमः

ऊँ भूधरायै नमः

ऊँ कल्मषायै नमः

ऊँ धात्रयै नमः

ऊँ कलनायै नमः

ऊँ कालाकर्षिण्यै नमः

ऊँ भ्रामिकायै नमः

ऊँ मन्दगमनायै नमः

ऊँ भोगस्थायै नमः

ऊँ भाविकायै नमः

अब प्रत्येक देवी शक्ति के आगे एक साबुत सुपारी रखें और पीले चावल तथा पीले पुष्प अर्पित करें। और फिर हल्दी की माला से जप आरम्भ कर सूर्योदय तक मंत्र का जप करते रहें। यदि जप के बीच में लघुशंका के लिये उठना पडे तब देवी को विलम्ब की प्रार्थना करके उठें और दोबारा देवी का ध्यान करते हुये जप आरम्भ कर सूर्योदय तक जप करें दीपक में घी की आवश्यकता हो तो चम्मच से डालते रहें।

जप मंत्र-

ऊँ हृीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जीह्नां कील्य बुद्विं विनाश्य हृीं ऊँ स्वाहाः।

ओम र्हिं बाग्लमुखी सरवदुस्ताना वाचम मुखाम पदम स्तंभयाए जीव्हां कीलयाए बुधीं विनाश्याए र्हिं ओम स्वाहा

जप पूर्ण होने पर जप समर्पण मंत्र का पाठ हाथ में माला लेकर हाथ जोडकर प्रार्थना करते हुये करें-

जप समर्पण मंत्र-

गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादात् सुरेश्वर।।

अर्थात् हे ‘देवी ! सुरेश्वरी !! आप गोपनीय से भी अति गोपनीय वस्तु की गोप्ता (संरक्षक) हैं, हमारे द्वारा किये गये इस जप को ग्रहण करें और आपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो। इस के पश्चात् देवी को मानसिक विदाई देते हुये नमस्कार करें और देवी को जो नवैदय का भोग लगाया था उस मिष्ठान का परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें। प्रज्जवलित दीपक शांत होने पर स्वर्ण आलेपित प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी महायंत्र तथा देवी बगलामुखी के रंगीन चित्र को छोडकर शेष सामग्री हटा लें। शुद्ध मुहूर्त में निर्मित स्वर्ण के कवच में रक्षा कवच को देवी के चित्र के सामने से हटाकर अपने गले में पीले धागे के साथ श्रद्धापूर्वक धारण करें और हमेशा धारण किये रहें। (यह कवच गुरूजी द्वारा विशेष रूप से शुद्ध मुहर्त में निर्माण किया गया है।) इस कवच के प्रभाव से शत्रु निर्बल तथा स्वयं के पराक्रम में वृद्धि होती है। शेष सभी सामग्री फूल, चावल, हल्दी व सुपारी इत्यादि जल में विसर्जित कर दें। देवी के चित्र को तथा बगलामुखी यंत्र को अपने पूजा स्थान में ही स्थापित कर दें।

नोट- इस विशेष साधना को करने से पहले गुरूजी से आज्ञा लेकर साधना सामग्री का कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।

ज्योतिषीय समाधान के लिए :-

09810143516, 09155669922
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