नाग पंचमी
हमारे धर्म ग्रन्थों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है :-
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पुराणें के अनुसार नागों की अनेक जातियाँ और प्रजातियाँ हैं। भविष्य पुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरूप एवं जातियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है।
श्रावणमास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्यौहार नागों को समर्पित है। इस त्यौहार पर व्रत पूर्वक नागों का अर्चन-पूजन होता है। व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृत्तिका से नाग बनाकर पुष्प, गंध, धूप-दीप एवं विविध नैवेद्यों से नागों का पूजन होता है।
नाग अथवा सर्प पूजा की परम्परा पूरे भारतवर्ष में प्राचीनकाल से रही है, प्रत्येक गाँव में ऐसा स्थान अवश्य होता है, जिसमें नाग देव की प्रतिमा बनी होती है, और उसका पूजन किया जाता है।
नागपंचमी के दिन को तो एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसके पीछे भी विशेष कारण है जिस का वर्णन आगे इसी लेख में करेंगे। समय के अनुसार मूल स्वरूप को अवश्य भुला दिया गया है।
क्या नाग देवता हैं?
जिस प्रकार मनुष्य योनि है, उसी प्रकार नाग भी योनि भी है, प्राचीन कथाओं में उल्लेख मिलता है कि पहले नागों का स्वरूप मनुष्य की भांति होता था, लेकिन नागों को विष्णु की अनन्य भक्ति के कारण वरदान प्राप्त होकर इनका स्वरूप बदल दिया गया, और इनका स्थान विष्णु की शय्या के रूप में हो गया, नाग ही ऐसे देव हैं, जिन्हें विष्णु का साथ हर समय मिलता है, और भगवान शंकर के गले में शोभा पाते हैं, भगवान भास्कर (सूर्य) के रथ के अश्व भी नाग का ही स्वरूप हैं।
भय एक ऐसा भाव है, जिससे कि बली से बली व्यक्ति, बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति, भी अपने को शक्तिहीन समझता है। कोई अपने शत्रुओं से भय खाता है, कोई अपने अधिकारी से भय खाता है, कोई भूत-प्रेत से भयभीत रहता है, भयभीत व्यक्ति उन्नति की राह पर कदम नहीं बढ़ा सकता है, भय का नाश, और भय पर विजय प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है, और नाग, सर्प देवता भय के प्रतीक हैं, इसलिए इनकी पूजा का विधान हर जगह मिलता है।
नाग पंचमी रक्षात्मक प्रार्थना का पर्व-
आमतौर पर नागपंचमी के पर्व को महिलाओं का ही पर्व माना जाता है, जो कि बिल्कुल गलत है, ‘‘नाग’’ वास्तव में कुण्डलिनी शक्ति के स्वरूप हैं, यह विशेष पर्व कुण्डलिनी शक्ति की उपासना का पर्व है। इस पर्व पर छोटा-मोटा कुण्डलिनी जागरण प्रयोग कर व्यक्ति किसी भी प्रकार की भय बाधा से मुक्ति पा सकता है।
इसका विधान भी अत्यंत सरल है-
नागपंचमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर सूर्योदय के साथ सबसे पहले शिव पूजा संपन्न करनी चाहिए, शिव पूजा में शिवजी जी का ध्यान कर शिवलिंग पर दूध मिश्रित जल चढ़ायें और एक माला ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करें। नाग पूजा में साधक अपने स्थान पर भी पूजा संपन्न कर सकता है, और किसी देवालय में भी।
किसी धातु का बना छोटा सा नाग का स्वरूप ले लें या फिर एक सफेद कागज पर नाग देवता का चित्र बना लें। इसे अपने पूजा स्थान में सामने सिंदूर से रंगे चावलों पर स्थापित करें, और एक पात्र में दूध नैवेद्य स्वरूप रखें। सर्वप्रथम अपने सदगुरू का ध्यान कर, सर्प भय निवृति हेतु प्रार्थना करें, तत्पश्चात नागदेवता का ध्यान करें कि-
हे नागदेव! मेरे समस्त भय, मेरी समस्त पीड़ाओं का नाश करें, मेरे शरीर में अहंकार रूपी विष को दूर करें, मेरे शरीर में व्याप्त क्रोध रूपी विष से मेरी रक्षा करें, इसके बाद नागदेव के चित्र पर सिंदूर का लेप करें, तथा इसी सिंदूर से अपने स्वयं के तिलक लगायें। इस के बाद अग्र लिखित मंत्र का 21 बार पाठ करते हुये नाग देवता तथा कुण्डलिनी शक्ति का ध्यान करें।
मंत्र-
जरत्कारूर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी। वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।
जरत्कारूप्रिया स्तीकमाता विषहरेति च। महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता।।
द्वादशैतानि नमानि पूजाकाले तु यः पठेत्। तस्य नागभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
थोड़ी देर शांत होकर बैठ जायें तथा ऊँ नमः शिवाय का जप करते रहें, इससे भय का नाश होता है और बड़ी से बड़ी बाधा से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
पूजन के बाद नागदेव के सम्मुख रखे दूध को प्रसाद स्वरूप स्वयं ग्रहण करें, यदि यह दूध किसी अस्वस्थ व्यक्ति को पिलाया जाये, तो उसे दिन-प्रतिदिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा। यदि कोई किसी पुराने रोग से पीड़ित हो तो यह प्रयोग 7 दिन तक करें, लेकिन पूजन से पहले अस्वस्थ व्यक्ति के नाम से संकल्प अवश्य लें। इस पूजा का प्रभाव इतना अनुकूल रहता है कि विशेष कार्य पर जाते समय नागदेव का ध्यान कर, यदि आप प्रबल से प्रबल शत्रु के पास भी चले जाते हैं, तो वह शत्रु आप से सत व्यवहार ही करेगा, हानि देने की बात ही दूर रही।
संतान प्राप्ति का नाग शान्ति प्रयोग-
जो स्त्रियाँ नागपंचमी के दिन नागदेव का विधि-विधान सहित पूजन करती हैं, उनकी संतान प्राप्ति की कामना अवश्य पूर्ण होती है। स्त्रियों को अपनी संतान रक्षा हेतु भी नाग शान्ति प्रयोग करना चाहिये। नागपंचमी के दिन सांयकाल शिव का ध्यान करते हुए नाग देव का पूजन करना चाहिए, इसमें पूजन तो ऊपर दी गई विधि के अनुसार ही करना है किंतु अंतर केवल इतना ही है, कि संतान प्राप्ति तथा रक्षा हेतु आगे दिये मंत्र का 51 बार जप करें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पùनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
संतान प्राप्यते संतान रक्षा तथा।
सर्वबाधा नास्ति सर्वत्र सिद्धि भवेत्।।
यह प्रयोग नागपंचमी से लेकर सात दिन तक संपन्न करें। इस प्रयोग को करने से भयबाधा व संतान की कामना पूर्ति अवश्य होती है।
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