• 24 November 2024

त्राटक

त्राटक साधना :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant)

मानवी कल्पनात्मक विचार शक्ति का अत्यधिक प्रवाह नेत्रों द्वारा ही होता है, जिस प्रकार कल्पनात्मक विचार शक्ति को सीमाबद्ध करने के लिए ध्यान योग की साध ना की जाती है, उसी प्रकार इस मानवी विद्युत प्रवाह को दिशा विशेष में प्रयुक्त करने के लिए नेत्रों की ईक्षण शक्ति को साधा जाता है। इस प्रक्रिया को त्राटक का नाम दिया गया है। सरल भाषा में अपनी दृष्टि किसी एक वस्तु पर स्थिर करने की क्रिया को त्राटक कहा जाता है। वास्तविक ध्यानावस्था प्राप्त करने हेतु अपनी दृष्टि को स्थिर कर पाने की क्षमता अत्यंत आवश्यक है।

यदि एक ध्यान योगी अपने नेत्रों को स्थिर नहीं कर पाता तो वह सूक्ष्म अवस्था पाने में असफल रहेगा। ऐसा मुख्यतः इसलिए क्योंकि यदि आप अपनी पाँच कर्मेन्द्रियों– नेत्र, नासिका, कान, मुख एवं त्वचा द्वारा अपने शरीर को सदा कुछ न कुछ प्रदान करते रहेंगे तो आपकी देह के प्रति ध्यान भी बना रहेगा। यह ब्रह्मांड से एकाकार होने में बाधा है। यह आपको ध्यानावस्था में जाने से रोकता है, उस दिव्य आनंद से दूर रखता है, जिसे समाधि कहा जाता है। एक लंबे अंतराल तक, बिना हिले डुले, अविचल, एक ही स्थिति में बैठे रहने की योग्यता एक सच्चे योगी का अचूक शस्त्र है। अपनी दृष्टि को एक बिन्दु पर स्थिर करने की योग्यता एक सिद्ध योगी ही प्राप्त कर सकता है।

त्राटक के प्रयोग :-
त्राटक आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों ही शक्तियों को प्राप्त करने के मकसद से किया जा सकता है।त्राटक अपने प्रकार से किया जा सकता है:- दीपक त्राटक, मोमबत्ती त्राटक, बिन्दु त्राटक, शक्ति चक्र त्राटक इत्यादि। प्रज्ज्वलित दीपक या जलती हुई मोमबत्ती की लौ पर नजर जमाना दीपक त्राटक कहलाता है, और सर्वश्रेष्ठ त्राटक में से एक है। इस त्राटक से हम अपनी आँखों में तेज उत्पन्न कर सकते हैं, जिसका प्रयोग दूसरों को आकर्षित करने के लिए कर सकते हैं, इसका अभ्यास मान-सम्मान की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

यह त्राटक हमें क्रोधी या उग्र भी बना सकता है, क्यों की इससे आँखों में तेज उत्पन होता है, और ये तेज हमें व्याकुल भी कर सकता है, बेहतर होगा की इसके साथ-साथ हमें मन को भी साधना चाहिये।

त्राटक की विधि :-
1. सुख आसन में, हो सके तो घुटने मोड़ कर, बैठ जायें।

2. अपने सामने, लगभग 3 फुट की दूरी पर, एक शुद्ध घी का दीपक जला लें।

3. ध्यान रखें की इस दीपक की लौ आपके नेत्रों के समान ऊंचाई में हो।

4. कम से कम 10 मिनट तक बिना पलक झपकाये उस लौ को निहारते रहें। प्रतिदिन क्रमशः समयावधि को थोड़ा थोड़ा बढ़ाते जायें।

5. वास्तविक अभ्यास के दौरान अपने इधर उधर भटकते विचारों को नियंत्रित करें। (अपने मन को ध्यान की वस्तु पर लाते रहें।) मान लें कि आप दस मिनट की अवधि के लिए त्राटक का अभ्यास कर रहे हैं। उस दस मिनट के लिए आप को एक चट्टान की भांति स्थिर रहना है, साथ ही अपने नेत्रों को भी अविचल रखना है। यह अति आवश्यक है कि आप पलकें बिलकुल भी न झपकायें। नेत्रों से अश्रुपात आरंभ हो जाएगा, किन्तु आपको स्थिर ही रहना है। जब जब मन भटके, उसे धीरे से, प्रेमपूर्वक पुनः ध्यान की वस्तु पर स्थापित करें। आप त्राटक के लिए उपरोक्त किसी भी वस्तु का चयन कर सकते हैं, किन्तु यदि दीपक कि ज्योति पर यह अभ्यास हो तो इसका आपके मन पर एक निर्मल, पावक प्रभाव पड़ता है। इस अभ्यास को दिन में कम से कम दो बार अवश्य करना चाहिये। (प्रातःकाल व रात्रि को सोने से पूर्व)। इस अभ्यास का एक भाग यह है कि आप धीरे धीरे व अनुशासित रूप से नेत्रों को स्थिर रखने की अवधि को बढ़ाते चलें। इसके लिए संकल्प बल व धैर्य आवश्यक है। यदि आप में यह दोनों गुण विद्यमान हैं, तो आपको इस अभ्यास से उत्तम लाभ अवश्य मिलेगा।

त्राटक का उचित रूप से किया गया अभ्यास साधक के मन को स्थिर व शांत करने में अति सहायक होता है। एकनिष्ठ एकाग्रता व उत्तम स्मरण शक्ति एवं स्मरण किए हुए तथ्यों को पुनः मानस पटल पर लाने में यह एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। तथापि, इसके लाभ यहीं तक सीमित नही है। आपकी देह दस विभिन्न प्रकार की वात ऊर्जाओं द्वारा संचालित होती है। पाँच प्रकार की वात ऊर्जा – नाग, कूर्म, कर्कर, देवदत्त व धनंजय। इनका कार्य क्षेत्र क्रमशः डकार, छींकना, नेत्रों का झपकना, जम्हाई लेना तथा त्वचा पर खिंचाव ऐंठन करना है।

त्राटक के अभ्यास से यह पाँच वात ऊर्जायें स्थिर होती हैं, जिससे शरीर की उपरोक्त स्वचालित क्रियाओं पर आपका संयम होने लगता है। एक उन्नत श्रेणी के साधक के लिए यह संयम अनिवार्य भी है, यदि आप अपने अन्तःकरण के उस शांत, दिव्य स्वरूप का अविरल आस्वादन पाने के इच्छुक हैं। ध्यानावस्था के दौरान यदि उपरोक्त शारीरिक क्रियाओं में से कोई भी स्वतः आ जाए अथवा होने लगे तो तत्काल क्षण देह बोध हो जाता है, जो दिव्य से एकाकार होने में बाधक हो जाता है।

सावधानी जो आवश्यक है :-
किसी भी विधि से यह साधना करें, लेकिन ध्यान रखें साधना के लिए बैठते वक्त पेट न तो पूरी तरह खाली हो, और ना पूरी तरह भरा हो। खाली पेट गैस बनाता है, पेट दर्द की शिकायत हो सकती है। इसलिए थोड़ा बहुत खाकर बैठना आवश्यक है। परंतु पूरी तरह भरे पेट से बैठने से एकाग्र होना असंभव है।

यदि परिवार के मध्य रहते हैं, तो घर के सभी सदस्यों को पता होना चाहिये कि इस समय आपको आवाज नहीं देना है। फोन अलार्म आदि बंद रखें। यहाँ तक कि दरवाजे पर दस्तक होने पर कौन द्वार खोलेगा यह भी सुनिचित कर लें। जल्दी जल्दी साधना विधि न बदले। जिस विधि का चुनाव करें उस पर कम से कम छह महीने अवश्य परिश्रम करें।

त्राटक साधना से लाभ :-
त्राटक साधना तंत्र मंत्र से सर्वथा भिन्न साधना मार्ग है, इसे किसी निश्चित दिन, निश्चित रंग के कपड़े प्रसाद धूप दीप अगरबत्ती से कुछ भी लेना देना नहीं है। इसकी सफलता आप के आत्म शक्ति पर निर्भर करती है। जिसे अंग्रेजी में विलपावर कहा जाता है। यह एक सतत प्रक्रिया है। इस के लिए दो-माह चार माह की सीमा में बांधने के बजाय इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। जिस प्रकार बैटरी कुछ दिन बाद डिस्चार्ज हो जाती है, उसी प्रकार इस साधना के बाद प्राप्त हुआ ओज धीरे धीरे मंद पड़ जाता है। यह ओज निरंतर बनी रहे, इस के लिए प्रतिदिन थोड़ी ही देर के लिए सही त्राटक अवश्य करें। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि किसी भी विधि से यह साधना करने पर लाभ और हानि एक समान ही हैं।

इस साधना से चेहरे पर कान्ति आ जाती है। चेहरे पर आकर्षण उत्पन्न होता है। नेत्र में इतना तेज आ जाता है कि किसी को देखते ही वह सम्मोहित हो जाता है। यह सम्मोहन तंत्र-मंत्र से प्राप्त सम्मोहन शक्ति से भिन्न है। इसे सौम्य सम्मोहन कह सकते हैं, जो आपमें आई सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से उत्पन्न होता है। स्वभाव में आमूल चूल परिवर्तन हो जाता है। पहले बात बात पर उत्तेजित होने वाला इंसान इस साधना के बाद धीर गंभीर और सोच समझकर निर्णय लेने वाला बन जाता है। इस साधना के बाद एकाग्रता अत्यधिक बढ़ जाती है। छात्रों के लिए यह साधना रामबाण है। त्राटक अभ्यास के बाद कठिन से कठिन विषय पर ध्यान केन्द्रित करना आसान हो जाता है।

त्राटक साधना से हानि :-

यद्यपि यह साधना अत्यंत सरल है, मात्र इच्छा शक्ति के दम पर साधक अनेक विशिष्ट गुणो का स्वामी बन सकता है। तथापि त्रुटि होने पर कुछ हानि भी हो सकती हैं, जैसे– साधना काल में अचानक तेज ध्वनि होने पर साधक अचेत हो सकता है। यहाँ तक कि हृदय गति भी रुक सकती है। लगातार एकटक देखने से कभी-कभी आंखो में समस्या आने लगती है। आँसू निकल आते हैं, या साधना के तुरंत बाद देखने में समस्या होने लगती है। दो चार दिन साधना करने के बाद नेत्र चिकित्सक से इसके प्रभाव की जांच करवा लेना उचित होगा। यदि पहले से नेत्र संबंधी समस्या हो तो यह साधना न करें। इस साधना को आरम्भ करने से पहले इस विषय के अच्छे जानकार से परामर्श अवश्य करें।

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