सूर्य रेखा
इसमें संदेह नहीं कि जिस समय यह रेखा (सूर्य-रेखा) मनुष्य के हाथ में जब आरम्भ होती है उसी समय से उसके भाग्य में कुछ विशेष सुधार होने लग जाता है :-
Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),
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मनुष्य के हाथ में- सूर्य-रेखा को ‘रविरेखा’ या ‘तेजस्वी-रेखा’ भी कहा जाता हैं, कारण यह भाग्य-रेखा से होने वाले उज्जवल भविष्य या सौभाग्य को ठीक उसी प्रकार चमका देती हैं जिस प्रकार सूर्य अपने प्रखर प्रकाश से रात्रि के अंधकार को दूर करता है। जिस प्रकार से हिम के ढके हुई पर्वत श्रृंखलाओं को विशेष चमकाता हैं। इससे यह न समझ लेना चाहिये कि सूर्य-रेखा के अभाव में हाथ में पड़ी शुभ भाग्य-रेखा का कोई मूल्य ही नहीं होता या उसका प्रभाव ही मध्यम हो जाता हैं समझने के लिए उपर्युक्त शिखर-श्रृंखलाओं को ही ले लीजिये। वे बर्फ से ढंकी रहती हैं बर्फ का गुण हैं चमकना, चाहे रात्रि हो या दिन; उसके स्वाभाविक गुण चमकने में कोई अन्तर नहीं आता- वह सदा एक सा चमकता ही रहता हैं। सूर्य की किरणों से अन्तर केवल इतना ही होता हैं कि वे अपने सहयोग से उसमें एक विशेष प्रकार की चमक उत्पन्न कर देती है। और वह पहले की अपेक्षा और अधिक चमकने लग जाता है। यही बात रेखाओं के सम्बन्ध में भी है। यदि भाग्यरेखा के साथ सूर्यरेखा भी अधिक बलवान् होकर पड़ी हो तो वह सोने में सुगन्ध का काम करती हैं, अर्थात् यों कहिये कि एक राजा को चक्रवर्ती समा्रट बनाने का काम करती है, यही भाव है।
यदि किसी के हाथ में भाग्य-रेखा निर्बल हो या उसका सर्वथा ही अभाव हो तो सुन्दर, छोटी सी सूर्य-रेखा के प्रभाव से वह व्यक्ति (स्त्री या पुरूष) वैसा प्रभावशाली न हो, फिर भी रजोगुणी अवश्य होगा। ऐसे व्यक्ति में सदैव धनाढय होने की, जनता में सम्मान पाने की या कोई बड़ा नेता बनने की अभिलाषाएँ बनी रहती हैं। वह दस्तकार न होकर भी दस्तकारों से प्रेम रखता हैं किसी विषय में पूर्ण ज्ञान रखते हुए भी वह अपनी योग्यता दूसरों पर प्रकट नहीं कर पाता। साधारण शुभ भाग्यरेखा के साथ भी सूर्य-रेखा अधिक उपयोगी समझी जाती है। इसमें संदेह नहीं कि जिस समय यह रेखा (सूर्य-रेखा) मनुष्य के हाथ में जब आरम्भ होती है उसी समय से उसके भाग्य में कुछ विशेष सुधार होने लग जाता है। यह रेखा निम्नलिखित सात स्थानों से आरम्भ होती है-
(1) मणिबन्ध या उसके समीप से।
(2) चन्द्रक्षेत्र से आरम्भ होकर सूर्यागुंलि की ओर
(3) जीवन-रेखा से।
(4) भाग्य-रेखा से प्रारम्भ होती है।
(5) मंगलक्षेत्र या हथेली के मध्य-भाग से।
(6) मस्तक-रेखा को स्पर्शकर
(7) हृदय-रेखा को स्पर्श करती (सूर्य के स्थान पर जाती है)।
इन सात स्थानों से प्रारम्भ होने वाली सूर्य-रेखा हमें समय समय पर हमारी दुर्घटनाओं या हमारे भाग्यसम्बन्धी अनेक अनेक जटिल प्रश्नों को हल करती है। यहां पृथक्-पृथक् सातों प्रकारों का विस्तृत विचार किया जा रहा है।
(1) यदि सूर्य-रेखा मणिबन्ध या उसके समीप से आरम्भ होकर भाग्य-रेखा के निकट समानान्तर अपने स्थान को जा रही हो तो यह सबसे उत्तम मानी गयी है। ऐसी रेखावाला व्यक्ति स्त्री या पुरूष प्रतिभा ओर भाग्य का मेल होने से, जिस काम को हाथ लगाता या आरंभ करता हैं उसमें पूर्णतः सफल होता है।
(2) इसके विपरीत यदि सूर्य-रेखा चन्द्रक्षेत्र से आरम्भ होती हो तो इसमें संदेह नहीं कि उसका भाग्य चमकेगा, पर उसकी यह उन्नति निजी परिश्रम द्वारा न होकर दूसरों की इच्छा ओर सहायता पर अधिक निर्भर करती हैं संभव है, उसे उसके मित्र सहायता करें, या इस सम्बन्ध में अपनी कोई शुभ सम्मति दें जिससे वह उन्नति के पथ पर अग्रसर हो।
चन्द्रक्षेत्र से आरम्भ होकर अनामिकांगुलि तक पहुंचने वाली गहरी सूर्यरेखा के सम्बन्ध में यह बात अवश्य ध्यान में रखने की है। ऐसे व्यक्ति का जीवन अनेक घटनाओं से भरा और संदेह पूर्ण होता है। उसमें बहुुत से परिवर्तन भी होते हें किन्तु यदि रेखा चन्द्रस्थान से निकलकर भाग्य-रेखा के समानान्तर जा रही हो तो भविष्य सुखमय हो सकता है। यदि प्रेम बाधक न हो, और विचारों में दृढ़ता होने के साथ ही साथ मस्तकरेखा भी अपना फल शुभ दे रही हो। निश्चय ही ऐसा व्यक्ति (स्त्री या पुरूष) तेजस्वी और प्रसन्नचित्त होता है।, फिर भी उसमें एक बड़ा भारी दोष यह पाया जाता है कि उसके विचार कभी स्थिर नहीं रहते। सर्वसारण स्त्री या पुरूषों का उस पर अधिक प्रभाव पड़ता है। और अनायास ही वह अपने पूर्वनिश्चित विचारों को बदल देता हैं वह यश पाने की इच्छा करता है, किन्तु अपने संकल्प पर दृढ़ न रह सकने के कारण अपने प्रयत्नों अधिक सफल नहीं होता।
(3) जीवन-रेखा से आरम्भ होने वाली स्पष्ट सूर्य-रेखा भविष्य में उन्नति और यश बढाने वाली मानी गयी हैं किन्तु यह उन्नति उसके निजी परिश्रम और योग्यता से ही होती है। एक व्यावसायिक हाथ को छोड़कर शेष सभी हाथों में इसके प्रभाव से मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी कला में पूरी उन्नति कर सकता है। यह रेखा उपर्युक्त दशा में स्त्री या पुरूष के शीघ्र ग्राही होने का भी एक अचूक प्रमाण है ऐसे व्यक्ति सुन्दरता के पुजारी होते हैं ओर अपने जीवन का एक बड़ा भाग सौन्दर्य-उपासना में ही बिताते हैं यही कारण हैं कि वे उन स्त्री-पुरूषों की अपेक्षा, जिनकी सूर्य-रेखा स्वयं भाग्यरेखा से आरंभ हो रही हो, जीवन का अधिक उपभोग नहीं कर पाते।
(4) यदि यह रेखा भाग्य-रेखा से आरम्भ होती हो तो भाग्यरेखा के गुणों में वृद्धिकर उसकी शक्ति दूगनी कर देती है, प्रायः देखा गया है कि यह रेखा जिस स्थान से भाग्य-रेखा से ऊपर उठती है वहीं से किसी विशेष उत्कर्ष या उन्नति का आरम्भ होता है। रेखा जितनी ही अधिक स्पष्ट और सुन्दर होगी, उन्नति का क्षेत्र उतना ही विस्तृत और उन्नति भी अधिक होगी। ऐसी सूर्य-रेखा प्रायः ऐसे हाथों में भी दिख पड़ती है जो चित्रकार होना तो दूर रहा, एक सीधी रेखा भी नहीं खीच सकते। वे रंगों के अनुभवी भी इतने होते हैं कि पीले और गुलाबी रंग का अन्तर जानना भी उनकी शक्ति से बाहर की बात होती हैं अतः स्पष्ट है कि ऐसी रेखा वाला व्यक्ति कुशल कलाकार या दस्तकार नहीं हो सकता। हाँ, वह सुन्दरता का पुजारी और प्राकृतिक दृश्यों का प्रेमी अवश्य होता हैं दूसरे शब्दों में सुन्दरता तथा प्रकृति से प्रेम करना उनका एक स्वाभाविक गुण ही हो जाता हैं।
(5) मंगलक्षेत्र या हथेली के मध्यभाग से प्रारभ होने वाली सूर्य-रेखा अनेक अपत्ति और बाधाओं के बाद उन्नति सूचित करती है इसका सहायक मंगलक्षेत्र होता है यदि किसी के हाथ का मंगलक्षेत्र उच्च हो तो वह बहुत उन्नति करता है किन्तु मंगलकृत कष्ट भोग लेने के पश्चात् ही वह अपनी उन्नति कर पाता है।
(6) यदि यह रेखा मस्तकरेखा से आरंभ होती हो और स्पष्ट हो तो वह मानव के जीवन के मध्यकाल में (करीब 35 वें वर्ष) तक उन्नति करता है उसकी यह उन्नति जातीय योग्यता और मस्तिष्क शक्ति के अुनसार होती है।
(7) हृदय-रेखा से आरम्भ होने वाली सूर्य-रेखा जीवन के उत्तरकाल में मानव की उन्नति करती है। यह अवस्था लगभग 56 वर्ष की होगी, किन्तु एतदर्थ हृदयरेखा से ऊपर सूर्यरेखा का स्पष्ट होना आवश्यक है। ऐसी स्थिति में उस स्त्री या पुरूष के जीवन का चैथा चरण सुखमय या कम से कम निरापदा बीतता है। इसके विपरीत यदि हृदय-रेखा से ऊपर सूर्य-रेखा का सर्वथा अभाव हो या वह छोटे-छोटे टुकडों से बनी या टूटी-फूटी हो तो जीवन का चैथाकाल चिन्ताओं से भरा और अन्धकारमय व्यतीत होगा, विशेषतः तब जब कि भाग्य रेखा निराशाजनक हो।
यदि सूर्य-रेखा और भाग्यरेखा दोनों ही शुभफल देने वाली होकर एक दूसरी के समानान्तर जा रही हों, साथ ही मस्तक-रेखा भी स्पष्ट और सीधी हो तो वह धनाढ़य और ऐश्वर्यपूर्ण होने का सबसे बड़ा लक्षण है। ऐसे योगवाला व्यक्ति (स्त्री या पुरूष) बुद्धिमान् और दूरदर्शी होने के कारण जिस काम को हाथ लगाता हैं उसी में सफल होता है।
यदि हाथ में सूर्य की अंगुली पहली अंगुली तर्जनी से अधिक लम्बी और बीच की मध्यमांगुलि के बराबर हो, साथ ही सूर्य-रेखा से अधिक बलवान् हो तो उस मनुष्य की प्रवृत्ति जुआ खेलने की ओर अधिक पायी जाती है, किन्तु उसमें धन या गुणों का अभाव नहीं होता। हाँ, कभी-कभी यदि मस्तक-रेखा नीचे की ओर झुकी हो तो उसका और भी अधिक बुरा प्रभाव पड़ता हैं जैसे-सदा सट्टा, लाटरी या जुआ खेलना, शर्त लगाना आदि।
यदि सूर्य-रेखा सूर्यक्षेत्र की ओर न जाकर शनि की अंगुली की ओर जा रही हो तो उस व्यक्ति की उन्नति या सफलता शोक और कठिनाइयों से मिली होती हैं। ऐसे व्यक्ति धनवान और उन्नतिशील होकर भी प्रायः सुखी नहीं रह पाते। यदि यह रेखा शनिक्षेत्र को काट रही हो या अपनी कोई शाखा गुरूक्षेत्र की ओर भेज रही हो तो उसकी उन्नति या सफलता कोई शासन-अधिकार अथवा राज्य द्वारा उच्च पद्वी पाने के रूप में होगी। परन्तु रेखा का यह लक्षण किसी भी दशा में इतना प्रभाव पूर्ण नहीं हो सकता जितना भाग्य-रेखा के गुरू अंगुली की ओर जाने के सम्बन्ध में हो सकता है।
प्रायः देखा गया है कि छोटी-छोटी एक या एक से अधिक रेखाएँ एक दूसरी के समानान्तर में सूर्यक्षेत्र पर दौड़ती पायी जाती हैं। ऐसे योगवाले व्यक्ति के विचार बिखरे होते हैं वह कभी कुछ करना चाहता है तो कभी कुछ। अतएव वह व्यापार, चित्रकारी या कला-कौशल किसी भी विशेष काम में कभी उन्नति नहीं कर पाता। सूर्यरेखा के साथ कुछ ऐसे चिन्ह भी पाये जाते हैं जो भाग्योन्नति में बाधा डालते हैं उदाहरणार्थ-हथेली यदि अधिक गहरी हो तो वह अशुभ लक्षण हैं।
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