• 22 November 2024

वास्तु शास्त्र

वास्तु शास्त्र से करें गृह निर्माण :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant)

प्रत्येक परिवार की पहली आवश्यकता होती है- अपना घर। मध्यम वर्ग इस सपने को संजोने के लिए जीवन भर संघर्ष करता है। जिस समय यह सपना सच होने जा रहा हो, तो हमें वह घर पूर्ण रूप से समृद्धि दें, इसका ध्यान रखना चाहिए। अत: वास्तु के अनुसार गृह निर्माण करवाना चाहिए।

किसी भी प्लॉट या भूमि पर गृह निर्माण करते समय यह ध्यान रखें कि भूमि (प्लॉट) के अग्नि कोण में खाना बनाने का स्थान (रसोई घर), दक्षिण-पश्चिम में शयन गृह, अस्त्र-शस्त्रागार, पश्चिम में भोजन करने का स्थान, वायव्य कोण में मेहमान का कमरा, ईशान में देवालय एवं उत्तर में भारी वस्तुयें रखने का स्थान होना चाहिए, तथा उत्तर-पूर्व के मध्य बाथरूम होना अच्छा है।

जल स्थान एवं वास्तुशास्त्र :-

मकान में पानी का स्थान सभी मतों से ईशान से प्राप्त करने को कहा जाता है, और घर के पानी को उत्तर दिशा में घर के पानी को निकालने के लिये कहा जाता है। लेकिन जिनके घर पश्चिम दिशा की तरफ़ अपनी फ़ेसिंग किये होते हैं, और पानी आने का मुख्य स्तोत्र या तो वायव्य से होता है, या फ़िर दक्षिण पश्चिम से होता है, उन घरों के लिये पानी को ईशान से कैसे प्राप्त किया जा सकता है? इसके लिये वास्तुशास्त्री अपनी अपनी राय के अनुसार कहते हैं, कि पानी को पहले ईशान में ले जायें।

मेरा मानना है कि घर के अन्दर पानी का इन्टरेन्स कहीं से भी हो, लेकिन पानी को ईशान में ले जाने से पानी की घर के अन्दर प्रवेश की क्रिया से तो वास्तुदोष दूर नही किया जा सकता है, लेकिन ईशान में रख कर उसका ख़राब इफ़ेक्ट तो हम कम कर सकते ही हैं।

पानी के प्रवेश के लिये अगर घर का फ़ेस साउथ में है, तो और भी जटिल समस्या पैदा हो जाती है, नैऋत्य दिशा से आता है तो कीटाणुओं और रसायनिक जांच से उसमे किसी न किसी प्रकार की गंदगी जरूर मिलेगी, और अगर वह अग्नि दिशा से प्रवेश करता है, तो घर के अन्दर पानी की कमी ही रहेगी, और जितना पानी घर के अन्दर प्रवेश करेगा, उससे कहीं अधिक महिलाओं सम्बन्धी बीमारियां मिलेंगी।

पानी को उत्तर दिशा वाले मकानों के अन्दर ईशान और वायव्य से घर के अन्दर प्रवेश दिया जा सकता है, लेकिन मकान के बनाते समय अगर पानी को ईशान में नैऋत्य से ऊंचाई से घर के अन्दर प्रवेश करवा दिया गया तो भी पानी अपनी वही स्थिति रखेगा जो नैऋत्य से पानी को घर के अन्दर लाने से माना जा सकता है।

पानी को ईशान से लाते समय जमीनी सतह से नीचे लाकर एक टंकी पानी की अण्डर ग्राउंड बनवानी चाहिए, फ़िर पानी को घर के प्रयोग के लिये लाना चाहिये। बरसात के पानी को निकालने के लिये जहां तक हो उत्तर दिशा से ही निकालें, फ़िर देखें घर के अन्दर धन की आवक में कितना इजाफ़ा होता है, लेकिन उत्तर से पानी निकालने के बाद आपका मनमुटाव सामने वाले पडौसी से हो सकता है, इसके लिये उससे भी मधुर सम्बन्ध बनाने की कोशिश करते रहे।

वास्तुशास्त्र में भवन का निर्माण करते समय जल का भंडारण किस दिशा में हो यह एक महत्वपूर्ण विषय है शास्त्रों के अनुसार भवन में जल का स्थान ईशान कोण (नॉर्थ ईस्ट) में होना चाहिए परन्तु उतर दिशा, पूर्व दिशा और पश्चिम दिशा में भी जल का स्थान हो सकता है, परन्तु आग्नेय कोण में यदि जल का स्थान होगा तो पुत्र नाश, शत्रु भय और बाधा का सामना होता है, दक्षिण पश्चिम दिशा में जल का स्थान पुत्र की हानि,दक्षिण दिशा में पत्नी की हानि, वायव्य दिशा में शत्रु पीड़ा और घर का मध्य में धन का नाश होता है।

वास्तु शास्त्र में भूखंड के या भवन के दक्षिण और पश्चिम दिशा की और कोई नदी या नाला या कोई नहर भवन या भूखंड के समानंतर नहीं होनी चाहिए परन्तु यदि जल का बहाव पश्चिम से पूर्व की और हो या फिर दक्षिण से उतर की और तो उत्तम होता है, भवन में जल का भंडारण आग्नेय, दक्षिण पश्चिम, वायव्य कोण, दक्षिण दिशा में ना हो, जल भंडारण की सबसे उत्तम दिशा पूर्व, उत्तर या ईशान कोण है।

अग्नि कोण के गेट वाले घर :-

अग्नि कोण के गेट वाले घरों में और उत्तर की तरफ़ सीढियों वाले मकान कभी भी कर्जे से मुक्त नही हो पाते हैं। जिन घरों के दरवाजे नैऋत्य में होते हैं, और उनके नैऋत्य में ही अगर पानी के टेंक अन्डरग्राउंड बना दिये गये हैं, तो उस मकान में रहने वाले जीवन भर कोर्ट केस और सरकारी कर्जों से मुक्त नही हो पाते हैं। अक्सर इस दिशा के दरवाजे वालों के दो ही पुत्र होते हैं, जिनमें बडे पुत्र के कारण पूरे घर की सम्पत्ति का विनाश हो जाता है,और अंत में वह भी एक पुत्री के होने के बाद अपनी लीला किसी तामसी कारण से समाप्त कर लेता है।

ईशान दिशा :-

यदि ईशान क्षेत्र की उत्तरी या पूर्वी दीवार कटी हो, तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र प्रतीकात्मक रूप से बढ़ जाता है। यदि ईशान कटा हो, अथवा किसी अन्य कोण की दिशा बढ़ी हो, तो किसी साधु पुरुष अथवा अपने गुरु या बृहस्पति ग्रह या फिर ब्रह्मा जी का कोई चित्र अथवा मूर्ति या कोई अन्य प्रतीक चिह्न ईशान में रखें। गुरु की सेवा करना सर्वोत्तम उपाय है। बृहस्पति ईशान के स्वामी और देवताओं के गुरु हैं। कटे ईशान के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए साधु पुरुषों को बेसन की बनी बर्फी या लड्डुओं का प्रसाद बांटना चाहिए। यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है। यदि यहां जल हो, तो चीनी मिट्टी के एक पात्र में जल और तुलसीदल या फिर गुलदस्ता अथवा एक पात्र में फूलों की पंखुड़ियां और जल रखें। शुभ फल की प्राप्ति के लिए इस जल और फूलों को नित्य प्रति बदलते रहें। अपने शयन कक्ष की ईशान दिशा की दीवार पर भोजन की तलाश में उड़ते शुभ पक्षियों का एक सुंदर चित्र लगाएं।

कमाने हेतु बाहर निकलने से हिचकने वाले लोगों पर इसका चमत्कारी प्रभाव होता है। यह अकर्मण्य लोगों में नवीन उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है। बर्फ से ढके कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ योगी की मुद्रा में बैठे महादेव शिव का ऐसा फोटो, चित्र अथवा मूर्ति स्थापित करें, जिसमें उनके भाल पर चंद्रमा हो और लंबी जटाओं से गंगा जी निकल रही हों।
ईशान में विधि पूर्वक बृहस्पति यंत्र की स्थापना करें।

पूर्व दिशा में दोष /बचाव के उपाय :-

* यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा, और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी।

* यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है।

* घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है।

* भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

* यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है।

* अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं।

बचाव के उपाय:-

* पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा।

* पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है, इसके लिए घर के मुखिया को चांदी पर बना ‘सूर्य यन्त्र’ हमेशा धारण करना चाहिए, और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज (झंडा) लगायें।

* पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें, धन और वंश की वृद्धि होगी, तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी।

• दूध, दही, घी, सिरका, अचार का स्थान रसोई के बगल में होना चाहिए। श्रृंगार एवं औषधि सामग्री शयनकक्ष के बगल में होना चाहिए। विद्यार्थियों के पढ़ने का कमरा देवालय के बगल में होना चाहिए।

• घर के आस-पास बड़, पीपल, इमली, कैथ, नींबू, कांटे वाले एवं दूध वाले वृक्ष नहीं होना चाहिए। इस वृक्षों के घर के आस-पास होने से धन की हानि होती है।

• कुआं एवं जल का स्थान मुख्य द्वार से पूर्व ईशान, उत्तर अथवा पश्चिम में होने से धन प्राप्त होता है। सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।

• अग्निकोण में संतान हानि, दक्षिण में गृहिणी का नाश, नैऋत्य कोण में गृह मालिक का नाश एवं वायु कोण में भय, चिंता बनी रहती है।

• भवन में स्तंभ लगाने की आवश्यकता हो, तो स्तंभ सम संख्या में लगवाना चाहिए। इनकी संख्या यदि विषम हो, तो अशुभ फल देते है।

• पूर्ण रूप से उपरोक्त विधि को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण करने से घर में सुख-समृद्धि, यश, वैभव एवं शांति प्राप्त होती है।

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