• 23 November 2024

हस्तरेखा शास्त्र

हस्तरेखा शास्त्र (सामुद्रिक शास्त्र) :-

Dr. R. B. Dhawan (Astrological Consultant)

भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में भविष्य बताने वाले तीन प्रमुख अंग माने गये हैं। ज्योतिष-शास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान एवं मुखाकृति विज्ञान इन तीनों अंगों में से मुखाकृति विज्ञान के जानकार कम मिलते हैं, और यह विश्व में बहुत कम प्रचलित हैं। परन्तु ज्योतिष-शास्त्र एवं हस्तरेखा विज्ञान के जानकार भी अधिक हैं, और इन शास्त्रों में विश्वास रखने वाले लोगों की संख्या का तो अंदाजा लगाना भी कठिन है। यह हस्तरेखा शास्त्र अधिक सही है, और भविष्य की ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने में सक्षम है। कुछ लोगों का मानना है कि ज्योतिष-शास्त्र जो कि जातक की जन्म पत्री द्वारा भविष्य बताने की विद्या है वह ज्यादा उपयुक्त और सही नहीं है। क्योंकि जन्मपत्रिका बनाने में जुड़वां बच्चों की ही नहीं परन्तु एक ही समय पर संसार में पैदा होने वाले लाखों बच्चों की एक ही जन्मपत्रिका बनती है। परन्तु उनका भविष्य एक सा नहीं होता। जुड़वा बच्चे इसका उदाहरण हैं। उनका दावा है कि सम्पूर्ण विश्व में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जिसका हैंड प्रिन्ट हुबहू दूसरे व्यक्ति के हैंड प्रिन्ट से मिल जाए। यही कारण है कि पुलिस विभाग भी फिंगर प्रिन्ट के आधार पर अपराधियों को पकड़ता है, और उसे कानूनी तौर पर पक्का सबूत माना जाता है। इसलिए हस्तरेखा विज्ञान अन्य भाग्य बताने वाली विद्याओं की तुलना में अधिक सटीक और सही है।

इस विषय में एक बात मैं कहना चाहता हूं कि इन शास्त्रों को विज्ञान मानने वालों ने आज तक इनकी प्रामाणिकता की तो गारंटी ली है, पर वे एक बात भूल जाते हैं कि प्राचीन विज्ञान में समय-समय पर शोध कार्य होते रहे हैं। समय के अनुरूप उनकी मान्यताएं भी बदलती रही हैं, जिसका शोध आज उस ऊर्जा के साथ नहीं हो रहा जिस प्रकार होना चाहिए। अर्थात आश्चर्य की बात है कि ज्योतिष एवं हस्तरेखा विज्ञान जिसे 7000 वर्षों से भी पुराना माना जाता है, उसमें अभी तक कोई विशेष शोध कार्य नहीं किया गया और आज भी अनेक विद्वान प्राचीन पद्धति को ही अपनाये हुए हैं, जबकि बदलते हुए इस वैज्ञानिक युग में इसमें बहुत शोध कार्य की आवश्यकता है। यह लेख मेरे पिछले 25 वर्षाें के अथक साधना-परिश्रम और हस्तरेखा विज्ञान में मेरे द्वारा किये गये शोधकार्य के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है, इस लेख को पढ़ने से पहले इसके बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी जो मैं यहां देने जो जा रहा हूँ। उसका जानना आपके लिए आवश्यक है। हस्तरेखा विज्ञान द्वारा किसी भी व्यक्ति का भूत भविष्य, बताते समय उसके हाथ की रेखाओं ग्रहों के क्षेत्र, उनके प्रत्येक चिह्न एवं प्रतीक चिह्नों का गहन अध्ययन करना चाहिए। पुरुष का दायीं और स्त्री का बायीं हाथ देखकर ही भविष्य बताया जाता है।

जैसा कि कहा है-
‘‘वामाभागेषु नारीणां-दक्षिणे पुरुष स्वभ’’
हस्तरेखा विज्ञान की कई पुस्तकों में हाथ की बनावट अंगुली की बनावट अंगूठे नाखून आदि की बनावट के आधार पर भी काफी कुछ फलित कहा गया है। परन्तु मेरी मान्यता है कि इन सब बातों के आधार पर जो फलित कहा गया है, उसका संबंध हस्त रेखा विज्ञान से कम होकर मनोविज्ञान से अधिक है। हस्तरेखा विज्ञान जैसा कि अपने नाम से ही स्पष्ट है कि हथेली में पाई जानेवाली रेखाओं के आधार पर ही भूत-भविष्य बताने वाला विज्ञान है।

हाथ में ग्रहों का समावेश कर उनकी डिग्रियां निकाली जा सकती हैं, कि कौन ग्रह कमजोर है, इस विज्ञान को और अधिक शुद्ध व सही बनाने का प्रयत्न किया गया है। चूंकि रेखाओं के अध्ययन द्वारा फलित का सही समय बताना कठिन होता है। अतः ग्रहों के समावेश तथा रेखाओं के परस्पर संबंध के कारण एवं उनकी निश्चित गति को देखते हुए इस विज्ञान में और अधिक गहनता व शुद्धता आ गई है। मनुष्य के हाथ में दिखाई देने वाली रेखाओं का प्रभाव उसके जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक पड़ता है। मनुष्य के हाथ मे जो रेखाएं दिखाई देती हैं वे निम्नलिखित है-

1. जीवन रेखा- यह रेखा अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से निकलकर शनि के स्थान को घेरती हुई हथेली के नीचे मणिबन्ध तक जाती है। जहां हाथ का अन्तिम छोर माना गया है। इसे कलाई भी कहते हैं।

2. मस्तिक रेखा- यह रेखा सामान्य जीवन रेखा के साथ अथवा उससे ऊपर या नीचे से प्रारंभ होकर हथेली के बीच तक पहुंचती है।

3. हृदय रेखा- मस्तिक रेखा के ऊपर कनिष्ठ अंगुली के नीचे शुक्र क्षेत्र से प्रारंभ होकर उसके समानान्तर चलने वाली रेखा हृदय रेखा होती है। सामान्तया यह मध्यमा अथवा तर्जनी अंगुली के नीचे तक पहुंचती है।

4. भाग्य रेखा- यह रेखा हथेली में विभिन्न स्थानों से प्रारंभ होकर मुख्य रूप से गुरु, मंगल, सूर्य और शुक्र के क्षेत्र पर पहुंचती है। इन रेखाओं को भाग्य रेखा कहा जाता है मुख्यतया हथेली में इनका उद्गम स्थान निम्नलिखित स्थानों से होता है। यदि सूर्य रेखा कई जगह से टूटी हुई है ऐसे व्यक्ति प्रभावशाली होते हुए भी उसका पूरा लाभ नहीं उठा पाते और कई बार अपना कार्य अथवा व्यवसाय परिवर्तित करते रहते हैं। सूर्य रेखा के बीच में यदि द्वीप का चिह्न हो तो यह बहुत ही अनिष्टकारी होता है। आयु के 36, 42 और 44 वें वर्ष में जातक को काफी अपयश की प्राप्ति होती है, और कई बार तो दिवालिया तक हो जाता है। यदि सूर्य रेखा के अन्त में नक्षत्र का चिह्न हो तो यह बहुत ही शुभदायक होता है, ऐसे व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की कमी महसूस नहीं होती और वे अपने कार्य के माध्यम से राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करते हैं।

हथेली में विभिन्न स्थानों से प्रारंभ होकर कनिष्ठा अंगुली के नीचे जहां शुक्र का स्थान माना गया है। वहीं पर जाकर समाप्त होने वाली रेखा को शुक्र माना जाता है। अगर शुक्र रेखा जीवन रेखा के समान ही स्पष्ट और जीवन रेखा के साथ-साथ प्रारंभ होकर के शुक्र पर्वत पर जा रही हो तो ऐसे व्यक्ति स्वस्थ जीवन के साथ दीर्घायु होते है। तथा सुडौल शरीर के स्वामी और आकर्षण व्यक्तित्व के धनी होते हैं! तथा कई स्त्रियों से प्रेम संबंध बनाने में सफल होते हैं!

यदि शुक्र रेखा मणिबन्ध से प्रारंभ होकर शुक्रस्थान पर जा रही हो पतली और स्पष्ट के साथ मस्तिष्क रेखा भी ग्राफ ऊंचा लिए स्पष्ट आकार वाली हो तो ऐसे व्यक्ति की स्मरण शक्ति बहुत तेज होती है वो अपनी बुद्धि-विवेक बल पर ही सारी कार्य प्रणाली बनाने में सफल होता है एवं जीवन भर तक बिना पूंजी निवेश के ही व्यवसाय करता है और आर्थिक बल से सबसे आगे निकल जाता है ऐसा व्यक्ति ज्योतिषी, वकील, एजेन्ट, परामर्शदाता भी बनता है।

यदि शुक्र रेखा चन्द्र पर्वत से प्रारंभ होकर हथेली के किनारे-किनारे चलकर शुक्र स्थान पर जा रही हो ऐसे व्यक्ति कई बार विदेश यात्रा और उसके द्वारा धन यश के साथ आयात-निर्यात का काम करते हैं साथ ही समुद्री व्यापार में शंख, कौड़ी, मूंगा, मोती, समुद्री शोधकर्ता होता है। विवाह रेखा की बनावट के आधार पर जीवन साथी के शारीरिक बनावट का भी पता लगाया जा सकता है।

यदि विवाह रेखा बारीक और छोटी है तो जीवन साथी छोटे व दुबले शरीर का स्वामी होता है। यदि हाथ में विवाह रेखा और हृदय रेखा में अगर कहीं द्वीप का चिह्न बन रहा हो तो यह दाम्पत्य जीवन में भारी विपत्ति का सूचक होता है। इसमें या तो पत्नी की मृत्यु होगी या तलाक का होना निश्चय मानें।

यदि हाथ में विवाह रेखा नहीं है तो उसका विवाह बहुत विलम्ब से होता है और वैवाहिक जीवन दुःखमय बन रहता है। पत्नी के अंग-भंग होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। एक्सीडेंट की संभावनाएं ज्यादा रहती है। पारिवारिक परेशानियां बनी रहती हैं।

ज्योतिष शास्त्र में मुनष्य के जीवन पर घटने वाली घटनाओं पर ब्रह्माण्ड के ग्रहों एवं उनके परिभ्रमण काल का प्रभाव पड़ता है। इसलिए उन्हीं का अध्ययन करने के बाद ही भविष्यवाणियां की जा सकती है। सामुद्रिक ऋषि ने ठीक ही कहा कि यतपिण्डे तत्ब्रह्माण्डे यानि मनुष्य शरीर का संबंध ब्रह्माण्ड से है और ब्रह्माण्ड के ग्रहों का उसके जीवन पर प्रभाव पड़ता है और मेरा निजी दावा है कि पृथ्वी के जड़-चेतन पर इनका प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसलिए ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए ही प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने उपचार पद्धति का निर्माण किया होगा। जो आज वर्षा में छाता का काम करती है।

हस्तरेखा विज्ञान का वैज्ञानिक और पौराणिक महत्त्व भी है। पौराणिक दृष्टि से देखें कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने माता कौशल्या द्वारा श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न का बालकपन में भविष्य जानने के लिए एक ज्योतिषी के अयोध्या आने का वर्णन गीतावली में निम्न प्रकार किया है- आज अवध में एक आगम जानने वाला ज्योतिषी आया है। वह हथेली देखकर ही सारे गुण बता देता है। बाल्मीकी रामायण में भी इसके महत्त्व को इस प्रकार प्रतिपादित किया है- जब मेघनाथ, राम और लक्ष्मण को नागपाश से घायल कर देता है, वह रावण सीता को यह बताने के लिए कि राम और लक्ष्मण मर गए है, पुष्पक विमान से जहां राम और लक्ष्मण मर गए हैं, उस जगह पर दिखाने ले जाता है। सीता देखती है कि राम और लक्ष्मण अचेता अवस्था में पड़े हुए हैं, तथा सारे वानर उन्हें घेरे हुए हैं। तब सीता राक्षसियों से कहती है कि सामुद्रिक हस्तरेखा विशेषज्ञों ने मुझे बताया था कि मैं विधवा नहीं होऊंगी और दो पुत्रों की माता बनूंगी। तब ये कैसे संभव है। इस प्रमाण से सीता ने राम-लक्ष्मण को देखने के बाद स्वीकार नहीं किया था इस विषय का इतिहास गवाह है। सीता ने कहा जिन स्त्रियों के तलवों में कमल चिह्न होते हैं, वे राजाओं की पत्नियां बनती है, और जिन लक्षणों से स्त्रियां विधवा होती हैं, वे लक्षण मेरे में नहीं है।

कन्या के लक्षण जानने वाले कुशल ज्योतिषी ने मुझे कहा था मेरा राज्य अभिषेक होगा। जन्मपत्री में जन्म के समय आकाशीय ग्रह स्थिति के आधार पर राशि, नक्षत्र तथा ग्रहों का निर्धारण कर जन्मपत्री का निर्माण किया जाता है। लेकिन हस्तरेखा से भी जन्मपत्री बनाने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। इसमें समय की अधिकता एवं सूक्ष्म जानकारी के अभाव में यह विद्या लुप्त हो गई है। दुनिया में कहीं भी घड़ियों का समय समान नही रहता है। वैसे तो दो घंटे तक लगभग एक सा ही लग्न रहता है, लेकिन कभी-कभी जातक का जन्म उसी समय हुआ हो तब लग्न या आकाशीय ग्रह बदल रहे हों तो जन्मपत्री में अंतर आ जाता है। फलस्वरूप फलादेश में भी अंतर आना स्वाभाविक है लेकिन हस्तरेखा तो वह जन्मपत्री है जिसे ब्रह्माजी ने अपने हाथ से बनाया है जिसमें समय, इष्टकाल आदि की त्रुटि रहने की बिल्कुल संभावना नहीं है।

शास्त्रों में कहा गया है-
अक्षय जन्मपत्रीया ब्रह्माणा निर्मिता स्वयम्।
ग्रह रेखाप्रदा यस्यां यात्रज्जीवं व्यवस्थिता।।
अर्थात् मनुष्य का हाथ तो ऐसी जन्म पत्रिका है जो कभी नष्ट नहीं होगी जिसे ब्रह्माजी ने बनाया है। इष्टकाल आदि साधना में गणितीय त्रुटि की संभावना बिल्कुल नहीं है। इस जन्मपत्री में रेखाएं व चिह्न ग्रहों की तरह ही फल देने वाले होते हैं।

प्रातः उठकर हाथ के दर्शन करना सर्वोतम माना गया है। हाथों में अनेक तीर्थों का उल्लेख शास्त्रों में आया है।

यथा-
मूलऽड् गुष्ठस्य स्याद ब्राह्म। यं तीर्थ कायं कनिष्ठयोद।
पिज्जं तज्रन्यड् गुष्ठान्तदैवतं त्वड् गुलीमुखे।।

अर्थात् अंगूठे के मूल में ब्रह्मा तीर्थ होता है। कनिष्ठा के मूल में काया तीर्थ, तर्जनी के मूल व अंगूठे के बीच में पितृ तथा अंगुलियों के अग्र भाग में देव तीर्थ होता है।

अड् गुष्ठेऽएटा पद गिरि पंच तीर्थान्यनुऋमात्।
स्व हस्तदर्शनेनैव बन्धे प्रातरूतमै।।

अर्थात् अंगूठे में कैलाश तथा अंगुलियों में इस तरह क्रमशः पाँचों का निवास है। यही कारण है कि जो व्यक्ति प्रातःकाल अपने हाथ का दर्शन करते हैं वह अनायास ही सभी देवताओं व तीर्थों का दर्शन करते हैं। अंग्रेजी में इसे इंडेक्स फिंगर के नाम से जाना जाता है। तर्जनी के प्रथम पर्व में मेष राशि द्वितीय में वृष तथा तृतीय में मिथुन राशि का निवास स्थान होता है। हाथ की चारों अंगुलियों के 12 पर्व 12 राशियों को इंगित करते हैं। इस अंगुली के ठीक नीचे गुरु पर्वत का निवास होता है। इसे जुपिटर फिंगर गुरु की अंगुली भी कहते हैं। मध्यमा अंगुली में स्थित राशि और ग्रह-तर्जनी के पास वाली सबसे बड़ी अंगुली को मध्यमा कहते हैं। इसके ठीक नीचे शनि पर्वत का स्थान है इसे फिंगर आॅफ सेटर्न भी कहते हैं। इसके प्रथम पर्व है मकर द्वितीय में कुम्भ तथा तृतीय में मीन राशि का निवास स्थान होता है। अनामिका में स्थित राशियां और ग्रह-मध्यमा तथा कनिष्ठा सबसे छोटी के मध्य में अनामिका का स्थान है। इसे फिंगर आॅफ आपोलो एवं सूर्या की अंगुली भी कहते हैं। इसके ठीक नीचे सूर्य पर्वत स्थित है। इसके प्रथम पर्व में कर्क द्वितीय में सिंह तथा तृतीया में कन्या राशि का निवास होता है। कनिष्ठा में स्थित राशियां और ग्रह-हाथ की सबसे छोटी अंगुली का नाम कनिष्ठका है। इसे अंग्रेजी में फिंगर आॅफ मर्करी अर्थात बुध अंगुली भी कहते हैं। इसके ठीक नीचे बुध पर्वत का स्थान निश्चित है इसके प्रथम पर्व में तुला द्वितीय में वृश्चिक तथा तृतीय में धनु राशि का स्थान निर्धारित है।

जहां से हृदय रेखा शुरू होती है, वहां प्रथम मंगल तथा मस्तक रेखा के शुरू के पास द्वितीय मंगल स्थित रहते हैं। हथेली के बायीं तरफ चन्द्र अंगुष्ठ के नीचे शुक्र पर्वत का स्थान होता है। इसी प्रकार ऊपर से नीचे की तरफ जहां से भाग्य रेखा शुरू हो रही है। वहां केतु तथा मस्तक रेखा एवं हृदय रेखा के पास राहु स्थित होते हैं। हाथ में स्थित महीने-अंगुलियों के 12 पर्वों में 12 महीने स्थित होते हैं। तर्जनी के प्रथम पर्व नख वाला में मार्च द्वितीय में अप्रैल तथा तृतीय में फरवरी अनामिका के प्रथम पर्व में जून द्वितीय में जुलाई तथा तृतीय में अगस्त कनिष्ठा के प्रथम सितम्बर द्वितीय में अक्टूबर तथा तृतीय में नवम्बर माह का स्थान होता है। हाथ में स्थित 28 नक्षत्र-पौराणिक शास्त्रों में हाथ में अट्ठाइस नक्षत्र को भी विधिवत स्थापित किया गया है। हस्तरेखा विशेषज्ञ को हाथ में प्रत्येक नक्षत्र ग्रह राशि की क्या स्थिति है ये फलादेश करना चाहिए। पौराणिक ग्रंथों में लिखा है-

त्रीणि त्रीणि तले महये नक्षत्रमश्विनी।
तारा दियच्चशारवासु प्रत्येक स्वात् त्रयं त्रयम्।

अर्थात् हथेली के बीच में अश्विनी नक्षत्र स्थापित करके अंगुलियों के मूल में भरणी कृतिका रोहिणी अंगूठे की तरफ मृगशिरा, आद्र्रा, पुनर्वसु, माणिबंध की तरफ पुष्य, अश्लेषा मघा, और करभ में पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त स्थापित किए जाते हैं।

तेरह नक्षत्र हथेली में ही स्थापित रहते हैं तथा कनिष्ठकादि पाँचों अंगुलियों के तीनों पर्वों में तीन-तीन अभिजित स्थापित रहते हैं। अंगुलियों में स्थित तिथियां-हाथ में जहां सभी ग्रहों की कल्पना की गई है वही कनिष्ठा के पर्वों में नंदा 1, 6, 11 अर्थात् प्रतिपदा षष्ठी एवं एकादशी तिथियों का निवास होता है।

अनामिका में भद्रा अर्थात् द्वितीया, सप्तमी एवं द्वादशी 2, 7, 12 मध्यमा में जया अर्थात् 3, 8, 13, तर्जनी में रिक्ता, 4, 9, 14 तथा अंगूठे में पूर्णा 5, 10, 15 या 30 तिथि का निवास होता है।

कृष्ण पक्ष हो तो अंगूठे के आखिरी पर्व में आमावस्या अथवा पूर्णिमा होती है। प्रत्येक राशि, नक्षत्र तिथि, माह और ग्रह हस्तरेखा में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। हस्तरेखा से जन्मपत्री बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं। इनके अलग-अलग फल भी हस्तरेखा विज्ञान में वर्णित हैं। किस राशि में छोटा-बड़ा होने पर ग्रह पर्वत के उठाव, हस्तरेखा का वर्णन विस्तृत रूप से सामुद्रिक विज्ञान में वर्णित हैं।

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