• 3 December 2024

दक्षिणावर्ती शंख

Dr.R.B.Dhawan Guruji

धन प्रदाता दक्षिणावर्ती शंख
वामवर्ती शंख सर्व सुलभ होते हैं, वामवर्ती शंख वो शंख होते हैं जिनका पेट बायीं ओर खुलता है। दक्षिणावर्ती शंख वो शंख होते हैं जिनका पेट दाहिनी ओर खुलता है। दक्षिणावर्ती शंख, वामवर्ती शंख की अपेक्षा दुर्लभता से मिलता है। क्योंकि यह भगवान विष्णु का आयुध है अतः इसे अत्यंत मंगलमय माना गया है। इस शंख के मध्य में वरूण, पृष्ठ में ब्रह्मा और अग्रभाग में गंगा नदी का निवास माना गया है। इस प्रकार देखा जाये तो इस संसार के जितने भी तीर्थ हैं भगवान विष्णु की कृपा से इस शंख में निवास करते हैं। अतः इस शंख की घर में स्थापना करके दर्शन करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इन कारणों से दक्षिणावर्ती शंख मूल्यवान होते हैं। ये सैकड़ो रूपये से लेकर हजारों रूपये में मिलते हैं। दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। दक्षिणावर्ती शंख और लक्ष्मीजी दोनों की ही उत्पत्ति सागर से हुई है। इस दृष्टि से एक ही पिता की संतान होने के कारण दक्षिणावर्ती शंख लक्ष्मीजी के लघुभ्राता स्वरूप है। शास्त्रकारों ने दक्षिणावर्ती शंख की महिमा का कुछ इस प्रकार वर्णन किया है –
दक्षिणावर्तेशंखायं यस्य सद्मनि तिष्ठति।
मंगलानि प्रकुर्वन्ते तस्य लक्ष्मीः स्वयं स्थ्रिा।।
चन्दनागुकर्पूरैः पूजयेद् गृहेदन्वहम्।
स सौभाग्ये कृष्ण समो धने स्याद् धनदोयमः।।
अर्थात् जिस किसी घर में श्वेतवर्ण वाला उत्तम दक्षिणावर्ती शंख रहता है वहाँ पर मंगल ही मंगल होता है और स्वयं लक्ष्मी वहाँ स्थिर होकर निवास करती हैं। जहाँ चन्दन अक्षत कपूर और पुष्प के द्वारा दक्षिणावर्ती शंख की नियमित पूजा होती है वहाँ रहने वाला व्यक्ति कृष्ण के समान सौभाग्यशाली और धनवान बनता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस शंख की प्रशंसा में कहा गया है –
शंखं चन्द्रार्कदैवत्यं मध्ये वरूणदेवतम्।
पृष्ठे प्रजापतिर्विद्याघ्ग्रे गंगा सरस्वतीम।।
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्ये चाज्ञया।
शंखे तिष्ठंति विप्रेन्द्रस्तस्मात् शंख प्रपूजयेत्।।
दर्शनेन ही शंखस्य किं पुनः स्पर्शेन तु।
विलयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदये।।
अर्थात् दक्षिणावर्ती शंख चंद्रमा और सूर्य के समान देव स्वरूप है। इस शंख के मध्य में वरूण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा का निवास हैै। विष्णु की आज्ञा से सारे तीर्थ शंख में निवास करते हैं और यह शंख कुबेर स्वरूप है इसलिये आवश्यक रूप से इसकी पूजा करनी चाहिये। इस शंख के दर्शन करने मात्र से सभी दोष और पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्योदय होने पर बर्फ पिघल जाती है फिर स्पर्श के महत्व का वर्णन ही क्या किया जाये। कहा जाता है कि दक्षिणावर्ती शंख का जोड़ा जिस किसी के भी पास होता है, वह सदा पराक्रमी और विजय प्राप्त करने वाला होता है। उसके पास सदैव सुख समृद्धि बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति के यहाँ से गरीबी, परेशानी और सभी समस्याओं का निवारण स्वयमेव हो जाता है।
स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग:-
दक्षिणावर्ती शंख के नियमित दर्शन करने और इसका विधि-विधान से पूजन करने से अभीष्ट मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस शंख को दुकान में रखने से व्यापार में वृद्धि, धन भण्डार में रखने से धन में वृद्धि और अनाज के भण्डार में रखने से अन्न की वृद्धि होती है। लक्ष्मी प्राप्ति के लिये इसकी पूजन विधि इस प्रकार है।
महालक्ष्मी पूजन के पश्चात् प्राण-प्रतिष्ठित दक्षिणावर्ती शंख में गाय का कच्चा दूध भर दें और उसमें थोड़ी सी रोली डाल दें। अब ‘‘ऊँ हृीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थाय, पयोनिधि जाताय, लक्ष्मी सहोदराय, दक्षिणावर्त शंखाय नमः’’ का जप करते हुये लक्ष्मी पूजन में प्रयुक्त माँ लक्ष्मी की प्रतिमा/श्रीयंत्र/स्फटिक श्रीयंत्र/पारद लक्ष्मी अर्थात जिस किसी माध्यम से आपने माँ लक्ष्मी की पूजा की है उसे दूध से नहलायें। यह प्रक्रिया ग्यारह बार दोहरायें। अंत में शुद्ध जल से तीन बार स्नान करायें। यह प्रयोग पुष्य नक्षत्र में अवश्य करना चाहिये।
दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर घर के सदस्यों, वस्तुओं और कमरों में छिड़कने से, दुर्भाग्य, अभिशाप, अभिचार और ग्रहों का पाप प्रभाव दूर होता है। तंत्र शास्त्रों में भी कहा गया है कि ‘‘ऊँ हृीं श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नमः’’ का प्रतिदिन 108 बार जप करते हुये शंख का विधिवत् पूजन करने से लक्ष्मी और यश की प्राप्ति होती है साथ ही संतानहीन को संतान लाभ मिलता है।
पुत्र प्राप्ति हेतु दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग:-
कपिला गाय (यह गाय की एक विशेष प्रजाति है जिसका रंग भूरा, पूँछ सामान्य से अधिक लम्बी और सींग नीचे की ओर झुके हुये होते हैं।) के दूध को प्राप्त करें, एक संतान गोपाल यंत्र मंगवाकर उसे प्राण-प्रतिष्ठित करवायें और एक प्राण-प्रतिष्ठित दक्षिणावर्ती शंख लें। अब दूध को दक्षिणावर्ती शंख में डालें और ‘‘ऊँ हृीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणमुख शंखाय नमः’’ बोले हुये, शंख में डाले हुये दूध से संतान गोपाल यंत्र को स्नान करायें। यह प्रक्रिया ग्यारह बार दोहरायें। तत्पश्चात् तीन बार शुद्ध जल से स्नान करवायें। अंत में पुत्रजीवा माला के द्वारा निम्नलिखित मंत्र का एक माला जाप करें मंत्र –
ऊँ देवकी सुत गोविन्दं वासुदेव जगत्पते।
देहि में तनयं कृष्णं त्वामहम् शरणं गतः।।
संतान की इच्छुक महिला को यह प्रयोग पूर्ण श्रद्धा भक्ति के भाव से करना चाहिये। यदि किसी कारणवश महिला यह प्रयोग करने में असमर्थ हो तो उसका पति यह प्रयोग कर सकता है। लगातार एक वर्ष तक प्रत्येक गुरूवार को यह प्रयोग करते रहने से मनोकामना पूर्ण होती है।
सागर जनित चंद्र अमृतमण्डल द्वारा सिचिंत, अंतरिक्ष ज्योतिर्मण्डल और वायु को अपने भीतर संजोने वाला यह विशिष्ट शंख आयुवर्धन करने वाला, शत्रुओं को निर्बल करने वाला, अज्ञान, दरिद्रता और रोगी को दूर करने वाला होता है। अर्घ्य देने में यह विशेषतः प्रयोग किया जाता है। पुलस्त्य संहिता के अनुसार लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थाई रूप से घर में निवास देने का एक मात्र प्रयोग दक्षिणावर्ती शंख है।
यश और समृद्धि के लिये दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग:-
दीपावली की रात्रि में प्राण-प्रतिष्ठित दक्षिणावर्ती शंख में गोदुग्ध से निर्मित घी और शहद भरकर उसका धूप दीप द्वारा पूजन करें तत्पश्चात शंख को नैवेद्य अर्पित करें और ‘‘ऊँ श्रीं लक्ष्मीसहोदराय नमः’’ मंत्र का यथा सम्भव जाप करें। ऐसा करते रहने से यश और समृद्धि में वृद्धि होती है।
अतः ऐसी दुर्लभ, चमत्कारी और प्रभावी वस्तु की स्थापना इस दीपावली पर अपने घर में करके सौभाग्यशाली बनें।

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