• 27 April 2024

दीपावली महापर्व

Dr.R.B.Dhawan Guruji

दीपावली महापर्व ज्योतिषीय योग-
दीपावली त्यौहार ही नहीं महापर्व है जो पंच दिवसीय उत्सव के रूप में उत्साह एंव उमंग से मनाया जाता है प्रकाश का जीवन मे सदैव प्रकाश हो एंव महालक्षी का पदार्पण होकर स्थायी निवास हो सुख समृद्धि हो यही कामना की जाती है।
पूर्ण आभामय स्वरूप मे सौलह श्रृगांर किये जब पृथ्वी पर महालक्ष्मी का पदार्पण होता है तब यह रात्रि साक्षात महारात्री बन जाती है जो दीपावली की रात्रि कहलाती है। दीपावली कार्तीक कृष्णा अमावस्या को ही क्यो मनाई जाती है इसका ज्योतिषमय स्वरूप कालपुरूष की कुण्डली अनुसार जाना जा सकता है। वैदिक मान्यातानुसार सूर्य की कन्या सक्रान्ति से पितृ श्राद्ध पक्ष बनता है जिससे पितरो का पृथ्वी पर आगमन होता है एंव उनको परिवार द्वारा तृप्त किया जाता है तुला संक्रान्ति मे पितृगण उनके स्व स्थान में प्रस्थान करते है उनके मार्ग दर्शन के लिये दीपदान का विधान अमावस्या (पितृ तिथी) को किया गया है जिससे पितृ प्रसन्न होते है पितरो के प्रसन्न होने से देवतागण भी प्रसन्न होते है । देवतागणो की प्रसन्नता से ही महालक्ष्मी से धनागम होता है अतः दीपदान ही दीपावली पर्व है जो कार्तिक कृष्णा अमावस्या को ही पड़ता है अन्य दिनों मे नही। सूर्य तुला राशि में होता है एवं चन्द्रमा भी तुला राशि में होता है शुक्र भी स्वाति नक्षत्र में विचरण करता है अतः इस दिन स्वाति नक्षत्र हो तो बहूत सर्वश्रैष्ठ मूहर्त घटित होता है इस वर्ष यह योग दिनांक 24 अक्टूबर 2022 सोमवार सूर्य तुला राशि में एंव चन्द्रमा रात्रि 2:45 बजे तुला राशि में घटित हो रहा है जो श्रेष्ठ मुहूर्त योग है।
ज्यौतिषीय दृष्टि से तुला राशि शुक्र की होती है शुक्र सर्वभोगप्रद ग्रह है वीर्यत्व प्रधान है काल पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव और धन भाव का स्वामी शुक्र है हर मानव की मूल प्रवृति धन ऐश्वर्य को प्राप्त कर सुख उपभोग करने की रहती है शुक्र की राशि तुला में जब सूर्य और चंद्र की स्थिति होगी तब केंद्र त्रिकोण संबंध से लक्ष्मी येाग बनेगा क्योंकि सूर्य पंचमेश है और चन्द्रमा चतुर्थेश दोनो की एक ही राशि में युति के कारण चतुर्थेश पंचमेश योग से लक्ष्मी योग नीच का सूर्य अपनी उच्च राशि लग्न में मेष को देखकर स्वास्थ्य वृद्धि करेगा। अतः दीपावली में लक्ष्मी पूजन के लिए सिंह लग्न को महत्ता दी गई है। इस तरह के योग बन जाना भी इस दिन का रोचक तथ्य है। सांय प्रदोष समय या स्वाति नक्षत्र सिंह लग्न में लक्ष्मी प्राप्ति के सभी तरह के अनुष्ठान सिद्ध किये जाते है। आधी रात में जब सिंह लग्न आता है उस समय लक्ष्मी का आगमन माना गया है।
अर्धरात्रे भवेत्येव लक्ष्मी राश्रयिंतु गृहान््
बह्यपुराण में प्रदोषार्धराव व्यापित मुरया कहकर अर्धरात्रि में लक्ष्मी का पूजन श्रेष्ठ माना है। प्रदोष समये राजन कर्तव्या दीपमलिका कहकर प्रदोष काल में दीपों की पंक्ति से घर सजाने का विधान दिया है और अर्धरात्रि तक उसके स्वागत पूजन की तैयारी कही है।
शाक्त ग्रंथो ने दीपावली के इस पर्व को त्रिरात्रि पर्व बनाया है महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती इन त्रिगुणात्मिका शक्तियों का पूजन क्रमवार धनतेरस रूप चौदस व दीपावली में किया जाकर इन तीनो रात्रियों में अखंड दीपक जलाये जाते है। अतः यह त्रिरात्रि उपासना भी है
कालरात्रि, महारात्रि, मोरात्रि श्रदारूणा।
इस श्लोक के अनुसार कालरात्रि, धनतेरस और मोहरात्रि दीपावली महारात्रि शिवरात्रि और दारूणा यह होली है। अतः काल को प्रसन्न करने हेतु धनतेरस की संाय अंखड दीपक जलाने का शाक्त तंत्र में विधान है। कालदर्श मंे उल्लेख है कि दीपावली के दिनों मे अपनी दरिद्रता दूर करने के लिए तीनो ही दिन महालक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए।
प्रत्युष आश्रयुग्दर्शेकृताभ्यंगादि मंगलः ।
भक्तया प्रपूजये देवीमलक्ष्मी विनिवृचये ।।
सूर्य आत्मा है (सूर्य आत्माः जगतः सस्थुश्रय) अपने निज का स्वरूप है और चन्द्रमा मन है (चन्द्रमा मनसो जातः ) अतः अमावस्या एक ऐसी अवसर है जबकि मन (चन्द्रमा) पूर्ण रूप से आत्मा (सूर्य) के समीपतम होकर आत्मरूप होती है उस दिन आत्मा के प्रकाश से मन आत्मरूप हो जाता है यही अवस्था मनुष्य का अंतिम ध्येय है अतः अमावस्या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मन के आत्मरूप हो जाने को दर्शाती हुई ज्योतिष शास्त्र अर्थ की गरिमा को प्रकट करती है। अतः मन के लिए अमावस्या से वढकर और कोई महत्वपूर्ण दिन आध्यात्मि दृष्टिकोण से नही है मौलिक और आर्थिक दृष्टि से सूर्य और चन्द्रमा का सामिप्य भले ही शुभ फलप्रद न हो परंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अमावस्या से अच्छा और कोई प्रतीक नही हो सकता जो मन औ आत्मा के कई भेदों को हम पर प्रकट करने वाला दिन है।
फलित ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा दोनो राज्य संबंधित है सूर्य राजा है तो चन्द्रमा रानी अमावस की रात को रानी राजा से मिलती है मानो दोनो प्रेमपूर्वक गले मिलते हो भगवान राम तो स्वयं राजाधिराज है और सीता उनकी अतिशय प्रिय रानी है, चौदह वर्ष के वनवास के बाद अमावस्या की रात्रि को ही उनका वैवाहिक संबंध अयोध्या में लौटकर हुआ था बनवास में तो वे सन्यासियों के रूप में रहते थे इस प्रकार राम और सीता का अमावस्या में मिलन ज्योतिष शास्त्र का अनुमोदन लिए हुआ है।
ज्योतिष शास्त्र अनुसार वस्तुओं के अतिरिक्त चन्द्रमा जनता का प्रतिनिधित्व भी करता है भगवान राम के वनवास के दिनो में अयोध्या की जनता व्याकुल भी कि कब यह अवधि समाप्त हो और उन्हे अपने प्यारे सूर्यवंशी राजा के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो सूर्य से ही सूर्य वंश चलता है जमना ने जिसका प्रतिनिधित्व चन्द्रमा करता है एक ऐसी दिन अपने राजा के स्वागत के लिए चुना जिस समय प्रकृति में भी जनता (चन्द्रमा) राजा (सूर्य) से मिल रही हो। वह समय दीपावली का समय है। अतः अनादि काल से यह दीपावली पर्व जब से मानव ने पैदा होकर ज्योतिष का आश्रय लिया तब से चला आ रहा है। अतः ज्योतिषमय स्वरूप दीपावली महापर्व प्रकाशवान ज्योति प्रज्ज्वलित करने वाला ज्योतिष पर्व है।

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