• 21 November 2024

कामाख्या तंत्र

Dr.R.B.Dhawan Guruji

कामाख्या तंत्र-
तंत्र साधकों की प्रिय साधना कामाख्या देवी की साधना अति गुह्यतम साधनाओं में से एक महत्वपूर्ण साधना मानी गई है, इसकी सर्वोच्चता को देखते हुये आदिकाल से तंत्र के विशेषज्ञ और योगियों ने इसे तीव्र तथा अतिशीघ्र प्रभाव प्रकट करने वाली गोपनीय साधनाओं की श्रेणी में माना है। हमारे विचार से केवल संन्यासी ही नहीं गृहस्थ भी इस साधना को सम्पन्न कर अपना जीवन धन्य कर सकते हैं, कामाख्या देवी सन्यासियों की प्रिय देवी है जिनमें शिव का तामस तत्व, विष्णु का राजस तत्व तथा ब्रह्मा का ब्रह्म तत्व एवं सभी देवताओं का देवत्व भी समाहित है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार सती जब शिव की इच्छा के बिना ही अपने पिता दक्ष-प्रजापति के घर एक विशेष यज्ञ में चली गई थी, और सभी देवताओं को तो यज्ञस्थल पर विराजमान देखा परंतु अपने पति को पिता यक्ष-प्रजापति द्वारा निमंत्रण न भेजने पर क्रोधित होकर दक्ष-प्रजापति से भगवान शिव को निमंत्रण न भेजने का कारण पूछा तब दक्ष-प्रजापति का उत्तर सुनकर सती को अति क्रोध आया और वे यज्ञ अग्नि में ही कुद गई। उस समय शिव गणों ने शिव को इसकी सूचना दी सती के यज्ञ अग्नि में कूदने की सूचना पाकर भगवान शिव ने उग्र रूद्ररूप धारण कर लिया तथा यज्ञ अग्नि से सती को उठाकर कन्धे पर डाल कर तीव्र गति से तांडव करते हुये एक दिशा में तीव्र गति से बढने लगे उस समय उनके क्रोध को देखकर भगवान श्रीविष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर सती के अंगों को एक-एक कर भूमि पर गिरा दिया उस समय देवी के जो 51 अंग जहां-जहां गिरे वे 51 स्थान उसी-उसी अंग के नाम से विख्यात् हो गये। आसाम के गोहाटी नगर में सती का गुप्तांग गिरा था, इसी लिये यह गुप्त साधनाओं का स्थान कामाख्या देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आद्या शक्ति के इस स्वरूप के सम्बन्ध में न तो हर कोई जानता है और न ही हर कोई पूजा कर सकता है। इस स्थान के विषय में यह प्रसिद्ध है कि अति गोपनीय साधनाओं की सिद्धियां केवल यहां तंत्र साधकों के द्वारा ही की जाती हैं, अतः तंत्र साधकों का यह विशेष प्रिय पूजा स्थल है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि- आद्या शक्ति के इस स्वरूप को अति गोपनीय क्यों रखा गया?शक्ति के इस स्रोत बिन्दु पर जब साधक शुद्ध मन से, भक्ति भाव से जाता है, तो उसे अपने आप में एक रहस्यमय शक्ति का आभास होने लगता है, भक्त अपने शरीर में एक तीव्र ऊर्जा सी महसूस करने लगता है, और कभी-कभी यह असाधारण तीव्र ऊर्जा साधारण साधक सहन नहीं कर पाता इसी लिये इस स्थान को केवल तंत्र साधकों के लिये ही उपयुक्त समझा गया है। यह स्थान ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर गोहाटी के कामगिरि पर्वत पर आद्या शक्ति कामाख्या देवी के पावन शक्ति पीठ के नाम से विख्यात है, यहां पर देवी का गुप्तांग गिरने से इस शक्ति-पीठ को योनि शक्ति पीठ भी कहा गया है।
आद्य शक्ति कामाख्या वरदायिनी, नित्यस्वरूपा, महामाया, देवी शक्ति हैं, तंत्रशास्त्रों के अनुसार कामाख्या सर्वविद्या स्वरूपिणी, सर्वसिद्धिप्रदात्री देवी हैं और जो व्यक्ति इस शक्ति के प्रति उदासीन हैं अथवा इसकी उपेक्षा करता है, उसे जीवन में कभी परमानन्द की प्राप्ति नहीं हो सकती, देवी कामाख्या मनुष्य को चिन्ता मुक्त करने वाली, धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष प्रदान करने वाली आद्य देवी हैं। कामाख्या मंत्र की साधना के सामने राजा-महाराजा भी साधारण मनुष्य के समान वशीभूत हो जाते हैं, राजा-महाराजा तो क्या स्वर्ग की अप्सरायें भी कामाख्या साधना से वशीभूत हो जाती हैं, इस प्रचण्ड शक्तिशाली साधना को सम्पन्न करने वाला साधक स्तम्भन, सम्मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, तथा सर्व वशीकरण करने में समर्थ हो जाता है, इस साधना के प्रभाव से साधक यदि चाहे तो अग्नि, सूर्य, वायु और जल, सभी को स्तम्भित कर सकता है। कामाख्या शक्ति का साधक कामदेव के समान हो जाता है, उसके लिये किसी को भी वशीकृत करना कठिन नहीं रहता, और इस साधना की विशेषता यह है कि इस साधना को सिद्ध करने वाले साधक को किसी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हानि नहीं पहुंचा सकते।

साधना विधान-
अनेक तंत्र साधकों का मानना है कि इस साधना को सिद्ध रिने के लिये कामाख्या शक्ति पीठ में रहकर ही साधना करना सिद्धिप्रद है, परंतु अनेक तंत्र शास्त्रों की माने तो यह साधना भी अन्य साधनाओं की तरह साधक अपने साधना कक्ष में सम्पन्न कर सकते हैं, इस तंत्र साधना के लिये पंचपर्व दीपावली से अधिक उपयुक्त मुहूर्त कोई नहीं हो सकता। साधक चाहे महिला हो या पुरूष कोई भी इस साधना की सिद्धि प्राप्त कर सकता है, परंतु इस विशेष साधना के लिये विशेष सामग्री की भी आवश्यकता होती है, इस साधना सामग्री में- कुंकुम, लाल कनेर के पुष्प, शुद्ध कामिया सिंन्दूर, पचंगव्य, रेशमी पीला वस्त्र, जनेऊ तथा कलावा प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त मूलरूप से मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त कामाख्या यंत्र, कामराज जपमाला तथा शुद्ध व अभिमंत्रित हिंगुल की आवश्यकता होती है।
दीपावली पंचपर्व पर की जानेवाली यह साधना दीपावली से पूर्व कृष्ण त्रयोदशी के दिन रात्रि से आरम्भ कर शुक्ल दूज तक (पांच दिन) में सम्पन्न की जाती है। त्रयोदशी की रात्रि में साधक स्नान कर, शुद्ध पीली धोती धारण करे यदि साधना किसी महिला ने करनी हो तो उसे पीली साड़ी धारण करनी चाहिये। साधना वाले दिन मौन रहना चाहिये, बिना किसी से बातचीत किये सीधे अपने पूजा कक्ष में प्रविष्ट हो कर अपना आसन ग्रहण करें, प्रथम गुरू पूजन कर तीन माला गुरूमंत्र का जप करें, इससे साधना काल में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा उपस्थित नहीं होगी, साधक अपनी साधना पूर्ण मनोबल के साथ सम्पन्न करें। किसी प्रकार का भय उपस्थित होने पर बिलकुल भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। अपने सामने लकड़ी के पीठे पर एक रेशमी पीला वस्त्र बिछा कर इस वस्त्र के चारों कानों में कामिया सिंदूर लगा दें। फिर इस वस्त्र के आसन पर प्राण-प्रतिष्ठित कामाख्या यंत्र स्थापित करें, इस यंत्र के सामने कामिया सिंन्दूर से एक गोला (वृत्त) बनायें और असके मध्य में एक त्रिकोण बना कर इसी सिन्दूर से ही तीन बार श्रीं श्रीं श्रीं लिखें, और इसके नीचे साधक अपना नाम लिखें, गोले के बाहर आठ दिशाओं में सोलह छोटी-छोटी ढ़ेरियां जौ की बना कर उस पर हिंगुल का एक छोटा टुकडा रख दें। साथ में ही कामराज जपमाला भी स्थापित करें, ये सोलह जौ की ढेरीयां आद्यशक्ति कामाख्या की सोलह प्रतीक शक्तियां हैं, एक ओर सामने एक बढा मिट्टी का दीपक अवश्य ही जला दें, अब देवी का ध्यान करें-
हे कामाख्या देवी ! प्रचण्ड शक्तिशालिनी देवी आप शिवमोहिनी हैं, सम्पूर्ण ऐश्वर्य प्रदायनी हैं, डाकिनी, योगिनी, विद्याधरी, आदि समूह आप के आधीन हैं, आप सर्वसम्मोहन प्रदात्री, माया-महामाया देवी हैं, मेरी पूजा स्वीकार करें मुझे कामदेव के समान सुंदर बना दें, मुझे सर्वसम्मोहिनी शक्ति प्रदान करें। अब यंत्र पर सर्वप्रथम कुंकुम चढ़ायें फिर कामिया सिंन्दूर और सुगन्धित लाल कनेर के पुष्प चढ़ायें, देवी को जल का अर्ध्य अर्पित करें, तथा प्रसाद हेतु पायस (खीर) का पात्र सामने रखें, अब कामराज जपमाला से देवी के मूल मंत्र की 11 माला जप करें।
मंत्र- ऊँ त्रीं त्रीं त्रीं हूं हूं स्त्रीं स्त्रीं कामाख्या देवीे प्रसीद प्रसीद स्त्रीं स्त्रीं हूं हूं त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा।।
यह अति गोपनीय मंत्र तंत्रशास्त्रों का मूल है, इसीलिये इसे अत्यन्त दुर्लभ तथा गोपनीय मंत्र की श्रेणी में रखा गया है। जिसके जप से अनेक साधक सिद्धियां प्राप्त करते हों, जो अनेक साधकों को तेजस्वी व्यक्तित्व प्रदान करता हो, ऐसा मंत्र शिरोधार्य है। इस प्रकार 11 माला मंत्र प्रथम दिन, 11 माला द्वितीय दिवस, 11 माला दीपावली के दिन, और 11 माला प्रतिप्रदा, तथा 11 माला जप दूज के दिन सम्पन्न करें। इस प्रकार पांच दिन की साधना सम्पन्न होती है 55 माला जप के पश्चात् देवराज इन्द्र की सभा की पूजा करें, और फिर सोलह लाल कनेर के पुष्प लेकर कामाख्या देवी की सोलह प्रतीक शक्तियों का पूजन करें, और प्रत्येक जौ की ढेरी पर एक-एक लाल कनेर पुष्प अर्पित करें, पायस (खीर) का भोग लगावें।
कामाख्या साधना इसी पूजा विधान के साथ सम्पन्न की जाये। अब साधक देवी को पुष्पांजलि अर्पित करें और यदि किसी विशेष प्रकार की इच्छा या कामना पूर्ति हेतु साधना की गयी है तो देवी के समक्ष अपनी वह कामना रखें। देवी अवश्य साधक की कामना पूर्ण करेंगी। पूजन के पश्चात् साधक पूरी रात्रि सभी सामग्री पूजा स्थान में ही रहने दें, खीर का प्रसाद ग्रहण कर लें, दूसरे दिन प्रातः स्नान कर अपने पूजा स्थान में प्रवेश कर सिद्ध कामाख्या यंत्र को पूजा स्थान में ही स्थापित रहने दें, और कामराज जपमाला को अपने गले में धारण कर लें, यदि साधक चाहे तो प्रतिदिन एक माला मंत्र जप सम्पन्न करें, तथा शुद्ध हिंगुल को चांदी की एक छोटी डिबिया बनवाकर उसमें बंदकर अपने कैशबॉक्स में रख दें। कामाख्या साधना जीवन की वह साधना है, जिससे साधक जीवन भर आनन्द रस प्राप्त करता है, साधक के जीवन की त्रुटियों को भी यह साधना दूर कर देती है। साधक के शरीर की कांति कामदेव के समान हो जाती है, तथा साधक को वशीकरण का अपूर्व शक्ति प्राप्त होती है, और वह सबका प्रिय बन जाता है।
नोट- दुर्लभ कामाख्या चित्र लगाना है।
इस साधना के लिये विशेष साधना सामग्री के रूप में कामाख्या यंत्र, कामराज जपमाला तथा शुद्ध व अभिमंत्रित हिंगुल की आवश्यकता होती है। साधना सामग्री सीमित मात्रा में प्रतिष्ठित की जाती है अतः अपना आर्डर 15-20 दिन पूर्व ही बुक करवा लें। साधना सामग्री के पैकिट जिसमें यह सभी सामग्री गुरूजी द्वारा शुभ मुहर्त में प्राण-प्रतिष्ठित करके भेजी जायेगी, जिसके लिये न्यौक्षावर राशि- 7500/-रू मात्र है।

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