• 4 May 2024

दीपावली तंत्र-मंत्र की रात्रि

दीपावली की अर्द्धरात्रि में शक्ति की देवी माँ काली के पूजन का भी शास्त्र सम्मत विधान है :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

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दीपावली अज्ञान पर ज्ञान का तथा अन्धकार पर प्रकाश का, दरिद्रता पर समृद्धि का तथा लक्ष्मी व गणेश के पूजन मात्र का ही पर्व नहीं है। यह तो यक्षरात्रि-महारात्रि भी है। जो तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं साधकों को सफलता प्रदान करती है। दीपावली की महारात्रि में माँ लक्ष्मी एवं गणपति की उपासना का भी तंत्र शास्त्र से गहरा रिश्ता है। गपत्यूपनिषद् तात्पर्य दीपिका, इन्द्रजाल, बंगाली तंत्र शास्त्र एवं योग शास्त्रों में लक्ष्मी एवं गणेश का तांत्रिक पूजन बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार महाशक्ति काली, दुर्गा या लक्ष्मीजी की उपासना तभी पूर्ण होगी। जब शक्ति की उपासना के पूर्व विघ्न विनाशक प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की अर्चना कर ली जाये। अगर साधक या उपासक ऐसा नहीं करता तो भगवान गणेश साधक-उपासक के स्वप्नों पर पानी डाल देते हैं।

इस रात्रि को काल रात्रि भी कहा गया है। इस रात्रि में सबसे ज्यादा जादू-टोने बंगाल में चलते हैं। बंगाल का जादू आज भी दीपावली की रात्रि में वहाँ के श्मशानों में तांत्रिकों का जमघट लगा रहता है। वे लोग तरह-तरह के तंत्र-मंत्र द्वारा भूत-प्रेत एवं जिन्न परी को वश में करके मनचाहा कार्य उससे सम्पन्न कराते हैं। मृत आत्माओं का आहवान करके उनसे बातें करते हैं और उन्हें पूर्व स्वीकृत भोजन, मद्य, माँस, मिठाई देते हैं। काली के उपासक इस अवसर पर बलि चढ़ाकर देवी को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। जादू-टोना सीखने वाले भी श्मशान में जाकर अनुष्ठान के द्वारा सिद्धि प्राप्त करते हैं। असम के कामरूप (कामाख्या) का जादू भले आज फीका पड़ गया हो विज्ञान के प्रभाव से परन्तु जादूगरी आज भी जीवित है।
दीपावली की रात्रि में वहाँ के तांत्रिकों को आज भी श्मशान भूमि एवं शक्ति स्थलों पर साधना में लीन देखा जा सकता है। किसी जमाने में वहाँ सिर्फ जादू टोना जानने वाली महिलाएं ही रहा करती थीं और जो भी बाहरी मर्द वहाँ जाता था उसे वे मंत्र-तंत्र द्वारा भेड़ बकरा बनाकर रख लेती थीं। असम में बांझ औरतें दीपावली की रात में तांत्रिकों के साथ ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे आज भी जाती है।

तांत्रिक बाँझ औरत के पेट पर काली-मटकी रखकर मंत्र पढ़ता है। उसके बाद मटकी को फोड़कर उसमें घी भरकर रूई की बाती जलाकर नदी में बहा देते हैं। कहते हैं इस मंत्र-तंत्र से बाँझ औरतों की गोद भर जाती है। जादू टोना का बाजार दीपावली के अवसर पर केरल में भी खूब गरम रहता है।

धनतेरस के दिन से ही नगरों के बाहर देहाती इलाकों एवं एकान्त स्थानों में तांत्रिकों का जमघट लगना शुरू हो जाता है। मंत्र-तंत्र में आस्था रखने वाले एवं भूत-प्रेत जादू-टोना से परेशान लोग तांत्रिकों को मुँह माँगी रकम, बकरा, कबूतर आदि देकर कार्य सिद्ध करवाते हैं। दीपावली के अवसर पर वहाँ नीला जादू भी खूब चलता है। नीला जादू को विपत्ति विनाशक कहा जाता है। दीवाली के दिन श्रीलंका में बिल्ली पूजा तंत्र काफी लोकप्रिय है। इस रात्रि में वहाँ बिल्ली की पूजा तांत्रिक उद्देश्यों की पूर्ति एवं प्राप्ति के लिये किया करते हैं।

दीपावली की इस महारात्रि का बिहार में भी बहुत ही महत्व है। दक्षिण बिहार के आदिवासी इस रात्रि में जंगल जाकर माँ की प्रतिमा के समक्ष उल्लू की पूजा करते हैं। उन लोगों में ऐसा करना पवित्र और शुभ फलदायक समझा जाता है। इसी तरह उत्तर बिहार में दीपावली की रात्रि में तंत्र-मंत्र जानने वाले ओझा लोग लक्ष्मी-गणेश के साथ-साथ कुल एवं ग्रामदेवता की पूजा करके मंत्र सिद्धि प्राप्त करते हैं। अर्धरात्रि के महानिशा काल में बाँस एवं पीतल के बर्तन बजाकर भी अनिष्टकारी भूत-प्रेत को भगाने का प्रावधान है।

यक्षरात्रि में साधना:- अनेक प्रकार की बाधाओं का निराकरण करने के लिये मंत्रों एवं तंत्रों को इस दिन सिद्ध करने से तत्काल प्रभावी होते हैं। काल रात्रि (अमावस्या की रात) व शुभ समय होने से दीपावली का महत्व अधिक है। इस दिन जो जुआ खेलने की प्रथा है, उसके पीछे भी एक विशेषता यह है कि स्वाति नक्षत्र में जुआ तंत्र-मंत्र को सिद्ध किया जाता है और स्वाति नक्षत्र भी दीपावली के दिन होता है।

तंत्र को अनेक व्यक्ति अपने घरों में जड़वाकर टाँग देते हैं या कुछ व्यक्ति मंत्रों को बोला करते हैं। परन्तु मंत्रों में होने वाली अशुद्धियों को ध्यान रखना चाहिये। शुद्ध मंत्रोच्चार से एक विश्वास की भावना जागृत होती है।
महालक्ष्मी जिसमें कि सरस्वती (वीणा) लक्ष्मी (सहस्त्रकम लक्ष्मी) महाकाली (त्रिशूल) रूप का समावेश है महाशक्ति है। लक्ष्मी मंत्र में अनेक सिद्धियाँ हैं। पाताल सिद्धि बैताल अनिमा गुटिका सिद्धि आदि संसार को चलाने वाली शक्ति है, जिसमें वैयक्तिक एवं जगतो गुण व प्रकाश इत्यादि विद्यमान है। तांत्रिकों के लिये श्री (बीजाक्षर) एें तथा क्लीं शक्ति मंत्र की सूचक हैं। श्री मंत्र, लक्ष्मी तंत्र, बीसा तंत्र यंत्रों-मंत्रों की पूजा यक्ष रात्रि भर करते हैं मंत्र इस प्रकार है –

नमः कमल वासिनी स्वाहा। एें हृीं श्रीं ज्योष्ठाल्लक्ष्मि स्वयं भुले ही ज्योष्ठाय नमः ग्लौं श्रीं अन्नं महमन्न में देहयन्नधिः पत्तये भमानव प्रदापय स्वाहा श्रीं ग्लौं।

इन मंत्रों को क्षमता व सामथ्र्य के अनुसार अथवा अधिकाधिक रूप से एक लाख बार जाप करने से सुख समृद्धि ऐश्वर्य धन धान्य की प्राप्ति होती है।

तांत्रिक-मांत्रिक लोग मूर्ति पूजन की जगह मंत्र-तंत्र का पूजन करते हैं। जिसमें श्री यंत्र महत्वपूर्ण है। जिससे सुख ऐश्वर्य एवं धन की प्राप्ति होती है। इस यंत्र के भीतरी कृत में बने केन्द्र बिन्दु के चारों ओर नौ त्रिकोण होते हैं। पाँच अधोमुखी त्रिकोण देवी श्री से युत हैं जो कि शिवयुती कहलाता है। जिससे दर्शन मात्र से ही लाभ मिलता है। यक्षरात्रि को अनेक तंत्रों को बनाया जाता है जिसमें जुआ जीतने के लिए अश्व वशीकरण, मारण, उच्चाटन के तंत्रों व मंत्रों की अर्धरात्रि के पश्चात् सिद्ध किया जाता है। तंत्र-मंत्र के क्षेत्र में अनेक सिद्धियाँ प्राप्त करने का यक्षरात्रि से अच्छा और कोई समय नहीं है।

भारत के व्यवसायी व तंत्र-मंत्र प्रेमी भी दीपावली की रात्रि में भोजपत्र पर अष्टगंध से “सिद्ध यंत्र” बनाकर लक्ष्मीजी एवं गणेशजी की पूजा करते हैं। इस यंत्र को व्यवसाय बाधा दूर करके धन बढ़ाने वाला यंत्र भी कहते हैं। चूंकि पूजन प्रक्रिया कुछ कठिन है, इसलिये व्यवसायीगण ज्योतिषी व तांत्रिकों से यह यंत्र बनवाते हैं। तांत्रिक लोग भारी संख्या में दीपावली की रात सिद्ध यंत्र बनाकर बेचते भी हैं। इसी तरह तांत्रिक लोग महालक्ष्मी यंत्र, सर्वमनोकामना पूर्ण यंत्र, नवग्रह यंत्र, उच्चाटन यंत्र, मारणयंत्र, बीसा यंत्र, चैंतीसा यंत्र, वशीकरण यंत्र, सिद्धिदाता यंत्रादि भी बनाकर दीपावली की रात में अनुष्ठान द्वारा सिद्ध करते हैं।

श्री यंत्र के अतिरिक्त दक्षिणावर्ती शंख धन लाभ, ऐश्वर्य वृद्धि राज सम्मान एवं श्री वृद्धि के काम में आता है जो कि दुर्लभ है। अनेक नकली शंख बाजार में मिलते हैं। दक्षिणावर्ती शंख जो कि 21 से 51 तोले का हो उस पर –

ओम् हृीं श्रीं ब्लू सुदाक्षिणावर्त शंखा स्वाय नमः।

एक सौ आठ बार प्रतिदिन जपने से लाभ मिलता है। अगर प्रथम प्रहर पढ़ेगें तो श्री वृद्धि होगी, द्वितीय प्रहर में राज सम्मान मिलेगा, तृतीय प्रहर में यश कीर्ति एवं चतुर्थ प्रहर में पढ़ने से संतान लाभ मिलता है। ऐसी मान्यतायें परम्परागत हैं।

दीपावली की अर्द्धरात्रि में शक्ति की देवी माँ काली के पूजन का भी शास्त्र सम्मत विधान है। तांत्रिकों द्वारा मुख्यतः इस रात्रि में ही काली की उपासना-आराधना की जाती है। क्योंकि तंत्र-मंत्र की सिद्धि की देवी माँ काली को ही माना जाता हैै। तांत्रिकों के गढ़ पश्चिमी बंगाल में इस रात्रि को काली पूजा के रूप में ही मनाते हैं और तांत्रिक-मांत्रिक इस अवसर का भरभूर लाभ उठाते हैं।

आप दीपावली की रात्रि में गुरूजी द्वारा सिद्ध किए गए यंत्र प्राप्त करने के लिए सम्पर्क कर सकते हैं-

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