नीच राशि का ग्रह
कुंडली में जब कोई ग्रह नीच राशि का होता है :-
Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),
कुंडली में जब कोई ग्रह नीच राशि का होता है तब आम तौर पर यह समझ लिया जाता है कि यह ग्रह अवश्य फल अशुभ फल देगा। परंतु वास्तविकता कुछ और है, आईये देखें कुंडली में नीच ग्रह का अवलोकन कैसे करे :-
किसी भी ग्रह के नीच राशि में होने से अभिप्राय उसके बलहीन होने से है, न की उसके शुभ अशुभ होने से। बलहीन से अभिप्राय है की, ग्रह की फल देने की जो क्षमता होती है, उसमे कमी आ जाती है, ऐसे में ये ग्रह जातक को अपना पूर्ण फल नही दे पाता है।
इसे इस प्रकार समझें:- हर ग्रह किसी न किसी राशि में किसी विशेष अंश पर परम नीच होता है, जिसका अभिप्राय है की इस अंश पर ग्रह का बल बिलकुल न्यून होगा, और वो जैसे-जैसे उस अंश से आगे बढ़ता जाएगा उसका बल बढ़ता जाएगा और उसकी फल देने की क्षमता भी बढती जायेगी।
कोई ग्रह किसी राशि विशेष में ही नीच क्यों होता है, उसके पीछे कोई न कोई ज्योतिषीय कारण अवश्य होता है, जिसकी आगे के किसी लेख में विस्तार से चर्चा करूंगा, जैसे की मंगल अपने मित्र चन्द्र की राशि में नीच क्यों है, इसके पीछे ये कारण है की मंगल अग्नि तत्व ग्रह है, और कर्क राशि जल तत्व राशि है, ऐसे में यहाँ मंगल की ताकत कम हो जाती है। इसका दूसरा कारण है की, मंगल को सेनापति का दर्जा ज्योतिष में प्राप्त है, तो चन्द्रमा को रानी का, और जैसे की आप जानते है की रानी के सामने कोई भी सेनापति अपने को असहाय महसूस करता है, क्योंकि वो अपने बल का प्रयोग नही कर सकता।
अक्सर नीच के ग्रह के बुरे फल जातक को मिलते हैं ऐसा माना जाता है। इसका कारण ये है की, जब कोई ग्रह नीच की राशि में हो तो, उसका बल काफी कम हो जाता है, जिससे वे अपना शुभ फल जातक को दे ही नही पाता है, लेकिन मेरा ये मानना है की हमें किसी ग्रह को केवल नीच की राशि में देखते ही उसके बुरे फल के बारे में नही घोषणा करनी चाहिए। कुछ ऐसी परिस्थितियां होती हैं जिसमे नीच का ग्रह भी हमको शुभ फल दे सकता है, जिस प्रकार हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कुंडली- 17 September 1950, 11:00, mehsana यह वृश्चिक लग्न की कुंडली है, कुंडली की लग्न (प्रथम स्थान) में ही चंन्द्रमा की स्थिति है, कुंडली में चन्द्रमा नीच राशि में तथा चन्द्रमा की महादशा :- 27-11-2011 से 26-11-2021 तक है, इस अवधि में आप राजनीतिक के शिखर पर हैं, न केवल देश का अपितु विश्व की नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस ग्रह योग के लिए ज्योतिष के विद्यार्थीयों को एक खास बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की ग्रह के नीच होने पर उसके बुरे फल ही नहीं गिनने चाहिए। अर्थात् हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए की ग्रह के नीच या उच्च होने से उसके शुभ अशुभ होने का कोई कारण न होकर उसके बली होने या न होने से होता है। यदि कोई भी ग्रह नीच राशि में है तो इसका ये मतलब होगा की उस ग्रह में उसके कारक तत्वों की कमी होगी, और वो ग्रह जिन तत्वों का कारक है, और कुंडली में जिन भावों का स्वामी है उनसे सम्बन्धित पूर्ण फल नही दे पायेगा। परंतु ऐसा तब माना जायेगा जब नीच राशि में स्थित ग्रह का नीच भंग नहीं हो रहा हो।
दूसरा पहलू यह भी है कि – मान लीजिये की व्यय भाव का मालिक नीच का है, तो ये एक तरह से जातक के लिय अच्छा होगा, क्योंकि जातक के व्यर्थ के खर्च आदि में कमी हो जायेगी।
किसी भी नीच राशि में स्थित ग्रह के फल को देखने के लिए सबसे पहले तो हमें ये देखना होगा की ग्रह का नीच भंग हो रहा है या नही? नीच भंग के लिय ये माना जाता है की यदि कोई ग्रह किसी राशि में नीच का है, और उस राशि का स्वामी उस ग्रह के साथ हो, या उस ग्रह को अपनी पूर्ण दृष्टी से देखता हो, या बलि होकर केंद्र में हो तो, उस ग्रह का नीच भंग हो जाता है। जैसे कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कुंडली में नीच राशि चन्द्रमा के साथ ही वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल भी स्थित है। वृश्चिक के चन्द्रमा के साथ मंगल हो या मंगल की पूर्ण दृष्टी चन्द्र पर हो, या मंगल स्वराशी या उच्चराशि में केंद्र में हो, साथ ही यदि किसी नीच के ग्रह के साथ उंच का ग्रह हो, तो भी नीच भंग हो जाता है। जैसे मकर राशि के गुरु के साथ ही मकर में ही मंगल हो। इसके साथ ही यदि कोई ग्रह लग्न कुंडली में तो नीच का हो, लेकिन नवमांश में उच्च का हो तो, उसका भी नीच भंग हो जाता है।
अब देखना चाहिए कि कोई ग्रह की नीचता भंग नही हो रही हो, तो उसका फल हम कैसा मिलेगा?- उसके लिये सबसे पहले तो हम देखेंगे की उस नीच के ग्रह की राशि के स्वामी की स्थिति कैसी है ? यदि उसकी स्थिति अच्छी है, तो उस नीच के ग्रह के अशुभ फल में कमी होगी।
इसके साथ ग्रह के फल इस बात पर भी निर्भर करते हैं की नीच का ग्रह किस नक्षत्र में है? जैसे की हम चन्द्रमा को लेते हैं- चन्द्रमा हमारी कुंडली में मन का कारक होता है, चन्द्रमा यदि नीच है और नीच भंग नहीं हो रहा, तो जातक दिल का कमजोर होता है, बहुत जल्दी व्यथित होने वाला होता है, लेकिन मुख्य प्रभाव इस बात का है की चन्द्रमा किस नक्षत्र में है। वृश्चिक राशि में तीन नक्षत्र आते हैं, 1. विशाखा, 2. अनुराधा, और 3. ज्येष्ठा। अब विशाखा नक्षत्र में यदि चन्द्र होगा तो उसके बुरे फल काफी कम होंगे, क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी गुरु है जो कि चन्द्रमा का मित्र ग्रह है। जातक के मन पर गुरु का प्रभाव होगा, और यदि गुरु का साथ किसी भी प्रकार से चन्द्रमा को मिला तो चन्द्रमा नीच का होते हुए भी बुरे फल नही देगा। दूसरा नक्षत्र अनुराधा होता है, और जिसका स्वामी शनि देव होते हैं, और शनि देव को उदासी वैराग्य का कारक माना जाता है, ऐसे में जातक पर नीच के चन्द्रमा का पूरा फल मिलेगा, जिस से जातक के मन पर हर समय एक प्रकार की भारी जिम्मेदारी छाई रहती है, जातक ख़ुशी के माहोल को भी अच्छी तरह इंजॉय नही कर पाता। तीसरा नक्षत्र ज्येष्ठा है, जिसका स्वामी बुध है। अब हमें देखना होगा की बुध का पंचधा मैत्री चक्र के अनुसार चन्द्रमा से कैसा सम्बन्ध बन रहा है? और बुध की कुंडली में क्या स्थिति है। बुध का जातक के मन पर पूर्ण प्रभाव होगा, और यदि बुध कुंडली में अशुभ फल देने वाला हुआ जैसे की मेष लग्न में होता है, तो जातक को नीच के चन्द्रमा के पूर्ण अशुभ फल मिलेंगे।
इस प्रकार कोई भी ग्रह किस नक्षत्र में है, और उसके स्वामी की स्थिति क्या है? उसका पूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है। जैसे सूर्य जो की हमारी आत्मा का कारक होता है, और तुला राशि में नीच का होता है, तुला में सूर्य उतने बुरे फल विशाखा नक्षत्र में नही देगा जितने बुरे फल स्वाति नक्षत्र में देगा, क्योंकि विशाखा नक्षत्र का स्वामी गुरु है, तो स्वाति का स्वामी राहू होता है। ऐसे में जातक की आत्मा पर राहू का पूर्ण दुष्प्रभाव होगा।
नीच राशि स्थित ग्रह का प्रभाव कैसे होगा? उसे हम इस प्रकार समझ सकते है :- कोई भी ग्रह नीच का होने से उसके जो कारक तत्व हैं, उनकी शरीर में कमी होगी जैसे मंगल हिम्मत और साहस बाहुबल का कारक ग्रह है, और वो कुंडली में नीच का हो गया तो, मंगल जो की हिम्मत और हौसले का कारक है, उसकी जातक में कमी होगी, या फिर जातक अपनी ताकत और हिम्मत का प्रयोग निर्बल लोगों को सताने में करेगा। अब चूँकि मंगल भाई का भी कारक है तो, जातक के भाइयों को भी समस्या देगा, या भाई से सुख जातक का कम कर देगा।
साथ ही कोई ग्रह यदि नीच का होकर भी अष्टकवर्ग में 5 या 6 बिंदु उस नीच की राशि में लिये हुए है तो, भी उसका इतना बुरा फल जातक को नही मिलता है।
अत मेरा अनुभव है की हमें किसी भी ग्रह के शुभाशुभ फल को देखते समय उसके सभी पहलुओं को देखना चाहिए।
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