• 1 May 2024

मंगली दोष का निरस्तीकरण

कैप्टन (डा.) लेखराज शर्मा

एम. ए. पी. एच. डी. ज्योतिषाचार्य (स्वर्णपदक)

शारदा ज्योतिष निकेतन, जोगिन्द्र नगर। 9816435961

संपादन : Dr.R.B.Dhawan

वर कन्या के जन्मांगों में मंगली दोष का निरस्तीकरण :-
सर्वप्रथम यह निश्चित करना भी ज्योतिष ज्ञान की एक प्रक्रिया है कि वर या कन्या के जन्मांग में कुज दोष विद्यमान है या नहीं। यदि कुज दोष है, भी तो वह प्रभावशाली है अथवा नहीं? यदि कुजदोष प्रभावशाली है तो, उसका प्रभाव कम है अधिक है या अत्यधिक है? यह निर्णय होने के उपरान्त संभावित पति अथवा पत्नी के जन्मांगों में भी मंगली दोष के प्रभाव पर विचार आवश्यक है। तत्पषश्चात यह निर्णय करना चाहिए कि दोनों जन्मांगों में तुलनात्मक दृष्टि से मंगली दोष का परिहार अथवा निरस्तीकरण हुआ है या नही? यदि दोनों जन्मांगों में 25 प्रतिशत कुज दोष का प्रभाव एक दूसरे से कम या अधिक है, तो विवाह की संस्तुति कर लेनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है और कुजदोष संतुलित नहीं हो रहा है तो, विवाह की अनुमति नहीं प्रदान करनी चाहिए।
पुनः उल्लेखनीय है कि मंगली दोष मात्र मंगल ग्रह के ही संवेदशील बिन्दुओं पर संस्थित होने से नहीं होता बल्कि इन स्थलों पर शनि, राहु-केतु तथा सूर्य जैसे पाप ग्रह स्थित होने से भी मंगली दोष उत्पन्न होता है, परन्तु मंगल या पाप ग्रहों के नीच राशिगत होने पर यदि कुज दोष 100 प्रतिषत है तो, उच्च राशि में मात्र 50 प्रतिशत।
यदि एक जन्मांग में मंगल 1, 4, 7 ,8 या 12वें भाव में संस्थित हो तथा दूसरे जन्मांग में शनि या अन्य कोई पाप ग्रह इन्हीं भावों में स्थित हो, तो मंगली दोष निरस्त हो जाता है।
मंगली दोष के परिहार और तुलनात्मक अध्ययन करते समय निम्नांकित बिन्दुओं पर गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए।

1. वर और कन्या के जन्मांगों में समान रुप से मंगली दोष विद्यमान है, अथवा नहीं।

2. यदि वर या कन्या में से कोई एक मंगली है, और दूसरा मंगली नहीं है, परन्तु मंगल शासित वृश्चिक अथवा मेष राशि में स्थित हुआ है तो पहले के जन्मांग के कुजदोष का निरस्तीकरण स्वतः हो जाएगा।

3. मंगली दोष का परिहार यदि दूसरे जन्मांग में नहीं है और उसका निरस्तीकरण भी नहीं हो रहा है तो, उसकी मृत्यु सम्भव है।

4. यदि मंगली किसी जन्मांग में विद्यमान हो, परन्तु उसका निरस्तीकरण भी हो रहा हो तो, उसका विवाह अमंगली वर अथवा कन्या के साथ किया जाना चाहिए। उदाहरण के रुप में यदि सप्तम भाव में उच्च राशिगत मंगल वर के जन्मांग में हो तो, उसका विवाह अमंगली कन्या से होने पर भी दाम्पत्य सुख संतुलित रहेगा।

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