शारदीय नवरात्र
माता के 9 रूप हैं, और हर रूप में एक दैवीय शक्ति को महसूस किया जा सकता है :-
Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant)
शारदीय नवरात्र:-
वैसे तो माता का प्रत्येक स्वरूप मंगलकारी होता है, फिर भी माता के सभी 9 रूपों का वर्णन शास्त्रों में बताया गया है। नवरात्र के 9 दिनों में देवी के नौ स्वरूप की पूजा करने से (साधना करने से) भिन्न भिन्न प्रकार की पीड़ा (मानसिक, शारीरिक व आर्थिक पीड़ा) को शांत करती हैं। अर्थात् माता के 9 रूप हैं, और हर रूप में एक दैवीय शक्ति को महसूस किया जा सकता है। इसी कारण माता के इन सभी 9 रूपों को नवदुर्गा भी कहा जाता है :-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च । सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसीदम तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
वन्दे वांछित कामार्थे चंद्रार्घ्कृत शेखराम, सिंहरुढ़ा अष्टभुजा कुष्मांडा यशस्वनिम.
“सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया, शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी.”
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्। वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्। वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
शारदीय नवरात्र विशेष —
नवरात्र पर्व पर नवरात्र के प्रथम दिन (प्रतिपदा में) कलश स्थापना के लिए विशेष मुहूर्त देखकर कलश स्थापना कर लें :-
नवरात्र के दिनों में देवी के सभी रूपों की पूजा होती है। शुक्र ग्रह का उदित होना सभी अास्थावान सनातनियों के लिए सुख-समृद्धि दायक है। धन की इच्छा रखने वाले साधक नवरात्र के 9 दिनों में माता की उपासना करके आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। इस दिन बुध का शुक्र की तुला राशि में आना भी शुभ योग है।
नवरात्र में कलश स्थापना के लिए सर्वार्थ सिद्धि अथवा अमृत सिद्धि योग का प्रयोग किया जा सकता है –
कलश स्थापना की सामग्री :-
माता दुर्गा को लाल रंग अधिक पसंद है, इसलिए लाल रंग के आसन पर बैठकर पूजा करें, इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र शुभ होता है, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ तांबे का कलश, कलावा, छोटी इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी ले सकते हैं।
कलश स्थापना विधि :-
1. – नवरात्रि के पहले दिन, प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें।
2. – मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी स्मरण और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं, – कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं।
3. – इस के पश्चात एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, और लोटे के ऊपरी भाग में कलावा बांधें।
4. – इस के पश्चात कलश में (तांबे के लोटे में) पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं और फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें।
5. – इसके बाद कलश में (तांबे के लोटे में) अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं।
6. – अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसपर कलावा से बांध दें, और फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें।
7. – अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें, जिसमें आपने जौ बोएं हैं।
8. – कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प भी लिया जाता है।
9. – कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं।
किस दिन आपको किस देवी की पूजा करनी चाहिए जिससे कि आपको इच्छित फल मिल सके :-
1. शैलपुत्री—
देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप है शैलपुत्री। मां का यह स्वरूप चंद्रमा से संबंधित है। इसलिए प्रथम दिन शैलपुत्री माता का पूजन करने से समस्त मानसिक दोष समाप्त हो जाते हैं।
मानसिक सुख-शांति प्राप्त होती है। देवी दुर्गा जी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के कपड़ों का रंग लाल होता है। ऐसे में आप भी लाल रंग पहन कर पूजा कर सकते हैं।
इस दिन माता को गाय के दूध से बने पकवानों का भोग लगाया जाता है। पिपरमिंट युक्त मीठे मसाला पान, अनार और गुड़ से बने पकवान भी देवी को अर्पण किए जाते हैं।
भगवान शंकर की पत्नी एवं नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री माता की पूजा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। इस दिन मां को गाय के घी का भोग लगाने से साधक निरोगी रहते हैं, और उनके सारे शारीरिक दुःख समाप्त होते हैं।
मां शैलपुत्री का मंत्र –
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ दुर्गा का पहला ईश्वरीय स्वरुप शैलपुत्री है, शैल का मतलब शिखर। शास्त्रों में शैलपुत्री को पर्वत (शिखर) की बेटी के नाम से जाना जाता है। इसका वास्तविक अर्थ है- चेतना का सर्वोच्चतम स्थान।
2. ब्रह्मचारिणी —
देवी दुर्गा का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी। देवी के इस स्वरूप का संबंध मंगल ग्रह से है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करने से मंगल ग्रह से जुड़ी समस्त पीड़ाएं दूर हो जाती है।
इससे रक्त-विकार रोग दूर होते हैं, सर्जरी की संभावना टल जाती है, और आत्मबल में वृद्धि होती है। नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना में गहरे नीले रंग का उपयोग लाभदायक रहता है।
नवरात्र के दूसरे ब्रह्मचारिणी के रूप की पूजा होती है। माता को चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। देवी को इस दिन पान-सुपाड़ी भी चढ़ाएं।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र –
ॐ देवी ब्रह्मचारिणी नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
वह जिसका कोई आदि या अंत न हो, वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके पार कुछ भी नहीं।जब आप आँखे बंद करके ध्यानमग्न होते हैं, तब आप इस प्रकार ध्यान करें और अनुभव करेंगे, कि आप की सात्विक ऊर्जा अपनी चरम सीमा, या शिखर पर पहुँच रही है, वह देवी माँ के साथ एकाकार हो गयी है, और उसी में ही लिप्त हो गयी है।
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यही ब्रह्मचर्य का लाभ है। इसका अर्थ यह भी है की तुच्छता, निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्म चर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के साक्षी हैं, न कि कुछ सीमित के। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्व-व्यापक चेतना शक्ति है।
3. चंद्रघंटा –
देवी का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करता है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का पूजन करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। जीवन में आकर्षण, सौंदर्य, प्रेम में वृद्धि होती है। भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा के दौरान पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए।
गुड़ और लाल सेब भी माता को पसंद है। ऐसा करने से सभी बुरी शक्तियां दूर भाग जाती हैं।
मां चंद्रघण्टा का यह मंत्र —
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
आज का मनुष्य अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है, और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। जैसे ही हमारे मन में नकरात्मक भाव, विचार आते हैं तो हम निरुत्साहित, अशांत महसूस करते हैं।
घंटा का अर्थ है जैसे मंदिर के घण्टे-घड़ियाल (bell)। आप मंदिर के घण्टे-घड़ियाल को किसी भी प्रकार बजाएँ, हमेशा उसमे से एक ही ध्वनि आती है। इसी प्रकार एक अस्त-व्यस्त मन जो विभिन्न विचारों, भावों में उलझा रहता है, जब एकाग्र होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है, तब ऊपर उठती हुई दैवीय शक्ति का उदय होता है – और यही चन्द्रघंटा का अर्थ है। यही दैवीय रूप दुःख, विपत्ति, भूख और यहाँ तक कि शान्ति में भी मौजूद है। देवी के इस नाम ‘चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा’ का यही अर्थ है और तृतीय नवरात्रि के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है।
4. कुष्मांडा —
नवरात्रि के चौथे दिन देवी के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी का यह स्वरूप सूर्य से सम्बद्ध है। इनकी पूजा से सूर्य ग्रह से मिल रही पीड़ाएं दूर हो जाती है। मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। आर्थिक उन्नति होती है। नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की उपासन के लिए हरे रंग का उपयोग लाभदायक माना जाता है। माता के इस चौथे स्वरूप की उपासना करने से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। देवी के इस रूप की कृपा से निर्णंय लेने की क्षमता में वृद्धि एवं मानसिक शक्ति अच्छी रहती हैं।
इस तिथि को मालपुआ का भोग लगाना शुभ होता है। भोग लगाने के बाद उसे बच्चों में वितरित करने से पुण्य फलों में वृद्धि होती हैं।
कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ उस प्राणशक्ति से है जो प्राणशक्ति पूर्ण है, एक गोलाकार, वृत्त की भांति।
मां कूष्माण्डा का मंत्र —
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
कूष्माण्डा में ‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण हैं, जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं, देवी माँ को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ यह भी है, कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं।
कुछ क्षणों के लिए बैठकर अपने जीवन में प्रचुरता बहुतायत और पूर्णता अनुभव करें। साथ ही सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें। इस सर्वव्यापी, जागृत, प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा है।
5. स्कंदमाता —
देवी स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। देवी का यह स्वरूप बौद्धिक क्षमता को नियंत्रित करता है। मां स्कंदमाता की पूजा करने से बुद्धि, ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है। आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। आमदनी में लाभ प्राप्त होता है। नवरात्रि के पांचवें दिन भूरा (ग्रे) रंग पहनना शुभ माना जाता है। इस बार पांचवें दिन सरस्वती माता की पूजा की जाएगी। इस दिन देवी स्कंदमाता की गई पूजा से भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। नवरात्र के पांचवे दिन देवी को शारीरिक कष्टों के निवारण के लिए माता को केले का भोग लगाएं फिर इसे प्रसाद के रूप में दान करें। इस दिन बुद्धि में वृद्धि के लिए माता को मंत्रों के साथ छह इलायची भी चढ़ाएं।
देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक है। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है,जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।
मां स्कंदमाता का मंत्र–
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है, इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया, कर्म भी कह सकते हैं।
प्रायः ऐसा देखा गया की है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता।
हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौन सा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।
6. कात्यायनी —
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। देवी का यह स्वरूप ज्ञान को नियंत्रित करता है। मां कात्यायनी की पूजा से अज्ञान के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। जीवन में संयम, धैर्य और प्रसिद्धि में वृद्धि में होती है। नवरात्रि के छठे दिन लोगों को नारंगी (ऑरेंज) रंग के कपड़े पहनने चाहिए। देवी माँ कात्यायनी की आराधना से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन शहद का भोग लगाकर मां कात्यायनी को प्रसन्न किया जाता है।
इस दिन देवी को प्रसन्न करने के लिए शहद और मीठे पान का भोग लगाया जाता हैं। सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं, जो अदृश्य या समझ के परे है। माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं।
मां कात्यायनी का मंत्र —
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है ? इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है। क्रोध मात्र एक नकारात्मक गुण या शक्ति नहीं है। क्रोध का अपना महत्व, अपना एक स्थान है। सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है, और वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है। सकारात्मक क्रोध एक प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है। क्रोध अगर अज्ञान, अन्याय के प्रति है तो वह उचित है। अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है, वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है, किंतु यदि आप गहराई से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है। इन स्थितियों में क्रोध एक बंधन बन जाता है। अतः सकारात्मक क्रोध जो अज्ञान, अन्याय के प्रति है, वह माँ कात्यायनी का प्रतीक है।
माँ का दिव्य कात्यायनी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मकता का विनाश कर धर्म की स्थापना करता है। ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है, जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार माँ कात्यायनी क्रोध का वो रूप है, जो सब प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
7. कालरात्रि —
नवरात्रि के सातवें दिन देवी के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी का यह स्वरूप न्याय से संबंधित है। इसलिए सप्तम दिन पूजन करने से अन्याय जनित पीड़ा शांत होती है। नवरात्रि के सातवें दिन सफेद रंग कि कपड़े पहनने चाहिए।
मां कालरात्रि का मंत्र —
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। माँ कालरात्रि की पूजा भूत-प्रेतों से मुक्ति दिलवाने वाली होती हैं। देवी कालरात्रि की उपासना करने से सभी दु:ख दूर होते हैं। इस दिन माता को गुड़ के नैवेद्य का भोग लगाना चाहिए। नकारात्मक शक्तियों से बचने के लिए आप गुड़ का भोग लगा सकते हैं। इसके अलावा नींबू काटकर भी मां को अर्पित कर सकते हैं।
8. महागौरी —
देवी का आठवां स्वरूप महागौरी है। इनकी पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है। देवी का यह स्वरूप अव्यवस्था को नियंत्रित करता है। अव्यवस्था से पीड़ा होने पर जातक का जीवन दुःखी हो जाता है। महागौरी की पूजा से अव्यवस्था दूर होती है। दुर्गा मां की आठवें दिन की पूजा गुलाबी रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए।
मां महागौरी का मंत्र —
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
नवरात्र के आंठवें दिन महागौरी के स्वरूप का वंदन किया जाता है। इस दिन नारियल का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मां के इस रूप को नारियल का भोग लगाया जाता हैं। इस भोग से संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
महागौरी की पूजा करने के बाद पूरी, हलवा और चना कन्याओं को खिलाना शुभ माना जाता है। इनकी पूजा से संतान संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर या किनारे हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान है, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान,शांत है – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।
9. सिद्धिदात्री–
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है।
देवी का नवम स्वरूप सिद्धिदात्री जटिल कार्य में सफलता प्रदान करता है। इनकी पूजा से जटिल दुष्प्रभावों से राहत मिलती है। माता सिद्धिदात्री की उपासना करने से सफलता जटिल कार्य में सफलता मिलती हैं। इनकी पूजा आसमानी रंग (हल्के नील रंग) के कपड़े पहनकर करना शुभ माना जाता है।
नवरात्र के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री को जगत को संचालित करने वाली देवी कहा जाता है। इस दिन माता को हलवा, पूरी, चना, खीर, पुए आदि का भोग लगाएं। कोई भी अनहोनी से बचने के लिए इस दिन मां के भोग में अनार को शामिल किया जाता हैं।
मां सिद्धिदात्री का मन्त्र —
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥ या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ सिद्धिदात्री जीवन में अद्भुत सिद्धि, क्षमता प्रदान करती हैं, ताकि साधक सब कुछ पूर्णता के साथ प्राप्त कर सकें। सिद्धि का क्या अर्थ है? सिद्धि, सम्पूर्णता का अर्थ है– विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र, से ही, बिना कार्य किये आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना यही सिद्धि है।
साधक के वचन सत्य हो जाएँ, और सबकी भलाई के लिए हों। वह किसी भी कार्य को करे, वो सम्पूर्ण हो जाए। यही सिद्धि साधक के जीवन को हर स्तर में सम्पूर्णता प्रदान करती है।
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