प्रेम विवाह
पूर्वजन्म के शुभ कर्माे के अनुसार ही वर्तमान जीवन में जीवन-साथी की प्राप्ति होती है :-
Dr. R. B. Dhawan (Astrological Consultant)
भारतीय संस्कृति में विवाह को एक परम पुनीत संस्कार माना जाता है। युवावस्था में प्रवेश करते ही प्रत्येक युवक-युवती स्वप्निल संसार में खोया रहता है, लेकिन कहते हैं कि जोड़ियां विधाता द्वारा पहले से ही तय की हुई होती हैं। पूर्वजन्म के शुभ कर्माे के अनुसार ही वर्तमान जीवन में जीवन-साथी की प्राप्ति होती है। जीवन साथी के बारे में जन्मकुण्डली के द्वारा पर्याप्त जानकारी प्राप्त की जा सकती है कि जीवन-साथी का स्वभाव चरित्र, रहन-सहन, मनोदशा एवं व्यवहार कैसा होगा। जातक का एक विवाह, द्वि-विवाह अथवा बहु- विवाह होगा। विवाह को सुख पर्याप्त मिलेगा या नहीं। विवाह अरेंज होगा या प्रेम विवाह। कई बार ऐसा होता है कि युवक-युवती का विपरीत धर्मी होने पर भी आसानी से सामाजिक मान्यता प्रेम विवाह को मिल जाती है तो कभी युवक-युवती द्वारा लाख कोशिश करने के उपरान्त भी माता-पिता प्रेम विवाह को अनुमति नहीं देते। आखिर क्यों? क्या इस स्थिति में माता-पिता को मनाया जा सकता है अर्थात् कुछ उपायों के द्वारा उन्हें विश्वास में लाया जा सकता है। इस लेख के द्वारा हम प्रेम विवाह के योग एवं उदाहरण द्वारा प्रेम विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने संबंधित सामाान्य परंतु विशिष्ट उपाय बताएंगे। जन्मकुण्डली में प्रथम भाव जातक की आत्मा, तृतीय भाव इच्छा का चतुर्थ भाव हृदय का एवं पंचम भाव प्रेम का, सप्तम भाव जीवन-साथी का तो पंचम भाव से पंचम अर्थात नवम भाव भाग्य, प्रेम का कारक भाव है। पंचम एवं नवम भाव का कारक बृहस्पति है तो सप्तम भाव का कारक पुरुषों हेतु शुक्र एवं स्त्रियों हेतु बृहस्पति है। शनि एवं राहु को विजातीय स्वभाव एवं पृथकताकारी ग्रह माना जाता है। चन्द्र जहां मन का कारक है तो शुक्र प्रेम का एवं मंगल काम का कारक है। शनि एवं राहु का जितना इन कारकोें पर प्रबल प्रभाव होगा उतनी ही प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती जाएगी। सूर्य एवं बृहस्पति को महान सात्विक ग्रह माना जाता है लेकिन कभी कभार ये ग्रह भी प्रेम विवाह में अपनी मोहर लगा देते हैं। कुछ परिस्थितियों विशेष में राहु व शनि भी प्रेम विवाह के योग, को सफल बनाने मेें अड़चन डाल देते हैं लेकिन ऐसी स्थितियां बहुत कम ही दृष्टिगोचर होती है।
प्रेम विवाह के ज्योतिषीय योग-
1. सप्तमेश सप्तम में हो एवं लग्न में राहु हो तो ऐसे जातक का प्रेम विवाह हो जाता है। राहु लग्न में स्थित होकर प्रेम भाव एवं जीवन साथी के भाव दोनों को प्रभावित करेगा। राहु विजातीय होने से यह प्रेम विवाह के योग बनेंगे।
2. सप्तमेश एवं सप्तमेश कारक ग्रह शुक्र या बृहस्पति पर शनि या राहु की युति दृष्टि का प्रभाव हो तो ऐसा जातक प्रेम विवाह कर लेता है। तत्पश्चात माता पिता की स्वीकृति भी मिल जाती है।
3. लग्नेश एवं तृतीयेश का यदि किसी भी प्रकार से पंचमेश, सप्तमेश या नवमेश से सम्बन्ध बन रहा हो तो प्रेम विवाह के अवसर बनते हैं। इसमें यदि शनि एवं राहु उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं तो प्रेम विवाह के योग अवश्य ही होता है।
4. पंचमेश सप्तमेश की युति या सप्तमेश नवमेश की युति सप्तमेश लाभेश की युति या शुक्र एकादशेष या पंचमेश से युति दृष्टि संबंध बनाए तो भी प्रेम विवाह के योग बन जाता है।
5. एकादशेष या शुक्र से संबंध बनना एक युवती हेतु जहां किसी युवक द्वारा, प्रेम विवाह का आफर आता है तो एकादशेष का सप्तमेश या बृहस्पति से संबंध युवक हेतु किसी युवती द्वारा प्रेम विवाह का आफर दिया जाता है। जिसका परिणाम कारक ग्रहों के बलाबल पर निर्भर करता है।
6. चन्द्र सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ हो या लग्न में लग्नेश के साथ हो तो प्रेम विवाह की संभावना होती है। यदि तृतीयेश व पंचमेश भी किसी प्रकार से सपोर्ट दे दें तो प्रेम विवाह के योग हो जाता है।
7. सप्तमेश-एकादशेष या सप्तमेश व पंचमेश में परिवर्तन योग हो तो प्रेम विवाह की इच्छा जाग उठती है। लेकिन परिपक्वता तभी आएगी जब शुक्र या चन्द्र से किसी प्रकार का संबंध होगा। अन्यथा प्रेम विवाह एक स्वप्न बनकर रह जाता है।
8. पंचमेश की शुक्र से युति या सप्तमेश से युति प्रेम विवाह की लालसा जगाती है। यदि पंचमेश मंगल या शुक्र हो एवं मंगल व शुक्र दोनों की युति पंचम में हो तो ऐसा प्रेम मात्र शारीरिक सुख प्राप्त करने के लिए ही होता है। इच्छापूर्ति के पश्चात प्रेम तार-तार हो जाता है अर्थात् विवाह में परिणति नहीं हो पाती।
9. राहु प्रेम विवाह में कारक ग्रह तभी बनता है जब कुण्डली में कालसर्प योग की स्थिति निर्मित नहीं होती हो। शनि राहु एवं सूर्य का दृष्टि प्रभाव प्रेम विवाह के सुख में कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य छोड़ता है।
10. नवमेश या द्वितीयेश चतुर्थेश बृहस्पति या सूर्य होकर कुण्डली में बली हो तो प्रेमियों को माता-पिता एवं परिवार जनो के भारी कष्ट को झेलना पड़ता है। यदि ये कमजोर होकर स्थित हों तो ये प्रेम विवाह में मामूली अवरोध ही उत्पन्न कर पाते हैं।
11. सप्तमेश शुक्र मंगल के प्रभाव में हो या सप्तमेश मंगल शुक्र के प्रभाव में हो या पंचमेश, नवमेश-सप्तमेश होकर लग्नेश से संबंध बनाए या अष्टमेश से किसी प्रकार का संबंध बनाए तो प्रेम विवाह मात्र अकर्षण होकर शारीरिक सुख भोगने तक ही सीमित रहता है। अतः प्रेम विवाह का दृढ़ निश्चय वाले जातकों से सावधानी बरतें तो अच्छा है।प्रस्तुत कुण्डली में सप्तमेश चन्द्र पर राहु के विजातीय प्रभाव पंचमेश शुक्र का दशम भाव में स्वराशि का होकर स्थित होने एवं राहु व चन्द्र के दृष्टि प्रभाव में होने व शनि लग्नेश होकर तृतीय में होने से जातक ने प्रेम विवाह किया। जीवन-साथी की दृष्टि से पंचमेश मंगल सप्तम में उच्च का होकर स्थित होने, पंचम भाव में इच्छा कारक बुध सूर्य के साथ स्थित है। सप्तमेश शनि नवम भाव में स्थित है। सूर्य नवमेश राशि अधिष्ठित स्वामी है। फलतः प्रेम विवाह आसानी से हो, लेकिन नवमेश बुध का सूर्य के साथ होने एवं नवम ने तृतीय में होने से पिता द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। चतुर्थेश मंगल उच्च राशिस्थ लग्न में होने से जातक की माता पूर्णतया पक्ष में थी। चतुर्थ पर राहु केतु का प्रभाव भी मातृ सहयोग इस हेतु दिलाता रहा। अंततः पिता ने कुछ समय पश्चात स्वीकार कर लिया। जिसका कारण जातक द्वारा सूर्य यंत्र का विधिवत पूजन अर्चना करना रहा वही पिता हेतु सूर्य द्वादशेष होकर तृतीय में होने से पिता का दिल पसीज गया। आज सुखपूर्ण परिवार के साथ दाम्पत्य जीवन जी रहे हैं। किसी भी प्रकार का जातक जीवन-साथी के परिवार में विरोध नहीं है।
एक कुंडली देखने में आई वह कुण्डली एक ऐसे जातक की थी जो ज्योतिष में बिल्कुल ही रूचि नहीं रखता। जातक का युवाकाल में विपरीत धर्मों से प्रेम हुआ। लेकिन लम्बे समय तक प्रेम सिर्फ प्रेम ही बना रहा। प्रेम विवाह से परिणति न हो सकी। कारण जीवन-साथी जो वर्तमान में है के पिता द्वारा इस रिश्ते को बिल्कुल ही सिरे से नकारना रहा। जातक किसी भी प्रकार का मंत्र जाप एवं उपचार करने में रूचि नहीं रखता था। इस हेतु जातक के मित्रों से सलाह लेकर संकल्प द्वारा जातक के नाम से राहु मंत्रों का जाप करवाया। जाप के कुछ समय पश्चात ही जातक का प्रेम विवाह हो गया। पाठक भ्रम में होंगे कि राहु विजातीय होकर प्रेम विवाह में बाधक क्यों कर बनेगा। कारण कुण्डली में कालसर्प योग है। जीवन-साथी के भाव से यह नवम में पड़कर ऐसा माहौल पैदा किया। सप्तमेश शनि कुम्भ नवांश एवं शुक्र सिंह नवांश से सम सप्तक एवं पंचमेष मंगल शुक्र के साथ एकादश होने से जातक ने प्रेम विवाह आॅफर किया।
दूसरी कुण्डली में पंचमेश बुध उच्च का होकर नीच के शुक्र व सूर्य के साथ स्थित है। पिता द्वारा प्रेम विवाह में अस्वीकारोक्ति के कारण विवाह हेतु कई समस्याएं देखी लेकिन नियमित लक्ष्मी आराधना से प्रेम विवाह तय हुआ लेकिन कुछ न कुछ अड़चने आती रहीं। फिर कालसर्प दोष नामक यंत्र धारण कर नियमित जाप करने से प्रेम विवाह हो गया। वर्तमान में माता-पिता एवं सास-ससुर से बहुत ही मधुर संबंध है।
तीसरी कुण्डली में पंचम भाव में पंचमेश मंगल शुक्र के साथ स्थित है। शुक्र एकादशेश व षष्ठेश हैं एवं नीच नवांश में स्थित है। मंगल व शुक्र की ऐसी स्थिति में प्रेमी सिर्फ शारीरिक सुख प्राप्ति तक रह जाते हैं। शारीरिक सुख प्राप्त करने के पश्चात प्रेम भाव में कमी आना स्वाभाविक है।
चौथी कुंडली के जातक की प्रेमिका एवं स्वयं जातक एक-दूसरे से अलग होने की इच्छा बना चुके थे। दोनों के मन में इसी इच्छा के कारण धीरे-धीरे मिलना बंद किया। मिलने पर एक दूसरे पर दोषारोपण चलता रहता लेकिन पुनः अलग होते ही मानसिक इच्छा नही हुई। क्या कारण रहा होगा कि पंचमेश व एकादशेष शुक्र की युति प्रेम विवाह न करवा सकी। एकादशेष शुक्र पंचम में निर्बल है। तृतीयेश शनि अष्टम में है वह सप्तम बुध छठे भाव में बृहस्पति के साथ एवं कालसर्प योग होने से प्रेम विवाह की इच्छा जागृत नहीं हो सकी।
प्रेम विवाह हेतु विवाह कारक ग्रहों को मंत्र जाप, यंत्र पूजन एवं दान द्वारा बली मानकर बाधक ग्रहों की शान्ति करने से प्रेम विवाह हो जाता है।
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