• 3 May 2024

विवाह में विलम्ब

विवाह में विलम्ब क्यों:-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। कहते हैं कि जोड़ीयां स्वर्ग में तय होती हैं। किसी जातक या जातिका को उसी जीवन साथी की प्राप्ति होती है जो पहले से निश्चित है। यदि पहले से ही निश्चित है तो उसके लिए व्यर्थ में परेशान क्यों हों। लेकिन बिना कर्म के उपभोग का सुख प्राप्त नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र. द्वारा सुख को प्राप्त करने हेतु आवश्यक दिशा निर्देश एवं प्राप्ति के उपाय बताए जाते हैं ताकि विवाह निश्चित समय पर अपने मनपंसद साथी अर्थात योग्य वर/कन्या से हो सके। जिस प्रकार एक चिकित्सक रोग के लक्षण देख किसी बीमारी का इलाज दवाइयों द्वारा करता है। यदि निदान में दवाइयां कारगर हो जाएं तो रोग का शमन हो जाता है लेकिन कारगर न होने पर रोग का प्रकोप भी तीव्रतर होता जाता है। ठीक उसी प्रकार किसी ज्योतिषी द्वारा विवाह हेतु उपाय बताने पर कारगर हो अर्थात अशुभ ग्रह के ही उपाय किए जाएं तो विवाह शीघ्र सम्मपन्न हो अथवा जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, ग्रह अपना प्रभाव बढ़ाते रहेंगे। फलतः विवाह में विलम्ब होता है। यदि विलम्ब के साथ विवाह कारक ग्रहों की दशा भी निकल जाए तो अविवाहित रहने की संभावना भी नजर आने लगती हैं।

ज्योतिष में सप्तम भाव को जीवन साथी का भाव माना जाता है। विवाह कारक ग्रहों में पुरुषों हेतु शु़क्र व स्त्रियों हेतु बृहस्पति का विशेष विचार किया जाता है। सप्तमेश, सप्तमेश के साथ स्थित ग्रह, सप्तमेश पर दृष्टि कारक अथवा दृष्टि में आने वाले ग्रह, सप्तमेश की राशि अधिष्ठित का स्वामी भी इस हेतु आवश्यक कारक माने जाते हैं। इन कारक ग्रहों के बली, उच्च राशि या नवांश स्वराशि मित्रराशि, शुभ भावों में, शुभ ग्रहों के साथ एवं शुभ ग्रहों या भावेशों से संबंध बनाने पर विवाह निश्चित समयावधि में हो जाता है, अन्यथा विवाह में विलम्ब होता है।

विवाह में विलम्ब के ज्योतिषीय योग-
1 केन्द्र त्रिकोण भावों में शुक्र राहु के साथ स्थित हो एवं सप्तमेश भी राहु से दृष्ट हो तो विवाह में विलम्ब होता है।

2 यदि सप्तमेश नीच राशि में एवं शुक्र अष्टम भाव में पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो विवाह में विलम्ब होता है। स्त्री जातकों हेतु बृहस्पति का पाप प्रभाव में होना आवश्यक है।

3 यदि कुण्डली में मंगल लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो अर्थात मंगल दोष हो एवं चन्द्र व शुक्र से भी मंगल दोषकारक होकर स्थित हो तो विवाह में विलम्ब अवश्य होता है।

4 सप्तमेश राहु, केतु से पीड़ित हो या सप्तम भाव में शनि, राहु या सूर्य स्थित हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है। सप्तमेश का पृथकताकारक ग्रहों के प्रभाव में आना विवाह में विलम्ब का कारक है।

5 केन्द्र भावों में पापग्रह स्थित हो एवं शुभ ग्रह त्रिक भावों में स्थित हो तो विवाह में विलम्ब होता है।

6 कुण्डली में पितृदोष, कालसर्प योग, विवाह सुख हीन योग, विष कन्या योग या इसी प्रकार के अशुभ योग हों तो भी विवाह में विलम्ब होता है। इन योगों के साथ सप्तमेश व शुक्र या बृहस्पति भी निर्बल हो तो विवाह में विलम्ब अवश्य होता है।

7 लग्नेश, एकादशेश, द्वादशेश व अष्टमेश का निर्बल होकर स्थित होना भी विवाह में विलम्ब करवा सकता है। द्वादश भाव शय्या सुख व अष्टम भाव विवाह में विलम्ब करवा सकता है। द्वादश भाव शय्या सुख व अष्टम भाव गुप्तांग सुख तो एकादश सर्वाविध लाभ का है। अतः इन भावेशों की स्थिति भी विचारणीय है।

8 लग्नेश सप्तमेश निर्बल हो एवं विवाह योग्य अवस्था में किसी अकारक ग्रह की महादशा लग जाती है तो भी विवाह में विलम्ब होता है। बशर्ते महादशेश विवाह कारक ग्रहों से किसी भी प्रकार से संबंध न बनाए।

इस प्रकार यदि विवाह में विलम्ब कारक ग्रहों की शांति, मंत्र जाप यंत्र धारण या कई प्रभावी उपाय किया जाएं तो विवाह में विलम्ब दूर हो जाता है। उदाहरण कुण्डलियों के द्वारा विवाह में विलम्ब का ज्योतिषीय विश्लेषण करें।

उदाहरण कुण्डली नं. 1 में विवाह कारक शुक्र चन्द्र के साथ स्थित है। चन्द्र मन एवं शुक्र प्रेम का कारक है। अतः ऐसे जातकों के मन में प्रेम विवाह करने की इच्छा रहती है। चन्द्र अष्टमेश एवं शुक्र षष्ठेश होकर भी कुछ अशुभ प्रेम विवाह के हेतु है। सप्तमेश बुध सूर्य व शनि दो पाप ग्रहों के साथ स्थित है। वहीं नवमांश (कुण्डली में भी) सप्तमेश शुक्र द्वितीय भाव में होकर षडाष्टक योग, सप्तम में बुध अष्टमेश होकर स्थित है। सप्तम भाव पर राहु की पूर्ण दृष्टि भी है। लग्न कुण्डली में शुक्र शनि द्वारा भी दृष्ट है। लग्न कुण्डली में सप्तमेश बुध सूर्य व शनि के साथ है। सूर्य नीच नवांश में है एवं शनि नवांश में राहु केतु द्वारा भी पीड़ित है। अतः पीड़ित ग्रहों के प्रभाव से सप्तमेश बुध कमजोर है। उपर्युक्त सभी कारणों से जातक के विवाह में अनावश्यक परेशानियाँ आ रही हैं।

उदाहरण कुण्डली नं. 2 में सप्तमेश चन्द्र राहु केतु से पीड़ित है। कालसर्प योग भी निर्मित है। अष्टम भाव में मंगल सिंह राशि में होने से मंगल दोष बन रहा है। स्त्री जातकों हेतु विवाह कारक बृहस्पति होता है। अतः कुण्डली में बृहस्पति शनि के साथ स्थित है एवं बृहस्पति सूर्य से अस्त है। कुण्डली में लग्नेश शनि भी अस्त है। विवाह कारक सभी ग्रहों के कमजोर होने से विवाह में अनावश्यक विलंब हो रहा है। नवांश कुण्डली में भी लग्न व सप्तम भाव राहु केतु से पीड़ित है। नवांश सप्तमेश शनि द्वादश भाव में है। शनि अधिष्ठित राशीश चन्द्र राहु से ग्रसित है। विवाह कारक बृहस्पति सप्तम से अष्टम में स्थित है। लग्न नवाशेष का सूर्य व गौतमी होकर कुछ शुभता प्रदान कर रहा है। अन्य सभी कारक विवाह में विलम्ब हेतु पूर्ण रूप से आक्रामक रूप धारण किए हुए हैं। कुण्डलियों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि विवाह कारक सभी ग्रहों के निर्बल होने पर विवाह में विलम्ब अवश्य होता है। वर्तमान में प्रतिस्पर्धा के इस युग में विवाह से ज्यादा कैरियर को महत्व दिया जाता है। लेकिन कैरियर बनने पर भी यदि विवाह न हो तो इसे विलंब ही कहा जाएगा।

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