• 3 May 2024

महालक्ष्मी साधना के प्रयोग

तंत्र शास्त्र तथा अनेक धार्मिक ग्रंथों में दीपावली पर्व में लक्ष्मी साधना के अनेक प्रयोग बताये गये हैं :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

महालक्ष्मी पूजन का इस पर्व पर विशेष महत्व है। पूरे वर्ष साधक इस पर्व में पड़ने वाली महानिशा काल की प्रतीक्षा करते हैं और अपने-अपने बुद्धि, विवेक तथा साधनों से लक्ष्मी जी की कृपा पाने के क्रम-उपक्रम करते हैं।

कार्तिक कृष्णा अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी, भगवान विष्णु के साथ विश्व भ्रमण पर निकलती हैं, तथा जहाँ अपनी पूजा-उपासना होते हुये देखती हैं, वहाँ वह अपना निवास बना लेती हैं। लक्ष्मी जी को रिझाने में साधक की आस्था का विशेष महत्व है।

लक्ष्मी के भण्डार की, बड़ी विलक्षण बात।
ज्यों-ज्यों दे त्यों-त्यों बढ़े, बिन खर्चे घट जात।।

इस वर्ष राजधानी पंचांग दिल्ली के अनुसार 27 अक्टूबर 2019 कार्तिक कृष्ण अमावस्या रविवार के दिन चित्रा नक्षत्र, के सुखद संयोग में दीपावली का पावन पर्व मनाया जायेगा।

कैसे करें लक्ष्मी पूजन- आचमन और प्राणायाम करके दाँये हाथ में जल, कुमकुम, अक्षत तथा पुष्प लेकर संकल्प करें, ‘आज परम मंगल को देने वाले कार्तिक मास की अमावस्या को मैं (अपना नाम लें)’ उपनाम (यदि कोई हो, तो बोलें), गोत्र (अपना गोत्र बोलें) चिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये नीतिपूर्वक अर्थोपार्जन करते हुये सभी कष्टों को दूर करने, अच्छी अभिलाषा की पूर्ति के लिये तथा आयुष्य-आरोग्य की वृद्धि के साथ राज्य, व्यापार, उद्योग आदि में लाभ मिले, इसलिये गणपति, नवग्रह, महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती का श्रद्धाभाव से पूजन करता हूँ।
इसके बाद हाथ में ली हुई सामग्री धरती पर छोड़ दें, तिलक लगायें तथा कलावा बाँधें। गणपति भगवान का पूजन करें। उन्हें स्नान करवाकर जनेऊ, वस्त्र, कलावा, कुमकुम, केसर, अक्षत, पुष्प, गुलाल, अबीर चढ़ाकर गुड तथा लड्डू का नैवेद्य अर्पित करें। फिर गणपति देव का ध्यान करें –

ॐ गणपतये नमः एक दन्ताय विद्महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात्।।

इसी प्रकार नवग्रह का ध्यान करें –

ॐ ब्रह्ममुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु शशि भूमि सुतो बुधश्च गुरूश्च शुक्र शनि राहु केतवः सर्व ग्रहाः शन्ति करा भवन्तु।।

महालक्ष्मी पूजन के लिये चाँदी के सिक्के को थाली में रखें। आव्हान के लिये अक्षत अर्पण करें। जल से तीन बार अर्घय दें, स्नान करायें, फिर दूध, दही, घी, शक्कर तथा शहद से स्नान कराकर पुनः शुद्ध जल से स्नान करायें। कलावा, केसर, कुमकुम, अक्षत, पुष्पमाला, गुलाल, अबीर, मेंहदी, हल्दी, कमलगट्टे, फल तथा मिष्ठान अर्पण करके 108 बार एक-एक नाम बोल कर अक्षत चढ़ायें।

ॐ अणिम्ने नमः। ॐ महिम्ने नमः। ॐ गरिम्ने नमः। ॐ लघिम्ने नमः। ॐ प्राकाम्ये नमः। ॐ इशितारो नमः। ॐ वशितारों नमः।

इसके बाद मिष्ठान प्रसाद स्वरूप वितरण करके पान, सुपारी, इलायची, फल चढ़ायें और प्रार्थना करें –

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुर पूजिते।
शंख, चक्र, गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।

अपने घर, धर्मस्थल आदि के कलम हथियार, बही-खाते, डायरी आदि नित्य प्रायः प्रयोग होने वाले साधनों में कलावा बाँधें तथा उन पर पुष्प, अक्षत तथा कुमकुम अर्पण करके कहें, ॐ महाकालिये नमः अंत में आरती पुष्तांजलि करके अपने परिजनों को प्रणाम करें, उनका आशीर्वाद लें। इस चाँदी के सिक्के को लाल कपडे़ में लपेटकर अपने पूजा स्थान में रख दें।

लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ सरलतम उपायः

पहला उपाय:- महानिशा काल में अपने घर, दुकान, फैक्ट्री आदि में ये उपाय करें। पूरे वर्ष चमत्कारिक रूप से प्रभाव व लाभ दिखाई देगा। उत्तर-पूरब दिशा में कोई ऐसा पवित्र स्थान चुन लें जहाँ कोई अन्य सामान न रखा हो। हल्दी से यहाँ स्वास्तिक या गणपति यंत्र बना कर जल से भरा एक पात्र स्थापित कर दें। धरती से यह थोड़ा ऊपर रहे तो शुद्धता की दृष्टि से और भी अधिक अच्छा रहेगा। कलश पर लाल कपड़ा लपेटकर एक पूजा वाला नारियल स्थापित कर दें। इसे अक्षत, रोली, चावल, पुष्पादि से अलंकृत करें। निम्न मंत्र की 11 माला जप करें। तदंतर में एक माला इस मंत्र की जपते रहें। जप से पूर्व कलश का जल बदल कर नारियल पुनः स्थापित कर दिया करें।

ॐ नमो मणि भद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी वांच्छितं पूरय पूरय ऐं हृीं क्लीं ह्यौं मणि भद्राय नमः।।

दूसरा उपाय:- धनतेरस को बड़हल (इस फल को खड़हल-बड़हल भी कहते हैं) क्रय करके घर ले आयें। फल यदि इस दिन उपलब्ध न हो तो पहले से भी लेकर रखे जा सकते हैं। यदि फल सुलभ न हों तो केले के किसी सघन वृक्ष को चुन लें। इसी दिन शुक्र की होरा में फल में या केले के वृक्ष के तने में चाकू से चीरकर उसमें थोड़ी सी चाँदी दबा दें। दीवाली के दिन किसी सुनार से इस चाँदी का अपनी अनामिका या कनिष्ठिका अंगुली की नाप का छल्ला बनवा लें। इसे कच्चे दूध तथा गंगा जल से धोकर दीवाली में होने वाली अपनी पूजा में रख दें। लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ-साथ इस छल्ले की भी यथा भाव पूजा अर्चना कर लेें और अंगुली में धारण कर लें। इसके बाद प्रत्येक पूर्णिमा को इसे गंगा जल तथा कच्चे दूध से पवित्र करके पुनः धारण कर लिया करें। लक्ष्मी जी की कृपा पाने का यह एक अच्छा उपक्रम सिद्ध होगा।

तीसरा उपाय:- दरिद्रता से कहीं बड़ा अभिशाप है ऋणी होना। ऋण का भार व्यक्ति को चैन से नहीं बैठने देता। दीवाली की रात्रि में एक लाल अथवा नारंगी रंग के पेपर में रक्त चंदन तथा रोली के घोल तथा चमेली की कलम से यह यंत्र अंकित कर लें। गणपति जी के भव्य रूप का ध्यान करते हुये उनकी धूप- दीप तथा रक्त पुष्प से पूजा-अर्चना करें। गणपति जी पर दूब-घास के टुकड़े चढ़ायें। दूब-घास की जड़ में जो बल्व बनते हैं, गणपति जी पर उन्हें चढ़ाने का विशेष महत्व होता है। लक्ष्मी साधना में अंत में श्री यंत्र भी गणपति जी के चरणों में अर्पित करके एक माला श्री गजानन जय गजानन जपें। पूजा की समाप्ति के बाद यंत्र को मोड़कर ताँबे के ताबीज में बंद कर लें। इसे सदा अपने पास रखें। नित्य एक माला उक्त मंत्र की जपकर गणपति जी से ऋण मुक्ति की प्रार्थना दीन होकर करते रहें। आपको कुछ ही समय में अच्छा लगने लगेगा। निष्ठावान व्यापारी वर्ग भी इस प्रयोग को करके लाभ उठा सकता है।

चौथा उपाय:- एक छोटा दाक्षिणावर्ती शंख लें दीपावली के महानिशा काल से आरम्भ करके यह उपाय अनवरत 18 सोमवार तक करें। अक्षत लक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहेगी।

महालक्ष्मी पूजन काल में उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आप बैठ जायें। गीता का निम्न लक्ष्मी प्रदायक मंत्र श्रद्धा से 18 बार जप करें। दीपावली से पड़ने वाले अगले सोमवार से इसी प्रकार 18 बार यह मंत्र जप किया करें। प्रत्येक बार एक शंख में हवन मेें दी जाने वाली आहुति की तरह चावल छोड़ दें। इसी दिन चावल से भरे इस शंख को किसी कुँआ, तालाब अथवा नदी में कच्चा सूत बांध कर लटका दें। ध्यान रखें शंख को जल में लटकाना है, विसर्जित नहीं करना है। कुछ समय में सूत स्वयं गल जायेगा और शंख पानी में समा जायेगा। यह विशेष रूप से ध्यान रखना है कि दीवाली से पड़ने वाले अगले 18 सोमवार में ही यह क्रम समाप्त हो। उपाय काल में आपको यदि बाहर जाना भी पड़े तो वहाँ भी आप यह कर सकते हैं। यदि नित्य 18 बार यह मंत्र आप जपने का नियम बना लेते है तो परिणाम और भी अच्छे मिलने लगेंगे।

जप मंत्र-
यत्र योगेश्वरः कृष्णों तत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो – मुतिर्घरुवा नितिर्मतिमम्।।

पाँचवा उपाय:- धनतेरस के दिन सम्भव हो तो एक बड़ा दक्षिणावर्ती शंख क्रय कर लें, इसे धातु के एक पात्र में रख लें। लकड़ी के पटरे अथवा घर में उपलब्ध किसी स्वच्छ थाली में हल्दी के घोल से रतिप्रिया धनदा याक्षिणी का चित्र अपनी कल्पना अनुसार अंकित कर लें। उस पर क्रय किया हुआ शंख स्थापित कर दें।
शंख का पूँछ वाला भाग सदैव उत्तर पूरब दिशा में होना चाहिये। धनतेरस से दीपावली तक एक समय निश्चित करके निम्न दो मंत्रों मेें से एक अथवा दोनों मंत्रों की 11 माला नित्य जप करें। प्रत्येक मंत्र के बाद नागकेसर मिश्रित चावल थोड़े-थोड़े करके शंख अथवा पात्र में छोड़ते रहें। अगले दो दिन इन्हीं चावलों को पुनः 11 माला जपकर शंख में छोड़ते रहें। महालक्ष्मी पूजन में इस शंख को रखकर यथा श्रद्धा पूजा कर लें और अपनी पूजा अथवा कार्य स्थल में कहीं शुद्ध स्थान देखकर रख दें। इसमें श्रीफल, एक कौड़ी तथा एक चाँदी का सिक्का रखकर लाल कपड़े से ढक दें। इसके बाद नित्य मंत्र जाप करते रहें। पूरे वर्ष लक्ष्मी जी की कृपा आप पर बनी रहेगी। महालक्ष्मी पूजन में रखा हुआ चाँदी का सिक्का भी आप इस शंख अथवा पात्र में स्थापित कर सकते हैं।

जप मंत्र-
1. ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।
2. ॐ श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः।

छठा उपाय:- दीपावली के दिन एक श्रीफल (न मिले तो एक साबुत सुपारी ले लें), पाँच पीली बड़ी कौड़ी, पाँच हल्दी की अखंडित गाँठें, एक मुट्ठी नागकेसर, गेहूँ, डली वाला नमक एक पीली थैली में जमा कर लें। इसमें दीवाली में सिद्ध किया हुआ अपना कोई सिक्का, विग्रह, पीली बड़ी हरड़ आदि भी रख सकते हैं। ध्यान रखें कि यह समस्त पदार्थ लक्ष्मी को आकर्षित करने का विशेष गुणधर्म अपने में समाहित किये हुये है। कपड़े की यह थैली आप अपने भवन, दुकान फैक्ट्री अथवा अन्य किसी भी कार्य स्थल के उत्तर-पूरब कोने में कहीं ओट में टाँग सकते हैं। पूरे वर्ष यह थैली ऐसे ही टंगी रखनी है, इसका करना कुछ नहीं है।

सातवाँ उपाय:- दीपावली के दिन महालक्ष्मी पूजन अथवा किसी ग्रहण वाले दिन हनुमान जी पर चढ़ने वाला सिंदूर तथा गाय का शुद्ध घी लेकर घोल बना लें। इस घोल से अपने कार्यस्थल, पूजा स्थल आदि की उत्तर अथवा पूरब मुखी दीवार पर

यंत्र अंकित कर लें। यदि दुकान आदि में आप मूल्यवान सामग्री के लिये कोई अलमारी अथवा तिजोरी रखते हैं तो उसके पृष्ठ भाग में ही यह यंत्र अंकित कर सकते हैं। तदन्तर में नित्य यथा श्रद्धा धूप-दीप जलाकर कोई भी लक्ष्मी प्रदायक यंत्र आप यंत्र के सामने जप कर और भी अधिक शुभफल प्राप्त कर सकते हैं।

अन्त में एक सलाह अवश्य मानें। धूप प्रयोग बंद कर दें। अधिकांश धूप सड़े हुये मोबिल आॅयल से बनती है। इससे देवी देवता प्रसन्न हो न हों आपके फेफड़े अवश्य खराब हो जायेंगे। दहकते हुये गाय के गोबर के कंडे पर घी में डुबाकर दो लौंग, चीनी अथवा बतासा थोड़ा सा कपूर तथा गोला गिरी का टुकड़ा डालकर धूनी करें। भीनी-भीनी सुगंध से वातावरण सुगन्धित हो उठेगा और आपका चित्त भी पूरी तरह से पूजा आदि में रमेगा।

इस अर्थ प्रधान युग में लक्ष्मी जी की महिमा चारों तरफ है। इसकी माया से आम व खास आदमी, गरीब व अमीर सभी लोग समान रूप से प्रभावित रहते हैं। इसको सभी चाहते हैं, परन्तु यह किसको चाहती है यह जानना कठिन है। शास्त्रकारों ने लक्ष्मी की महिमा का बड़ा भारी वर्णन किया है तथा यह बताया है कि- उद्यम व साहस से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस बात को आधुनिक सभ्यता में पला बुद्धिजीवी व्यक्ति भी स्वीकार करता है। वास्तव में परिश्रम से व्यक्ति अपने ही भाग्य का निर्माण करता है। परन्तु हम व्यवहारिक जीवन में देखते हैं कि एक व्यक्ति कठोर परिश्रम करता है, दिन-रात मेहनत करता है, फिर भी वह अपने जीवन की आवश्यक सुविधाओं को नहीं जुटा पाता। दूसरी ओर हम ऐसे निरक्षर व निरूधर्मी लोगों को जब देखते हैं, जिनको ठीक ढंग से लिखना पढ़ना नहीं आता वे लखपति-करोड़पति हैं।

कुछ लोग बड़े लगन उत्साह से, मेहनत से व्यस्त सड़क के मुख्य चैराहों पर बड़ी-बड़ी दुकानें खोलते हैं। मिलजुलकर खूब परिश्रम करते हैं, बड़ी-बड़ी प्लानिंग करते हैं परन्तु वर्ष के अन्त में हिसाब होने पर अपने परिश्रम का उतना लाभ नहीं हो पाता। इनके अतिरिक्त छोटी दुकान लेकर, कोने में बैठे हैं, परंतु अधिक कमा रहे हैं। भाग्य निर्माण करने हेतु लक्ष्मी प्राप्त करने हेतु शास्त्रकारों ने कई मान्त्रिक व तांत्रिक उपाय भी बताये हैं। आप भी इन उपायों को स्वयं काम में ले सकते हैं। मित्रों, सम्बन्धियों को बता सकते हैं।

(1) दीपावली, नवरात्रि या किसी शुभ दिन –ॐ श्रीं हृीं क्लीं हृीं महालक्ष्मै नमः। इस मंत्र के एक लक्ष सतत जाप करायें। इसके दशांश का हवन बिल्व-समिधा व गोधृत से करना चाहिये तथा क्रमानुसार मार्जन, तर्पण व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिये। विशेष श्रद्धा व भक्ति के साथ अनुष्ठान करने पर यह मंत्र शीघ्र लाभ देता है। फिर भी यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि लक्ष्मी किन घरों में जाना पसन्द करती हैं।

2. जहाँ लोेग प्रातःकाल सूर्योदय के पहले उठते हैं, तथा नियमित रूप से जिन घरों में ‘श्री यंत्र’ का पूजन होता है, उनके घर लक्ष्मी अवश्य जाती है।

3. जिन घरों में नित्य सफाई रहती है, अंधेरा नहीं होता, वहाँ लक्ष्मी जाना पसन्द करती है।

4. जहाँ अतिथि का सत्कार होता है तथा गाय व ब्राह्मण की पूजा होती है वहाँ लक्ष्मी रहना पसन्द करती हैं।

5. जिन घरों में पारिवारिक कलह अशांति तनाव न हो, तथा जहाँ स्त्रियों का आदर होता हो वहाँ लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करती हैं।

6. शागंधर संहिता के अनुसार जिसके वस्त्र तथा दाँत गंदे हैं, जो बहुत खाता हो तथा निष्ठुर भाषण करता हो, जो सूर्योस्त काल में सोया रहता हो, फिर वह चाहें चक्रपाणि विष्णु ही क्यों न हों, लक्ष्मी उसका परित्याग करके चली जाती हैं।

7. उच्छिष्ट (जूठन) व गंदा भोजन करने पर लक्ष्मी शीघ्र अप्रसन्न होती हैं। दानवीर दैत्यराज बलि ने एक बार उच्छिष्ट भक्षण कर ब्राह्मणों का निरादर किया। लक्ष्मीजी ने उसी समय बलि का घर छोड़ दिया। लक्ष्मीजी ने कहा – चोरी, दुव्र्यसन, दुवर्यसना, अपवित्रता एवं अशान्ति से मैं अत्याधिक घृणा करती हूँ। इसी कारण आज मैं बलि का त्याग कर रही हूँ, भले ही वह हमारा प्रिय व्यक्ति रहा हो।

8. लक्ष्मी को सरल, शीलवान, धैर्यवान लोग प्रिय हैं। असुर राज भक्त प्रहलाद ने एक ब्राह्मण को शीलदान कर दिया। उसके कारण लक्ष्मी ने उन्हें तत्काल छोड़ दिया। तत्पश्चात अनेक प्रकार से प्रार्थना करने पर करूणामयी लक्ष्मी ने साक्षात् दर्शन देकर उपदेश दिया-हे प्रहलाद! तेज, धर्म, सत्य, व्रत, बल एवं शील इत्यादि मानवीय गुणों में मेरा निवास है। इन गुणों में शील अथवा चरित्र मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं। इस कारण मैं सच्छील व्यक्ति के यहाँ रहना सबसे अधिक पसन्द करती हूँ।

9. इसी प्रकार महाभारत के अनुशासन पर्व में लक्ष्मीजी, रूक्मिणी जी से कहती हैं- हे सखी! निर्लज्ज, कलहप्रिय निंदा प्रिय, दूसरों से अकारण ईष्या करने वाले, मलीन, अशांत एवं लापरवाह-असावधान, नासमझ, मूर्ख लोगों का मैं अतीव तिरस्कार करती हूँ तथा इनमें से एक भी दुर्गुण व्याप्त होने पर मैं उस व्यक्ति का त्याग कर देती हूँ।

10. जहाँ लोग सात्विक भोजन करते हों तथा पवित्र व विनम्र वाणी बोलते हों, जहाँ पर नित्य ‘श्री सूक्त’ व कनकधारा स्त्रोत का पाठ होता हो। जहाँ पर नित्य श्री यंत्र के दर्शन सुबह शाम होते हों वहाँ से दरिद्रता हमेशा के लिये भाग जाती है, उस घर में लक्ष्मी जी का स्थायी निवास हो जाता है।

11. पूजा स्थान पर सम्पुट दुर्गा यंत्र स्थापित करके ऐं हृीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे मंत्र का जाप करने से असीम धन प्राप्ति के साथ-साथ पारिवारिक मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

12. श्री यन्त्र, नवरत्न अंगूठी पहनने से नौ ग्रहों द्वारा दिये जाने वाले दुःख व हानियाँ समाप्त होते हैं तथा धन का अभाव दूर होता है।

13. श्री यंत्र या कनकधारा श्री यंत्र की नियमित पूजा से विपत्तियों का नाश होता है। गया धन वापस आता है और सुख-सम्पदा की प्राप्ति होती है।

14. ‘‘श्री सूक्त’’ का पाठ श्री यंत्र को पूजा स्थान पर रखकर जिन घर में नियमित रूप से होता है वहाँ लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।

15. देव्यर्थ व शीर्ष स्तोत्र की साधना बहुत फलप्रद मानी जाती है। इसकी साधना से सभी कुछ प्राप्त होता है।

16. गुरूजी द्वारा दीपावली की रात्रि में सिद्ध किया हुआ पैंसठिया यंत्र हमारे कार्यालय से मंगवाकर अपने भण्डार में रखने से धन एवं अन्न के साथ भरण-पोषण की कमी नहीं रहती।

17. अपामार्ग को ताबीज में बन्द करके गले में डालने या दाहिने हाथ में बाँधने से नवग्रहों का प्रकोप शान्त होता है। अपामार्ग की महिमा अपरम्पार है। इसे घर में रखने से शत्रुओं का नाश होता है।

18. एक मुखी रूद्राक्ष को पूजा स्थान पर रखकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का अखण्ड जाप करने से ग्रह बाधा दूर होगी। घर में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता।

19. पारद शिवलिंग (इस शिवलिंग की शुद्धता 90% से अधिक होना चाहिए)। शुद्ध पारद शिवलिंग जिस घर में है और ॐ नम: शिवाय। मंत्र से उसकी पूजा होती है वहाँ भगवान शंकर वास करते हैं।

20. बारह मुखी रूद्राक्ष भगवान भास्कर का स्वरूप माना जाता है। जिस व्यक्ति को ऐसा असली रूद्राक्ष मिल गया उसकी बीमारियों से सदैव रक्षा होती है। अकाल मृत्यु टालने की इसमें शक्ति होती है। ब्लडप्रेशर तथा हार्टअटैक को नियंत्रित रखने में रामबाण काम करता है, तथा ऋद्धि-सिद्धि प्रदाता है।

21. गायों की सेवा करने गुरू और ब्राह्मणों का सम्मान करने वालों पर लक्ष्मीजी सदा प्रसन्न रहती हैं।

22. अपनी उन्नति चाहने वालों को किसी के मार्ग में बाधा नहीं बनना चाहिये। इसका परिणाम दुर्भाग्य को बुलाना है।

श्री यंत्र की महत्ता –
प्राचीन काल से ही श्री यंत्र का विशेष महत्व है। हजारों ग्रन्थों में इस यंत्र की श्रेष्ठता को प्रदर्शित किया गया है क्योंकि यह मनुष्य की उन्नति का सर्वाेत्तम साधन है। यह यंत्र जीवन की दरिद्रता को नाश करने का सरल-सहज उपाय है, यह जीवन की वैभवशाली और मात्र घर में ही नहीं अपितु दुकान, फैक्ट्री, कार्यालय आदि व्यावसायिक स्थानों पर भी किया जाता है। शंकराचार्य बद्रीनाथ में श्री यंत्र की स्थापना की थी जिस कारण वे आज भी सम्पन्न बने हैं। इसके पूजन में लाल पुष्प, कमलगट्टा, रूद्राक्ष या मूंगे की माला सर्वाेत्तम है। श्री यंत्र भोजपत्र अथवा चांदी पर बनवा सकते हैं। (संभव हो तो चांदी का लॉकेट बनवा लें) की प्राण प्रतिष्ठा विधिवत् योग्य साधक के निर्देशन में कि जाये तो इसके दर्शन मात्र से लाभ मिलता है।

विधि:- (1) दीपावली या होली की रात्रि या ग्रहणकाल में अष्टगन्ध की स्याही बनाकर अनार की कलम से भोजपत्र पर भी बना सकते हैं। इस यंत्र को 108 बार अभिमंत्रित करके (उसकी धूप, गंध, अक्षत, दीप, नैवेधार्चन से पूजा करें।) चांदी पर बने श्री यंत्र लॉकेट को दूध में धोकर गले में धारण कर लें। प्रत्येक होली, दीपावली और ग्रहण में गुग्गल की धूप दें।

(2) अगर संभव हो तो अपने घर आँगन में एक अशोक का पेड़ लगा दें। अथवा सोमवार के दिन अशोक का पत्ता तोड़कर सदैव अपने पास रखें। भाग्योदय में सफलता मिलेगी।

(3) हस्त नक्षत्र के दिन शाम 5-6 बजे के मध्य दाड़िम की कलम व हल्दी से सफेद कागज पर इस यंत्र को 108 बार लिखकर शंकर भगवान को चढ़ायें। यंत्र चढ़ाते समय समय पं लं ऐं पं बोलते रहें, सभी यंत्र चढ़ाने के बाद इनमें से एक यंत्र को पुनः उठाकर ताम्र ताबीज में डालकर पं लं दं बोलकर दाहिनी भुजा में बाँध दें।

(4) पं लं दं यंत्र लिखकर मिट्टी पर, पीपल का पत्ता रविवार को, एं वं लं लिखकर जामुन का पत्ता सोमवार को, ऐ सं दं लिखकर अशोक का पत्ता मंगलवार को, हरे कपड़े में बाँधकर अपने बाजू पर बाँधकर ‘ऐं दं लं’ की दो माला नित्य तीन माह तक जपें। इस प्रयोग से व्यापार, भाग्योदय साक्षात्कार व अर्थलाभ में सफलता मिलेगी।

(5) असली नेपाली त्रयोदश मुखी रूद्राक्ष धारण करने से सभी मनोरथ सिद्धि होते हैं और सौभाग्य प्राप्त होता है।

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