• 28 April 2024

मंगली कुंडली

Dr. R. B. Dhawan (Astrological Consultant)

भारतीय सनातन संस्कृति और ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास रखने वाले अधिकांश लोग आज भी वर-कन्या के विवाह में दोनों के जन्मांगों का मिलान हो जाने पर ही उस विवाह को मागंलिक और सुख सौभाग्यप्रद समझते हैं। इसमें मगंली का विचार प्रधान रूप से देखा जाता है, अतः में वर-कन्या के मेलापक में “मंगल का विचार” पर ही एक लेख प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।

सृष्टि के सृजन काल से ही भारतीय वैदिक ज्यौतिष, वेद का प्रमुख अंग माना जाता रहा है। जिस प्रकार समस्त इन्द्रियों में मुख्य इंद्री मन को माना गया है, इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र को भारतीय जन-जीवन में धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष का निर्देशक पद (मुख्यत्व) प्राप्त है। ज्यौतिष शास्त्र 27 नक्षत्रों और द्वादश राशियों तथा नवग्रह मण्डल के अन्तर्गत समस्त लोकों को अपने आधीन किये हुये है। किसी तरूण-युगुल को प्रेम की डोरी में बाँधने के लिये हमें ज्योतिषीय सहारा लेना पड़ता है। अर्थात वर-कन्या दोनों की कुण्डलियों के मेलापक पर विचार करना पड़ता है। इसमें मगंली का विचार विशेष महत्व का होता है। वर-कन्या यदि दोनों मंगली हों, तभी विवाह शास्त्र सम्मत शुभ माना गया है, अन्यथा नहीं।

मंगली का विचार:- वर-कन्या के जन्मागों में स्थित मंगल का विचार लग्न और राशि दोनों से किया जाता है। मंगल का विशेष विचार मंगल के द्रष्टि सम्बन्ध, क्षेत्र सम्बन्ध, परस्पर बलाबल और अन्योन्याश्रित ग्रहों के योग कारक सम्बन्ध से किया जाता है। सामान्यतया लग्न में लग्न से चौथे स्थान में अल्प-पुत्र की प्राप्ति, सातवें अथवा आठवें मंगल स्थित हो तो विधवा, और वारहवें मंगल हो तो दुष्ठ कर्म कराता है।

लग्न से मंगल का विचार:- कन्या या वर के जन्म-लग्न में यदि मंगल मेष राशि का हो, जो कि उसकी स्वयं की राशि है तो, वह मंगल दोष कारक नहीं होता। वृष राशि का मंगल लग्न में हो तो साथी से विलासिता एवं काम-कला में जातक/जातिका बलवान होता है। मिथुन राशि का हो तो साथी के लिये शुभ परन्तु अपने लिये मानसिक व्यथा एवं विकार कारक होता है। कर्क का मंगल अनेक कलाओं का उपासक तथा साथी के सुख की हानि करता है। सिंह का मंगल वैधव्य कारक होता है; साथ ही अपने लिये भी आघातकारी, रक्तचाप अथवा विस्फोटक रोग देता है। कन्या राशि का मंगल गुप्त रोग मानसिक व्यथा देता है। परन्तु साथी के लिये अच्छा है। तुला का मंगल काम-कला में चतुर और साथी को वशीभूत करता है। वृश्चिक का मंगल ओज और प्रतिभा देता है। परन्तु साथी के लिये गुप्त विकार देता है। धनु का मंगल विशेष यश कीर्ति और रजोवीर्यबल का साधन जुटाता है। मकर का मंगल अपने लिये आधातकारी, आकृति पर व्रण, फोड़ा, फुन्सी, चेचक देता है, परन्तु साथी के लिये अच्छा है। कुम्भ का मंगल साथी से प्रेम-समता चाहता है। मीन का मंगल यश-कीर्ति देता है, परन्तु साथी के लिये गुप्त रोग देता है।

चतुर्थ से मंगल का विचार:- वर या कन्या के जन्मांग में मेष राशि में चौथे स्थान में मंगल हो तो, साथी के लिये शुभ और अनुरागकारी होता है। वृष का वैधव्यकारक और मिथुन का बाल वैधव्य देता है। कर्क का मंगल काम-कला मे बलवान; सिंह का मंगल साथी के लिये महत्वपूर्ण, साथी की ज्ञान-शक्ति का वर्णन कर विश्व में यशकीर्ति देता है। कन्या का मंगल साथी से वैराग्य तथा अपने लिये व्ययकारक; तुला का मंगल काम-कला में निपुण तथा राजसी सुखों का भोग कराता है। वृश्चिक का मंगल वैधव्यकारक; धनु का दाम्पत्य सुख और साथी की आध्यात्मिक जागृति एवं दीर्घायु देता है। मकर का मंगल साथी से विवाद और कुम्भ का साथी से काम-कला में विशेष सुख परन्तु मीन का मंगल यदि चतुर्थ हो तो जीवन साथी से वियोग देता है।

सप्तम से मंगल का विचार:- वर या कन्या के जन्मांग में सातवें घर में मेष का मंगल हो तो, स्वराशि में होने से वह साथी के लिये शुभ है। और उसे विशेष अनुरागमयी बनाता है। कन्या की कुंडली में वृष का मंगल हो तो पति को काम-कला में रोगी तथा पुरुष की कुंडली में वृष का मंगल पत्नी का मासिक-धर्म विकृत होता है; मिथुन का मंगल साथी को मानसिक चिन्ता; कर्क का साथी से विशेष अनुराग; सिंह का साथी को उत्कर्ष की ओर ले जाने वाला; कन्या का मंगल साथी को गुप्तेन्द्रिय विकार युक्त और तुला का मंगल रक्त विकार देता है, और साथी के लिये चिन्ताकारी है। वृश्चिक का मंगल साथी के साथ विवाद, धनु का साथी की आध्यात्मिक जाग्रति, दीर्घायुकारक; मकर का गुप्तेन्द्रिय विकार परंतु साथी से सुख देता है; कुम्भ का दाम्पत्य सुख और मीन का मंगल सप्तम स्थान में पति-पत्नी वियोग ओर वालवैधव्य का प्रतीक है।

आठवें से मंगल का विचार:- वर या कन्या के जन्मांग में आठवें स्थान पर मेष का मंगल साथी से स्नेह का भाजन और सुभगा हो; वृष का सम्भोग से साथी को वशी-भूत करे, मिथुन का काम-कला में साथी से दुर्बलता, कर्क का साथी के मन-मस्तिष्क का हनन करे; सिंह का साथी से विशेष अनुराग रखे, कन्या का मासिक-धर्म विकृत करें, परन्तु साथी के लिये मंगल प्रद है, धनु का साथी के ध्यान-ज्ञान एवं आयु की वृद्धि दे; मकर का आधातकारी और रक्त विकार दे; कुम्भ का साथी के लिये अनिष्टकारक और मीन का मंगल आठवें होने से ध्यान-ज्ञान की चर्चा करे, और साथी की मध्यमायु देता है।

बारहवें से मंगल का विचार:- वर या कन्या के जन्मांग में बारहवें मेष का मंगल हो तो, वह कन्या पति के लिये और पुरुष पत्नी के लिए उत्तम होता है, और दाम्पत्य सुख भोगता है। वृष का मंगल शारीरिक विकार और व्यथा कारक है; मिथुन का वैधव्यकारक, कर्क का साथी को आन्तरिक कष्ट, सिंह का आचानक अपना आघात कराये; कन्या का वैधव्यकारक; तुला का साथी के लिये विशेष अनुराग, राज सुखकारक होता है, वृश्चिक का साथी से विद्रोह, धनु का साथी की कामनाओं की पूर्ति करे; मकर का पति-पत्नी विवाद और विछोह दे, कुम्भ का साथी को वशीभूत करे, और मीन का मंगल वारहवें हो तो, वह कन्या अपने पति पर अथवा पुरुष पत्नी से अटूट स्नेह रखते हैं, और धर्म-परायण होते हैं।

मंगल-दोष का समाधान:-
जामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने वा हिबुकेऽथवा।
नवमें द्वादशे चैव भीम दोषो न विद्यते।।
—— वृहज्यौतिसार

जिसके जन्मलग्न से सातवें, लग्न में या चौथे, नवम, अथवा बारहवें शनि का वास हो तो, उस मंगल को दोष नहीं होता। इसी प्रकार राहु या केतु लग्न, चतुर्थ, सप्तम या बारहवें हो तो, मंगली-दोष को कम करते हैं।

बृहस्पति तथा पराशरादि का वचन है कि-

द्वयापि पापयुते भौमे सप्तमे वाष्टमें स्थिते।
बाल वैधव्य योगः स्यात्कुल नाश करी वधूः।।

यदि मंगल सातवें आठवें दो पाप ग्रहों के साथ बैठा हो तो, वह बाल-विधवा-योग देता है। योग जातक में लिखा है कि, आठवें या बारहवें स्थान में मंगल पाप-ग्रह से युक्त हो, और लग्न में राहु हो तो, वह कन्या विधवा हो जाती है; लग्न में सूर्य, मंगल और शनि हो तो, वह स्त्री दुर्भगा होती है। इस प्रकार केवल मंगल का लग्न, चतुर्थ, अष्टम और बारहवें स्थान में किसी कन्या या वर की कुण्डली में होना कोई विशेष चिन्ता का विषय नहीं होता। जब तक अन्य पाप ग्रह भी साथ में न हों, तब केवल मंगल अशुभ कारक फल नहीं देता

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