• 27 April 2024

महालक्ष्मी साधना विधान

साधक जब इस मंत्र की साधना करता है तब एक विशेष प्रकार की दिव्य ऊर्जा वातावरण में प्रकट होती है :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

मैं अपने प्रिय साधकों से हमेशा यही कहता रहा हूँ कि कोई भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हो तो, पूर्ण श्रद्धा एवं विशवास से तो करो ही, साथ ही साथ वह कार्य सम्पन्न हो जाने पर अपने ईष्टदेव के प्रति कृतज्ञयता अवश्य प्रकट करें (धन्यवाद के दो शब्द अवश्य कहने चाहियें)। और उस कार्य की सफलता का सेहरा अपने सर न बांधकर ईशवर को समर्पित कर देना चाहिये। समर्पण भाव से किये गये किसी भी कार्य से अभिमान की उत्पत्ति नहीं होती और सदा सफलता के द्वार खुलते चले जाते हैं।

मैं यह दावे के साथ यह कह सकता हूँ कि इस मंत्र की साधना यदि नियमपूर्वक कर ली जाये तो, चाहे अनेक वर्षो से भी लक्ष्मी जी रूंठी हों, चाहे अनेक शत्रु घोर-अतिघोर तंत्र का प्रयोग करते रहे हों, चाहे अपने भी पराये हो गये हों, तब भी माँ लक्ष्मी की कृपादृष्टि शीघ्र हो जाती है। यह अपने आप में अद्वितिय एवं अत्यन्त प्रभावशाली साधना प्रयोग है, यद्यपि यह साधना अत्यन्त सरल प्रतीत होती है, परन्तु इसका प्रभाव अपने आप में अचूक है। इस मंत्र का केवल 108 बार जप करने मात्र से ही लक्ष्मी जी की कृपा आरम्भ हो जाती है। इतिहास साक्षी है, कि ब्रह्मऋर्षि वशिष्ठ ने भी इस साधना को सम्पन्न कर अतुलनीय ऐश्वर्य प्राप्त किया था। इस साधना को हर वर्ष दीपावली पर 12 वर्ष तक करते रहने पर भगवती लक्ष्मी साक्षात जाज्वल्यमान स्वरूप में प्रगट होती है, यदि इस साधना को साधक निरंतर 12 वर्ष न करके एक ही वर्ष दीपावली की मध्यरात्रि में स्थिर लग्न (सिंह लग्न) के मुहर्त में सम्पन्न कर लेता है तो भगवती लक्ष्मी अदृश्य रूप में साधक के घर में सदा-सदा के लिये निवास करती हैं और उसे सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान करती है। पूज्यपाद शंकराचार्य ने स्वयं इस साधना की बेहद प्रशंसा की है, और कहा है कि यह साधना कलियुग में गृहस्थ लोगों के लिए कल्प वृक्ष के समान वरदान स्वरूप है। गुरू गोरखनाथ ने तो अपने सभी शिष्यों को यह साधना सम्पन्न करने की आज्ञा दी थी, जिससे कि उनके शिष्य दरिद्र नहीं रहे, पूर्ण रूप से सम्पन्न व ऐश्वर्यवान बने, जिससे कि पूरे विश्व में अपने ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर सकें। आदिकाल से यह साधना एक प्रकार से लुप्त ही हो गई थी। ग्रन्थों में इस साधना का वर्णन तो मिलता रहा, परन्तु इस साधना की बारीकियां और इसका प्रभावी प्रामाणिक मंत्र प्राप्त नहीं हो सका। इसके प्रभाव और इसकी प्रामाणिकता के बारे में प्राचीन काल के ग्रन्थ भरे पडे हैं।

साधना सामग्री-
यह अतिदुर्लभ तथा अति महत्वपूर्ण गोपनीय प्रयोग दीपावली की मध्यरात्रि में स्थिर लग्न (वृष लग्न) के मुहर्त में सम्पन्न किया जाता है। इस वर्ष यह वृष लग्न का मुहूर्त दिल्ली में 27 अक्तूबर 2019 की रात्रि में 18 बजकर 40 मिनट से आरम्भ होकर 20 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। शास्त्र विधि के अनुसार इस साधना में मुख रूप से पांच वस्तुओं की आवश्यकता होती हैै-

1-माँ लक्ष्मीजी की स्थिरता के लिये- एक तांत्रोक्त नारियल।

2-समृद्धि के लिए- हरे रत्नीय पत्थर पर निर्मित लघु आकार के सिद्ध गणपति।

3-साधना में सफलता के लिये- महालक्ष्मी के गोपनीय तांत्रिक मंत्र से अभिमंत्रत दक्षिणावर्ती शंख। इस शंख की पहचान यह है कि आप इसे सीधे हाथ से पकडेगे तो बजाने वाला भाग मुख की ओर होगा। साधारण शंख उल्टे हाथ से पकडकर बजाये जाते हैं। यह शंख दाहिनी ओर घूमा हुआ होता है। यह अपने वास्तविक रूप में तथा उपरोक्त मंत्र से अभिमंत्रित होना आवश्यक है।

4-स्थापना के लिए- कमलासन पर विराजित महालक्ष्मीजी का चित्र।

5-ऐश्वर्य तथा समृद्धि के लिए- स्फटिक रत्न पर बना सुमेरू आकार का स्फटिक श्री यंत्र।

साधक इन पांचों वस्तुओं को कहीं से भी प्राप्त कर सकता है, पर इस बात का ध्यान रहे कि ये सारी वस्तुएं मंत्र सिद्ध एवं प्रामणिक हों। इसके अतिरिक्त फूल की एक माला, कुछ खिले हुये फूल, ताम्र का जलपात्र, पांच मिट्टी के छोटे तथा इक्कीस बड़े दीपक, एक चुटकी केसर, जटा वाला नारियल, फल, नैवेद्य (मिठाई) आदि पूजन सामग्री जैसे- रोली, कलावा, पान के पत्ते, साबुत सुपारी, घूप, लौंग, ईलाईची, तथा दीपक तथा दीपक के लिये शुद्ध घी पहले से ही साधना कक्ष (पूजा घर) में रख लेना चाहिए।

साधना प्रयोग-
दीपावली के दिन सांयकाल ही पूजा कक्ष को सजा संवार कर तैयार कर लें साधक को चाहिये कि साधना के समय पीली धोती धारण करे, स्त्री साधिका हो तो बालों को धो ले और पीठ पर उन बालों को खुला रखे। यदि साधक चाहे तो पति-पत्नी दोनों आसन पर बैठ कर इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं।
अर्घरात्रि में जब सिंह लग्न आरम्भ हो उस मुहूर्त में- सबसे पहले साधक कलासन पर विराजमान महालक्ष्मी के चित्र को फ्रेम में मंढ़वा कर अपने सामने लकडी़ की चैकी पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर रख दें और उसे जल से पोंछकर उस पर शुद्ध केसर की बिन्दी लगावे, सामने नैवेद्य अर्पित करे और फिर लक्ष्मी के चित्र के सामने ही एक चावल की ढ़ेरी बना उस पर तांबे का छोटा सा कलश जल से भर कर स्थापित करे और उस पर लाल कपड़ा रख कर उस कपड़े को कलावे के द्धारा कलश के मुख पर बांध दे फिर उस पर थोड़े से चावल रखकर तांत्रोक्त नारियल तथा हरे रत्नीय पत्थर पर निर्मित लघु आकार के सिद्ध गणपति स्थापित कर दें, फिर तीन बार जल का छींटा देकर इनकी पूजा सामगी से पूजा करे और पुष्प, घूप, दीप, कलावा, रोली तथा पान, सुपारी, लौंग व ईलाईची अर्पित करें। साथ ही साथ इस कलश के सामने जटा वाला नारियल रख दें। पांच छोटे मिट्टी के दीपक एक पीतल की थाली में घी के लगावे और इक्कीस बडे दीपक अपने साधना कक्ष के द्वार पर सजा दें। जब जक साधना सम्पन्न करें तब तक घी के दीपक लगे रहने चाहिए। जो पुष्पों की माला लाई हुई है, वह साधक फ्रेम किये हुये लक्ष्मीजी के चित्र पर चढ़ा दे तथा सामने लकडी़ की चैकी पर जो पीला रेशमी वस्त्र बिछाया है उस पर दक्षिणावर्ती शंख तथा सुमेरू आकार का शुद्ध स्फटिक श्री यंत्र देवी के चित्र के सामने स्थापित कर दें।

शास्त्रों में विधान है, कि- सबसे पहले हाथ में जल ले कर संकल्प करें, फिर विनियोग और फिर न्यासादि करके देवी का ध्यान करना चाहिये। संकल्प में हाथ में जल लेकर यह भावना की जाती है कि मैं आज कार्तिक अमावस्या की रात्रि में अटूट धन सम्पत्ति, ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए यह दुर्लभ साधना सम्पन्न कर रहा हूं तथा संकल्प के पश्चात विनियोग किया जाता है-

विनियोग-

ॐ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मन्त्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवति सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूलिणी महाविद्याया श्री इन्द्र ऋषि गायत्र्यादि नाना छन्दांसि, नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवति सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे पाठे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास-
श्री इन्द्र ऋषिभ्यां शिरसे नमः।
गायत्र्यादि नाना-छन्दौभ्यौ नमः मुखे।
नव कोटि शक्ति रूपा श्रोमदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगाय नमः सर्वागे।

अंग न्यास-
ॐ श्रीं सहस्रारे।
ॐ ह्रीं नमो माले।
ॐ क्लीं नमो नेत्र युगले।
ॐ ऐ नमः हस्त युगले।
ॐ श्रीं नमः हृदये।
ॐ क्लीं नमः कटौ।
ॐ ह्रीं नमः जंगा द्वये।
ॐ श्रीं नमः पादादि सर्वागे।

उपरोक्त लिखित मंत्रों का उच्चारण करके फिर चित्र के सामने भगवती लक्ष्मी को श्रद्धा युक्त प्रणाम कर देवी के स्वरूप का मन ही मन ध्यान करें। फिर अग्रलिखित श्री सिद्ध महालक्ष्मी महाविद्या मंत्र का 108 बार श्रद्धापूर्वक पाठ करें-

श्री सिद्ध महालक्ष्मी महाविद्या मंत्र-

ॐ ऐ हृीं श्रीं ह् सौ श्रीं ऐं हृीं क्लीं सौः सौः ॐ ऐं हृीं क्लीं श्रीं जय जय महा लक्ष्मी, जगदाद्वे, विजये, सुरा सुर त्रिभुवन निदाने, दयांकुरे, सर्व देव तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे, सच्चिदानन्दे, विष्णु देहावृते, महा मोहिनी, नित्य वरदान तत्परे, महा सुधाब्धि वासिनि, महा तेजो धारिणि, सर्वाधारे, सर्व कारण कारिणे, अचिन्त्य रूपे, इन्द्रादि सकल निर्जर सेविते, साम गान गायन परिपूर्णोदय कारिणी, विजय, जयन्ति, अपराजिते, सर्व सुन्दरि, रक्तांशुके, सूर्य कोटि संकांशे, चन्द्र कोटि सुशीतले, अग्निकोटि दहन शीले यम कोटि वहन शीले ओमकार नाद बिन्दु रूपिणि, निगमागम भागदायिनि, त्रिदश राज्य दायिनि, सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणि, दिव्य देहिनि, निर्गुणो सगुणे, सदसद् रूप धारिणी, सुर वरदे, भक्त त्राण तत्परे, बहु वरदे, सहस्राक्षरे, अयुताक्षरे, सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणि, अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायिके, चतुर्विशंति मुनि जन सेस्थिते, चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे, गगन वाहिनि, नाना मन्त्रराज विराजिते, सकल सुन्दरी गण सेविते, चरणारविन्दे, महा त्रिपुर सुन्दरि, कामेश दयिते, करूणा रस कल्लोलिनि, कल्प वृक्षादि स्थिते, चिन्ता मणि द्वय मध्यावस्थिते, मणि मन्दिरे निवासिनि, विष्णु वक्षस्थल कारिणे, अजिते, अमिले, अनुपम चरिते, मुक्ति क्षेत्राधिष्ठायिनी, प्रसीद प्रसीद, सर्व मनोरथान पूरय पूरय, सर्वारिष्टान छेदय छेदय, सर्व ग्रह पीड़ा ज्वराग्र भयं विध्वंसय विध्वंसय, सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय, मोक्ष मार्गाणि दर्शय दशय, ज्ञान मार्ग प्रकाशय प्रकाशय, अज्ञान तमो नाशय नाशय, धन धान्यादि वृद्धिं कुरू कुरू, सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय, मां रक्ष रक्ष, सर्वायद्भ्यो निस्तारय निस्तारय, वज्र शरीरं साधय साधय हृीं क्लीं सिद्ध महालक्ष्मी महा विद्यायै नमः।

साधक जब इस मंत्र की साधना करता है तब एक विशेष प्रकार की दिव्य ऊर्जा वातावरण में प्रकट होती है। स्वयं इस मंत्र को पढ़ें और देखें कि यह मंत्र कितना अधिक तेजस्वी और महत्वपूर्ण है, हर वर्ष दीपावली की मध्य रात्रि में इस सिद्ध मंत्र का 108 बार पाठ कर यह साधना सम्पन्न कर लेने मात्र से 12 वर्ष में यह विद्या सिद्ध होती है। मंत्र पाठ पूर्ण होने पर साधक माता लक्ष्मी तथा लघु गणपति को मिठाई का भोग लगा कर वह प्रसाद घर के सभी परिजनों को वितरित कर दें और फिर सभी मिलकर महालक्ष्मी तथा गणपति को अपने घर में हमेशा- हमेशा के लिये स्थाई निवास की प्रार्थना करते हुये पूजा सम्पन्न करें। तांत्रोक्त नारियल को लाल वस्त्र में बांधकर घर के या व्यापार स्थल के लाॅकर में रख लें और दक्षिणावर्ती शंख तथा स्फटिक श्रीयंत्र धर के पूजा स्थान में स्थापित करें। हरे रंग के रत्नीय गणपति जी को सोने या चांदी में जढ़वाकर घर की लक्ष्मी (गृहलक्ष्मी) को बुधवार के दिन गले में धारण करवा दें। मिट्टी के दीपक, फूलादि शेष पूजा सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें अथवा भूमि में दबा दें।

साधना सामग्री कैसे प्राप्त करें-

एक तांत्रोक्त नारियल, हरे रत्नीय पत्थर पर निर्मित लघु आकार के सिद्ध गणपति, महालक्ष्मी के गोपनीय तांत्रिक मंत्र से अभिमंत्रत दक्षिणावर्ती शंख, कमलासन पर विराजित महालक्ष्मीजी का रंगीन चित्र तथा स्फटिक रत्न पर बना सुमेरू आकार का स्फटिक श्री यंत्र।
इस सारी सामग्री का पैकिट श्री सिद्ध महालक्ष्मी महाविद्या साधना पैकिट के नाम से Shukracharya कार्यालय से मंगवा सकते हैं। इस पैकिट के लिये न्यौक्षावर राशि 5100/-रू मात्र है। इस पैकिट के लिये कम से कम 10 दिन पहले कार्यालय में आर्डर करके अपने लिसे यह साधना सामग्री मंगवा लेना उचित होगा। क्योंकि पार्सल पहुँचने में कभी-कभी 10 दिन का समय लग जाता है। अतः आपकी साधना समग्री समय पर आपके पास पहुँच जाये इस बात का विशेष ध्यान रखें।

नोट :- यदि आप यह साधना स्वयं नहीं कर सकते तब ऐसी स्थिति में यह साधना आप गुरूजी के सानिध्य में विद्वानों से सम्पन्न करवा सकते हैं। इस के लिए न्यौछावर राशि 11000 है, और साधना के पश्चात आपको सामग्री का पैकिट भेजा जायेगा। इस के लिए आप दीपावली से पहले अपनी साधना बुक करवा लें।

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