• 28 April 2024

दीपावली पर सिद्ध करें, सुख-समृद्धि के मंत्र

दीपावली की रात्रि महानिशा काल में तंत्र की साधना करने का विशेष महत्व है :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

आदिकाल से पुराणों में शक्ति पूजा के लिये वर्ष के विभिन्न दिनों को मान्यता दी गई है। शास्त्रों एवं पुराणों में कार्तिक मास की अमावस्या को कालरात्री के नाम से संबोधित किया है। अमावस्या के दो दिन पूर्व से दो दिन बाद तक अर्थात पांच दिनों तक का समय पुण्य काल माना गया है। इसलिये कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को नरक चौदस, अमावस्या को दीपावली, लक्ष्मी पूजन तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को अन्नकूट एवं द्वितीया को भैया दूज के रूप में पंचमहापर्व के रूप में मनाया जाता है। यह समय शरद ऋतु काल का सुखमय एवं पावन समय रहता है। इसलिये इस ऋतु को उपासना के लिये अधिक उपयुक्त माना जाता रहा है और आज भी उसी मान्यता के अनुसार यह पंचमापर्व मनाये जाते हैं।

सामान्य गृहस्थ व्यक्ति, आज की भाग-दौड़ में व्यस्त, जटिल विधि-विधान या क्रिया-कलाप में नहीं उलझ सकते, उनको शुद्ध संस्कृत का उच्चारण, संकल्प, विनियोग या न्यास का ज्ञान नहीं होता, वे अपने व्यस्त समय में से नित्य कुछ समय निकालकर साधना मंत्र जप भी नहीं कर सकते। लेकिन विशेष मुहूर्त काल में, होली, दीपावली, ग्रहण आदि अवसर पर मात्र कुछ घण्टे के प्रयोग से ही वे उन साधनाओं का परिणाम प्राप्त कर सकते हैं जो कि आप सामान्य दिनों में कई दिनों तक विधि-विधान कर प्राप्त करते हैं।

कई बार व्यक्ति परिश्रम करता है, भागदौड़ करता है, चैबीस घण्टे कार्य या व्यापार में जुटा रहता है, फिर भी आर्थिक दृष्टि से सफलता प्राप्त नहीं कर पाता, व्यापार में बाधाएं आती रहती हैं, शत्रु हावी होते रहते हैं, और आर्थिक दृष्टि से जो सम्पन्नता आनी चाहिये, दुर्भाग्य की वजह से वह सम्पन्नता नहीं आ पाती, ऐसी स्थिति में एक ही उपाय शेष रह जाता है, कि छोटे-छोटे धन समृद्धि कारक प्रयोगों के माध्यम से अपने आर्थिक पक्ष को पूर्णता दी जाये।

दीपावली की रात्रि महानिशा काल में तंत्र की साधना करने का विशेष महत्व है। इसी समय लक्ष्मीजी की आराधना करने से अक्षय धन-धान्य की प्राप्ति होती है। यह समय लक्ष्मी प्राप्ति की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। कहा गया है –

अर्द्धरात्रात् परंपच्च मुहूर्तज्ञयमेव च।
सामहारात्रि रूटिटण्टा लऊतं चाक्षयं भवेत्।।

अर्थात दीपावली की रात्रि को आधी रात्रि के पश्चात् जो दो मुहूर्त का समय है उसे महानिशा कहते हैं, उसमें आराधना करने से अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
दीपावली की ही रात्रि में आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, चेटक, मारण तक के प्रयोग किये जाते हैं। यह प्रयोग मात्र एक रात्रि की साधना से ही प्रभावी हो जाते हैं। महानिशा में किये गये प्रयोग गंभीर असर करते हैं। महानिशा ऐसी रात्रि है जो वर्ष में केवल एक बार ही आती है। क्या आप ऐसी रात्रि सोते हुए, जुंआ खेलते हुए, राग-रंग या मस्ती में गुजार देंगे। इस वर्ष महानिशा में सोये हुए नहीं रहें बल्कि मनोकामना पूर्ति के लिये सम्पूर्ण रात्रि साधना करें।
पूर्व विधि-विधान से लक्ष्मी पूजन हो और मनोकामना पूर्ण न हो, दरिद्रता नष्ट न हो, अभाव नष्ट न हों। न ऐसा कभी हुआ है और न कभी होगा। क्योंकि सभी देवता मंत्रों के अधीन हैं। और मंत्र मनुष्य के आधीन, जब मंत्रों का शुद्ध उच्चारण होगा तो देवी-देवताओं का आगमन होता ही है। आपके लिये दीपावली का अवसर है भाग्यशाली बनने का, समृद्धिशाली बनने का। धन के संबंध में हजारों तर्क- वितर्क दिये जाते हैं। सामाजिक व्यवस्था के उदाहरण देकर उनकी सार्थकता सिद्ध की जाती है, और यह है भी सही, आप धन पर हावी होइये, धन आप पर एवं आपकी बुद्धि पर हावी न हो पाये, इसका ख्याल रखें। ऋषियों ने कहा है- प्रकाश को ले आओ, अंधकार अपने आप ही नष्ट हो जायेगा। प्रकाश ज्ञान का द्योतक है और दीप साधना का प्रतीक। ज्ञान और साधना के द्वारा ही जीवन और संस्कृति में शील, सौन्दर्य एवं समृद्धि की अधिष्ठात्री माँ महालक्ष्मी की प्रतिष्ठा की जाती है। प्रज्जवलित दीप मालिकाएं सजग साधना की द्योतक हैं। हमारी कामना यही होती है कि हमारे जीवन का एक-एक पल इस दीप साधना के आलोक से प्रकाशित हो और हमारा मन एवं जीवन लक्ष्मी की विभूति से परिपूर्ण हो। यही लक्ष्मी पूजन का लक्ष्य है, धर्म उस साधना की पीठ है।

श्री महालक्ष्मी पूजा मुहूर्त-
श्री कुबेर पूजा, धन त्रयोदशी पर्व शुभारंभ संवत् 2077 कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष अमावस्या 27 अक्तूबर 2019 रविवार के दिन करें। नरक चतुर्दशी 26 अक्तूबर शनिवार यम देवता के लिये दीप दान सायं 05ः41 के उपरांत गोधूलि प्रदोष बेला में करें। तारीख 27 अक्तूबर 2019 श्री महालक्ष्मी पूजन दीपावली (दीपोत्सव पर्व) मुहूत्र्त श्री शुभ संवत् 2077 कात्र्तिक मास कृष्ण पक्ष अमावस्या, बृहस्पतिवार। परिपूर्ण अमावस्या समय तारीख 27 अक्तूबर 2019 के दिन प्रालेपन गादी स्थापना, स्याही भरना, कलम दवात संवारने हेतु प्रातः स्टैण्डर्ड रेलवे घड़ी समयानुसार प्रातः 07ः53 से 09ः17 तक चर की चैघडिया में करें।

महालक्ष्मी पूजन- इस दिन स्थिर वृष लग्न का मुहूर्त 18ः40 से 20ः35 तक रहेगा। निशिथकाल 20ः20 से 22ः54 तक रहेगा। प्रदोषकाल 17ः46 से 20ः20 के मध्य वृष लग्न 18ः40 से 20ः35 तक रहेगी। इस प्रकार अमावस $ प्रदोष काल $ वृष लग्न $ अमृत और चर का चैघडिया 20ः52 से 22ः28 तक योग रहेगा।

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त का महत्व:-

महालक्ष्मी पूजन का ठीक समय मालूम न होने से पूजन का पूर्णफल नहीं मिल पाता। 27 अक्टूबर 2019 रविवार की रात्रि को 18ः40 से 20ः17 तक। श्री महालक्ष्मी पूजन, मंत्र, जप, तंत्र पाठादि साधनाओं के लिये अमावस सहित प्रदोष, निशीथकाल स्थिर लग्न एवं अमृत-चर का चैघडिया यह योग महालक्ष्मी पूजन, मंत्र साधना, तंत्र साधना, अनुष्ठान आदि के लिये श्रेष्ठ होगा।

जैन तंत्र की प्रसिद्ध पद्मावती साधना
शक्ति की उपासना बाह्म रूप से और आंतरिक रूप से करने के विधान तंत्रागम ग्रंथों में प्राप्त है, वहीं नामोपासना भी निर्दिष्ट है। एकं सद्विप्राबहुधा व्यान्ति अथवा एकोडहं बहुस्याम् के अनुसार एक ही परमात्मा भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होकर लोक कल्याण के लिये स्वरूप धारण करता है, जिसे शास्त्रों में कर्मानुसार नाम दिये हुए हैं। एक ही देवता शतनाम, सहत्रनाम और उनमें भी तंत्र भेद से जो वैविध्य उपलब्ध होता है, उससे एक की अनेकरूपता स्वतः सिद्ध हो जाती है। भगवती दुर्गा की तीन शक्तियां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती ही आगे चलकर अपने गुणकर्मानुसारी स्वरूपों को शतधा और सहत्रधा प्रकट करती हैं। उसका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में विभूतियों के रूप में बतलाया गया है वही भगवती महालक्ष्मी मानली गई है, वह वेष्णवी शक्ति है। महालक्ष्मी का ही अपरनाम तंत्रागम ग्रंथों में पद्मावती बतलाया गया है। अतः पद्मावती साधना में स्थिति रूप फल-प्राप्ति का लक्ष्य प्रधान रहता है। स्थिति से संसार का पालन, संरक्षण, अभिक्षण अभिवर्द्धन और उनकी स्थिरता अभिप्रेत है। महालक्ष्मी पद्म में निवास करती हैं। इसका अपना नाम कमला है। सागर संभूता पद्म ही पद्मावती हैैं। इस साधना में पूर्ण सिद्धिप्रद एवं प्राण प्रतिष्ठित पद्मावती यंत्र एवं कमल बीज माला की आवश्यकता रहती है।

यंत्रमित्याहुरेस्मिन् देवः फीणाति पूजितः।
शरीरमेव जीवस्य दीपस्य स्नेहवत् पिये।।

अर्थात हे देवी पार्वती जिस प्रकार शरीर में आत्मा है, दीपक में तेल है उसी प्रकार यंत्र में समस्त देवी-देवता निहित हैं। अतः साज्ञात् इष्ट स्वरूप यंत्र का यथाविधि पूजन अभिषेकादि करने से ही अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। पद्मावती यंत्र को सवार्थदायक सभी आशाओं का पूर्तिदायक बताते हुए भगवान् शंकर भगवती पार्वती से कहते हैं –

अथ वृक्ष्यामि देवेशि यंत्र पद्मावती प्रियम।
सर्वार्थ साधकं दिव्य सर्वाशां परिपूरकम।।

शैव-वेष्णव संप्रदाय और पद्मावती :-
भगवती पद्मावती साधना शैव तथा वैष्णव दोनाें संप्रदायों में प्रचलित है। शैव साधक पद्मावती को अधोलिखित रूप में मानते हैं। जैसे कि हम सर्वप्रथम कह चुके हैं कि महालक्ष्मी का ही दूसरा नाम पद्मावती है। वैष्णव संप्रदाय में श्रीसूक्त और लक्ष्मीसूक्त अत्यन्त प्रसिद्ध सूक्त हैं। इनमें श्री विष्णु पत्नी लक्ष्मी के विविध रूपों तथा नामों का रहस्य पूर्व वर्णन होता है। वैष्णव जन श्री सूक्त में वर्णित पद्मोलिता, पद्मवर्णा, पद्ममिनी, पद्ममालिनी तथा इसी प्रकार लक्ष्मी सूक्त में वर्णित पद्मानने, पद्मऊरू, पद्माक्षि, पद्मसम्भवे, पद्म-विपद्मपत्रे, पद्मप्रिये, पद्मदलायताक्षि आदि संबोधन परक नामों को भगवती पद्मावती के रूप स्वरूप मानकर पूर्णनिष्ठा, श्रद्धा के साथ पद्मावती साधना कर अपने को धन्य समझते हैं। इसी प्रकार के पद्मावती के अन्यान्य पर्याय नामों की सूचना लक्ष्मी सहस्त्र नाम में है। जो कि उनके नामरूप की अनंतता के परिचायक है।

दीपावली की रात्रि के महानिशा काल में पद्मावती की साधना करें। साधना के समय हर वस्तु का रंग श्वेत हो तो उत्तम है। ध्यान रखें कि पद्मावती यंत्र की साधना के समय सफेद आसन, श्वेत पुष्प (चमेली के), श्वेत वस्त्र, कमल माला आदि का प्रयोग करें। एक सफेद थाली जो कि चांदी की हो या स्टील की हो, उसमें चंदन से ॐ पद्मावती नमः लिखकर उस पर श्वेत पुष्प, एक अक्षत (चावल) की ढेरी पर पद्मावती यंत्र को स्थापित कर दें। अब पद्मावती यंत्र का पूजन करें। फिर अपनी मनोकामना अनुसार पद्मावती का मंत्र चुनकर तीन माला जप करें। ध्यान रखें कि पद्मावती साधना सामग्री विसर्जित नहीं की जाती है।

पद्मावती सौभाग्य मंत्रः-
ॐ हृीं श्रीं क्लीं ब्लूं पद्मावती मम वरं देही फट् स्वाहा।

आकस्मिक धन प्राप्ति के लिये-
ॐ हृीं श्रीं पद्मावती सर्वकल्याण रूपे रां रीं द्रां द्रीं द्रों नमः।

राज्य भय दूर करने के लिये –
ॐ हृीं पद्मवज्रे नमः।।

रोजगार प्राप्ति के लिये-
ॐ हृी पद्मे राज्य प्राप्ति हृीं क्लीं कुरू कुरू नमः।

ऋणमुक्ति का अनोखा तंत्र, श्री घंटाकर्ण साधनाः-
श्री घंटाकर्ण और मणिभद्र ये प्रथक-प्रथक समतुल्य देव हैं। इनकी तुलना क्षैत्रपाल, भैरव और हनुमान जैसे देवों के समान की गई है। वास्तव में इनकी मांत्रिक एवं तांत्रिक दोनों शक्तियाँ इतनी शीघ्र प्रभावशाली हैं जिसे देख स्वयं साधक भी आश्चर्य चकित हो उठता है। एक विशाल घण्टे के मध्य भाग में धनुष पर तीर चढ़ाये हुए, तरकस और छाल को पीठ पर धारण किये, कमर की बाँयीं ओर धुरियां तथा दाहिनी ओर खड्ग, और भुजाओं पर घण्टे का भुजबन्ध पहिने सोम्य एवं शान्त प्रकृति के साथ ही वीरत्व की विलक्षण आभा लिये प्रतिमा चित्र श्री घंटाकर्ण महावीर के नाम से जाना जाता है। मंत्र इस प्रकार है –

ॐ घंटाकर्णो महावीर सर्व व्याधि विनाशकः।
विस्फोटक भयं प्राप्ते रक्ष रक्ष महाबलः।।
यत्र त्वं तिष्ठसे देव लिश्खितोक्षर पंक्तिमिः।।
रोगस्तत्र प्रणश्यन्ति वातफ्तिकफोद भवाः।।
तत्र राजभय नास्ति यान्ति कर्णे जमान्खयम।
शकिनी भूतबेताल राक्षसा प्रभवन्ति नो।।
नाकाले मरणं तस्य न च स्पर्ण दश्यते।
अग्नि चैर भयं यनास्ति ऊँ हृीं श्रीं घण्टाकर्ण।
नमोस्तुतः। ऊँ नरवीर। ठः ठः ठः स्वाहा।।

भारतीय तंत्र साहित्य में घण्टाकर्ण का स्थान विशेष है, क्योंकि ये देवताओं के प्रधान सेनापति कार्तिकेय के तृतीय सहायक सेनापति थे। वे अन्य कोई ध्वनि सुनना पसन्द नहीं करते थे, इसके लिये उन्होंने अपने कानों के समीप घण्टे लटका लिये थे, जिसके फलस्वरूप उनके कानों में कोई भी अवांक्षित शब्द प्रविष्ट नहीं होता था, इसीलिये उनका नाम घण्टाकर्ण पड़ा।
घण्टाकर्ण मंत्र व्यापार वृद्धि और आर्थिक उन्नति के लिये श्रेष्टतम है, इससे संबंधित साधना को किसी भी पूर्णिमा से किया जा सकता है। आप चाहें तो ऋण मुक्ति की कामना से धन त्रयोदशी को करें। साधक को सफेद वस्त्र ही धारण करना चाहिये। आसन किसी भी प्रकार का हो सकता है, उत्तर की तरफ मुंह करके साधना करनी चाहिये। यह साधना मात्र पांच दिन की होती है और नित्य पांच माला जपनी चाहियें। इस साधना के लिये काली हकीक माला ही उपयुक्त है, अन्य किसी प्रकार की माला से इस तांत्रिक प्रयोग को नहीं किया जा सकता। मंत्र जपते समय शुद्ध घी का दीपक जलता रहना चाहिये। यह मंत्र ऋण उतारने में अत्यधिक सहायक और प्रभावकारी है।
मंत्र जपते समय सात गोमती चक्र व घण्टाकर्ण यंत्र सामने किसी पात्र में रख देना चाहिये और इसके सामने ही मंत्र जाप करना चाहिये।

ॐ हृीं श्रीं क्लीं क्रों घण्टाकर्ण महावीर लक्ष्मी पूरय पूरय सुख सौभाग्यं कुरू कुरू स्वाहा।।

जब पांच दिन पूरे हो जाएं तब माला को जल में प्रवाहित कर देना चाहिये। गोमती चक्र व यंत्र को अपनी तिजोरी या अलमारी में रख देना चाहिये, इससे जीवन में व्यापार वृद्धि आर्थिक उन्नति अद्भुत ढंग से होती है।

व्यापार सिद्धि प्रयोग-
इस घंटाकर्ण महामंत्र को व्यापार सिद्धि हेतु भी प्रयोग में लाया जाता है। शुभ मुहूर्त से प्रारंभ करके इक्कीस दिन तक नित्य इक्कीस पाठ महामंत्र का करके घण्टाकर्ण यंत्र का पूजन करें।

मूल नक्षत्र के सूर्य में या पुष्य नक्षय के सूर्य में दुकान के द्वार के नीचे खड्डा खोदकर मिट्टी के पात्र में सुपारी, मौली, मधु तथा सिन्दूर डालकर घण्टाकर्ण यंत्र सहित मिट्टी के कुल्लड़ (सकोरे) से ढक दें, अब इस मिट्टी के पात्र को इस खड्डे में डालकर मिट्टी से खड्डा भर दें। उसके बाद उक्त दुकान में बैठकर निम्न मंत्र की ग्यारह माला जप करें।

ॐ हृीं श्रीं ऐं घंटाकर्णो महावीर। सर्व व्याधि विनाशकः ऋद्धि, वृद्धि लाभं, सुखं कुरू कुरू स्वाहा।।

यह प्रयोग कई व्यापारी गणों द्वारा किया जा चुका है। सभी ने अपने-अपने अनुभवों का उल्लेख करते हुए इसे पूर्ण लाभप्रद बतलाया है।

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