• 28 April 2024

रमल ज्योतिष

रमल ज्योतिष और राहु :-

Dr.R.B.Dhawan (Astrological Consultant),

रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के मुताबिक संसार का हर व्यक्ति नौ ग्रहों सेे परचित है। एक व्यक्ति के दो भाग हैं। एक सिर तथा दूसरा हिस्सा धड़ है, सिर वाले भाग का नाम राहु है, और धड़ वाले भाग भाग का नाम केतु है। यह दोनों ग्रह एक ही समय उत्पन्न हुए ग्रह हैं। यह दोनों ग्रह, सूर्य को और चन्द्रमा ग्रह को प्रबल शत्रु मानते हैं। तभी उन्हें ग्रहण लगाते हैं। परन्तु ज्योतिष में आकाशीय ज्योतिष पिण्ड न मानकर पृथ्वी के ऊपरी तथा दक्षिणी धु्रव को छाया के रूप में भी मानते हैं। यह दोनों ग्रह राहु तथा केतु, आपस में 6 राशि या 180 के अन्तर पर वक्री होकर चलते हैं। तथा इनको एक राशि में कम से कम 18 वर्ष का समय भ्रमण करने में लगता है। इस ग्रह में इनको कोई स्थान भी प्राप्त नहीं है। ना ही इनकी कोई अपनी राशि है। फिर भी रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के विभिन्न विद्वानों का मत है, कि कन्या राशि पर इसका पूर्ण अधिपत्य है। कन्या राशि की शकल (आकृति) जमात आती है। जिसमें किसी भी प्रकार का बिन्दु नहीं होता, यानि कि जाग्रत अवस्था में नहीं है साथ ही मृतक शकल (आकृति) है। यह शकल रात्रिकालीन शकल है। और वृष राशि में यह उच्च का होता है।

वृष राशि पर शकल (आकृति) अतवे दाखिल है। जो शुभ दाखिल शकल है, साथ ही धनाढय शकल (आकृति) को कायम रखती है। यह शकल जीवित शकल है, साथ ही शुभ दाखिल शकल है। कुछ विद्वान इसको मिथुन राशि के 15 अंश तक उच्चस्थ मानते हैं। कर्क राशि तथा कुम्भ राशि में यह मूल त्रिकोणस्थ होता है।

रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के मुताबिक राहु ग्रह, बुध ग्रह, शुक्र ग्रह और शनि ग्रह से मित्रता है। सूर्य ग्रह चन्द्रमा ग्रह और मंगल ग्रह इसके प्रबल शत्रु हैं। गुरु ग्रह से इसको पासा डालकर जिसे अरबी भाषा में ‘कुरा’ कहते हैं। प्रस्तार यानी कि जायचा बनाया जाता है। यदि रमलाचार्य के पास प्रश्नकर्ता नहीं हो, तो शोधकर की गयी नवीन प्रणाली द्वारा भी ‘प्रश्न-फार्म’ के माध्यम से भी यह कार्य किया जा सकता है कि किस घर में राहु ग्रह विराजमान है। वहां से बलाबल और दृष्टि, नजर-ए-मिकारना को देखकर व अन्य बात भी रमल (अरबी ज्योतिष) की गणना कर की जाती है। भविष्य काल के मार्ग दर्शनमय समाधान के जानने वास्ते, रमल (अरबी ज्योतिष) में जन्म कुण्डली की आवश्यकता कभी किसी स्थिति में कदापि नहीं होती है। इससे प्राप्त फलादेश व समाधान काफी सटीक और अचूक होता है।

यह राहु ग्रह बहुत ही बलवान ग्रह माना गया है। वृष राशि तथा तुला राशि में इसे योग कारक माना गया है। स्वामी नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्र में ये शुभ कारक होता है, तथा प्रस्तार यानी कि जायजे के 10वें घर में जो केन्द्र के अधीनस्थ है। बलवान माना गया है। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र और प्राचीन भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में केवल 7 ग्रह ही माने गये हैं। उसमें राहु ग्रह व केतु ग्रह का कहीं पर कोई अधिकारिक स्थान नहीं है, परन्तु बाद में ज्योतिषीयों ने इनका अनुसंधान करने के बाद इसके शुभ-अशुभ प्रभाव को विश्लेषण किया कि यह परिणाम शत-प्रतिशत सत्य साबित हुआ है।

राहु ग्रह व केतु ग्रह की शक्लें (आकृति) दोनों ही अशुभ हैं, साथ ही दिनकालीन शकल हैं। राहु ग्रह का अधिकार पैरों पर माना जाता है। इसके द्वारा पाप कर्मों, मानसिक चिन्ता, शत्रुता, दुर्भाग्यता, दरिद्रता, मद्यपान, शोकाकुल स्थिति इत्यादि दुर्गुणों का भी विचार किया जाता है। इसे रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में काल पुरुष के दुःख की संज्ञा की गयी है। प्रस्तार यानी कि जायचा के 12वें घर में, तथा जिस घर में यह विराजमान होता है। उस घर का यह बलवान, दृष्टि-कुदृष्टि तथा अन्य बातों का बारीकी से अध्ययन व खोज कर फलादेश की जानकारी प्राप्त होती है। जिस-जिस घर में यह राहु ग्रह बैठता है। उस घर का फलादेश शुभ-अशुभ स्थिति में साथ बलाबल की स्थिति व अन्य स्थिति में भी निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा रहा है।

रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के प्रस्तार यानी कि जायचे को मस्तक रोगी, कामी व अल्प सन्तति, नीच कर्मरत बनाता है। द्वितीय घर में होने पर जातक दिल, दिमाग का स्वच्छ ताजगी का होता है। चतुर्थ घर में होने पर प्रत्येक कार्य व बात को संतोषी होकर दुःखी होता है और स्वाभाव का क्रूर व चालाक भी होता है। पंचम घर में राहु होने पर पेट का रोगी होता है। छठे घर में होने पर उक्त ग्रह का दर्द कमर का होता है। सप्तम घर में राहु होने पर दाम्पत्य जीवन में अंतिम चरण तक टकराव तथा हार्दिक स्नेह का नाश होने का पाया जाता है, और इस बाबत शारीरिक, मानसिक, आर्थिक गिरावट का बराबर होना भी पाया जाता है। अष्टम घर में राहु के होने पर जातक गुप्त रोगी तथा पेट की बीमारी से ग्रस्त होता है। नवें घर में राहु के होने पर वायु प्रकोप द्वारा उत्पन्न रोग होते हैं। ग्यारहवें घर में राहु ग्रह के होने पर जातक अल्प सन्तति होता है तथा अन्तिम बारहवें घर में होने पर अविवेकी कामी चिन्तातुर तथा अत्यधिक खर्चीला का होना दिखाई देता है।

रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के द्वारा जिन व्यक्तियों को प्रतिकूलता (अशुभता) बराबर चल रही हो और उससे वह बराबर कष्ट भुगत रहा हो, तो उसे नग गोमेद की अंगूठी रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के मुताबिक शुभमुहूत्र्त में गणना करवाकर धारण करनी चाहिए अथवा सिद्धयंत्र धारण करना चाहिए या दान-जप करवाना चाहिए।

रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र व भारतीय ज्योतिष शास्त्र द्वारा जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, अति प्राचीन ग्रंथों में केवल सात ग्रह ही माने गये हैं। तथा सूर्य ग्रह को राजा का पद अधिकारिक प्राप्त है। राहु ग्रह का कहीं कोई किसी स्थिति में नामोनिशान नहीं है मगर ग्रहण के समय सूर्य को भी ग्रस्त करने में नहीं मानता है। यानी कि यह ग्रह पूर्णतः काफी बलवान है। जिसके आगे सूर्य भी पानी भरता है।

For Telephonic Consultation & Best Remedy : www.shukracharya.com
Mob : 09810143516, 09155669922
——————————————————-
मेरे और लेख देखें :- shukracharya.com, aapkabhavishya.com, rbdhawan.wordpress.com पर।